मंगलवार, 16 जुलाई 2024

हमारा कश्मीर-भाग 3---सृष्टि के महासृजक’ कश्यप मुनि, सतीसर, कश्मीर घाटी व कश्मीरी ब्राहमण ---डॉ. श्याम गुप्त

 

सृष्टि के महासृजककश्यप मुनि, सतीसर,  कश्मीर घाटी   कश्मीरी ब्राहमण ---डॉ. श्याम गुप्त

 

इस वृहद विषय को हम निम्न शीर्षकोँ में वर्णन करेँगे ---

1.      सृष्टि के महासृजककश्यप मुनि विविध  जीव सृष्टि

2.       कश्यप सागर कश्मीर ----

3.      काश्मीर घाटी सतीसर--- कश्मीरी ब्राहमण ---

4.      सतीसर

        जब सृष्टि विकास की बात होती हैं तो अर्थ होता है कि जीव, जंतु या मानव की उत्पत्ति |ऋषि कश्यप एक ऐसे ऋषि थे जिन्होंने बहुत-सी स्त्रियों से विवाह करके पृथ्वी पर प्राणी-कुल का विस्तार किया था। आदिमकाल में जातियों की विविधता आज की अपेक्षा कई गुना अधिक थी।

------ प्रजापत्य कल्प में ब्रह्मा ने रुद्र रूप को ही स्वयंभु मनु और स्त्री रूप में शतरूपा को प्रकट किया। स्वायंभुव मनु एवं शतरूपा के कुल पाँच सन्तानें थीं जिनमें से दो पुत्र प्रियव्रत एवं उत्तानपाद तथा तीन कन्याएँ आकूति, देवहूति और प्रसूति थे। आकूति का विवाह रुचि प्रजापति के साथ और प्रसूति का विवाह दक्ष प्रजापति के साथ हुआ। देवहूति का विवाह प्रजापति कर्दम के साथ हुआ। रुचि के आकूति से एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम यज्ञ रखा गया। इनकी पत्नी का नाम दक्षिणा था। कपिल ऋषि देवहूति की संतान थे। हिंदू पुराणों अनुसार ***** इन्हीं तीन कन्याओं से संसार के मानवों में वृद्धि हुई।*****

------दक्ष ने प्रसूति से 24 कन्याओं को जन्म दिया। इसके नाम श्रद्धा, लक्ष्मी, पुष्टि, धुति, तुष्टि, मेधा, क्रिया, बुद्धि, लज्जा, वपु, शान्ति, ऋद्धि, और कीर्ति हैं। तेरह का विवाह धर्म से किया और फिर भृगु से ख्याति का, शिव से सती का, मरीचि से सम्भूति का, अंगिरा से स्मृति का, पुलस्त्य से प्रीति का पुलह से क्षमा का, कृति से सन्नति का, अत्रि से अनसूया का, वशिष्ट से ऊर्जा का, वह्व से स्वाह का तथा पितरों से स्वधा का विवाह किया।
*****
आगे आने वाली सृष्टि इन्हीं से विकसित हुई।******
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1. कश्यप मुनि -- सृष्टि के महासृजक---व विविध जीव सृष्टि--- 
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ऋषि #कश्यप ब्रह्माजी के मानस-पुत्र मरीची के विद्वान पुत्र थे। इन्हें#अनिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है जिनका नाम आज भी भारतीय संस्कारों के समय लिया जाता है इनकी माता 'कला' कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी। सप्तर्षियों में एक महर्षि कश्यप सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी के आदेशानुसार सृष्टि सृजन हेतु अवतरित हुए।

-----ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष प्रजापति ने अपनी अन्य साठ कन्याओं में से== १७ कन्याओं का विवाह कश्यप के साथ=== कर दिया। इस प्रकार महर्षि कश्यप की अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सुरसा, तिमि, विनता, कद्रू, पतांगी और यामिनि आदि पत्नियां बनीं।
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वैश्वानर की दो पुत्रियों ==पुलोमा और कालका के साथ भी कश्यप ने== विवाह किया। उनसे पौलोम और कालकेय नाम के साठ हजार रणवीर दानवों का जन्म हुआ जोकि कालान्तर में निवातकवच के नाम से विख्यात हुए।
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. महर्षि कश्यप ने अपनी पत्नी अदिति के गर्भ से बारह आदित्य पैदा किए, जिनमें सर्वव्यापक देवाधिदेव नारायण का #वामन अवतार भी शामिल था। श्री विष्णु पुराण के अनुसार ---
मन्वन्तरेत्र सम्प्राप्ते तथा वैवस्वतेद्विज। वामन: यपाद्विष्णुरदित्यां सम्बभुव ह।।
त्रिमि क्रमैरिमाँल्लोकान्जित्वा येन महात्मना।पुन्दराय त्रैलोक्यं दत्रं निहत्कण्ट
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अर्थात्-वैवस्वत मन्वन्तर के प्राप्त होने पर भगवान् विष्णु कश्यप जी द्वारा अदिति के गर्भ से वामन रूप में प्रकट हुए। उन महात्मा वामन जी ने अपनी तीन डगों से सम्पूर्ण लोकों को जीतकर यह निष्कण्टक त्रिलोकी इन्द्र को दे दी थी।
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बारह आदित्यों के रूप में महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से जन्म लिया, जोकि इस प्रकार थे -विवस्वान् ( सूर्य ), अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरूण, मित्र, इन्द्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)
महर्षि
कश्यप के पुत्र #विवस्वान् से #मनु वैवस्वत का जन्म हुआ| महाराज मनु को इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रान्नु, नाभाग, दिष्ट, करूष और पृषध्र नामक दस श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति हुई।

. महर्षि कश्यप ने दिति के गर्भ से परम् दुर्जय हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री पैदा की। श्रीमद्भागवत् के अनुसार इन तीन संतानों के अलावा दिति के गर्भ से ४९ अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जोकि मरूद्गण कहलाए। कश्यप के ये पुत्र नि:संतान रहे। देवराज इन्द्र ने इन्हें अपने समान ही देवता बना लिया। जबकि हिरण्याकश्यप को चार पुत्रों अनुहल्लाद, हल्लाद, परम भक्त प्रहल्लाद, संहल्लाद आदि की प्राप्ति हुई।

. पत्नी दनु के गर्भ से द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरूण, अनुतापन, धुम्रकेतु, विरूपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि ६१ महान् पुत्र हुये।

. रानी काष्ठा से घोड़े आदि एक खुर वाले पशु उत्पन्न हुए।

.पत्नी अरिष्टा से गन्धर्व पैदा हुए।

.सुरसा नामक रानी की कोख से यातुधान (राक्षस) उत्पन्न हुए।

.इला से वृक्ष, लता आदि पृथ्वी में उत्पन्न होने वाली वनस्पतियों का जन्म हुआ।

.मुनि के गर्भ से अप्सराएं जन्मीं।

9.कश्यप की क्रोधवशा नामक रानी ने साँप, बिच्छु आदि विषैले जन्तु पैदा किए।

१०.ताम्रा ने बाज, गीद्ध आदि शिकारी पक्षियों को अपनी संतान के रूप में जन्म दिया।

११.सुरभि ने भैंस, गाय तथा दो खुर वाले पशुओं की उत्पति की।

१२.रानी सरसा ने बाघ आदि हिंसक जीवों को पैदा किया।

१३.तिमि ने जलचर जन्तुओं को अपनी संतान के रूप में उत्पन्न किया।

१४.विनता के गर्भ से गरूड़ (विष्णु का वाहन) और अरूण (सूर्य का सारथि) पैदा किए।

१५.कद्रू की कोख से अनेक नागों का जन्म हुआ।

१६.रानी पतंगी से पक्षियों का जन्म हुआ।

१७.यामिनी के गर्भ से शलभों (पतिंगों) का जन्म हुआ।

१८ १९---पुलोमा और कालका से पौलोम और कालकेय नामक साठ हजार रणवीर दानवों का जन्म हुआ जोकि कालान्तर में निवातकवच के नाम से विख्यात हुए।
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कश्यप को ऋषि-मुनियों में श्रेष्ठ माना गया हैं। पुराणों अनुसार हम सभी उन्हीं की संतानें हैं। सुर-असुरों के मूल पुरुष ऋषि कश्यप का आश्रम #मेरू पर्वत के शिखर पर था जहाँ वे परब्रह्म परमात्मा के ध्यान में लीन रहते थे।
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मुनिराज कश्यप नीतिप्रिय थे और वे स्वयं भी धर्म-नीति के अनुसार चलते थे और दूसरों को भी इसी नीति का पालन करने का उपदेश देते थे। उन्होने अधर्म का पक्ष कभी नहीं लिया, चाहे इसमें उनके पुत्र ही क्यों शामिल हों। वे राग-द्वेष रहित, परोपकारी, चरित्रवान और प्रजापालक थे। वे निर्भिक एवं निर्लोभी थे। कश्यप मुनि निरन्तर धर्मोपदेश करते थे, जिनके कारण उन्हें श्रेष्ठतम उपाधि हासिल हुई। समस्त देव, दानव एवं मानव उनकी आज्ञा का अक्षरश: पालन करते थे।
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महर्षि कश्यप अपने श्रेष्ठ गुणों, प्रताप एवं तप के बल पर श्रेष्ठतम महानुभूतियों में गिने जाते थे। उन्होंने समाज को एक नई दिशा देने के लिए #स्मृति-ग्रन्थजैसे महान् ग्रन्थ की रचना की। इसके अलावा ‘#कश्यप-#संहिता की रचना करके तीनों लोकों में अमरता हासिल की।
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2. कश्यप सागर कश्मीर ----
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इतिहास के अनुसार #कस्पियन #सागरएवं भारत के शीर्ष प्रदेश #कश्मीर का नामकरण भी महर्षि कश्यप जी के नाम पर ही हुआ। महर्षि कश्यप द्वारा संपूर्ण सृष्टि के सृजन में दिए गए महायोगदान की यशोगाथा वेदों, पुराणों, स्मृतियों, उपनिषदों एवं अन्य धार्मिक साहित्यों में उपलब्ध है, जिसके कारण उन्हें ‘==सृष्टि के महासृजक==उपाधि से विभूषित किया जाता है।
------- माना जाता है कि कश्यप ऋषि के नाम पर ही कश्यप सागर (कैस्पियन सागर) और कश्मीर का प्राचीन नाम था। शोधकर्ताओं के अनुसार कैस्पियन सागर से लेकर कश्मीर तक ऋषि कश्यप के कुल के लोगों का राज फैला हुआ था। समूचे कश्मीर पर ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का ही शासन था। कश्यप ऋषि का इतिहास प्राचीन माना जाता है।

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------ कैलाश पर्वत के आसपास भगवान ==शिव के गणों की सत्ता== थी। उक्त इलाके में ही=== दक्ष राजा=== का भी साम्राज्य भी था|

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हिमालय से लगे लगभग सभी राज्य और देश प्राचीन भारत का हिस्सा रहे हैं जिसमें भारतीय राज्य कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल के अलावा नेपाल, तिब्बत और भूटान नाम के तीन देशों का भी पुराण और वेदों में स्पष्ट उल्लेख मिलता है। तिब्बत को वेद और पुराणों में त्रिविष्टप कहा गया है। वहीं पर किंपुरुष नामक देश के होने का भी उल्लेख मिलता है।
------ मत्स्य पुराण में अच्छोद सरोवर और अच्छोदा नदी का जिक्र मिलता है जो कि कश्मीर में स्थित है।
अच्छोदा नाम तेषां तु मानसी कन्यका नदी १४. .
अच्छोदं नाम सरः पितृभिर्निर्मितं पुरा .
अच्छोदा तु तपश्चक्रे दिव्यं वर्षसहस्रकम्॥ १४.
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----- कश्यप ऋषि ===कश्मीर के पहले राजा ===थे। कश्मीर को उन्होंने अपने सपनों का राज्य बनाया। उनकी एक पत्नी कद्रू के गर्भ से नागों की उत्पत्ति हुई जिनमें प्रमुख 8 नाग थे- अनंत (शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक। इन्हीं से नागवंश की स्थापना हुई। आज भी कश्मीर में इन नागों के नाम पर ही स्थानों के नाम हैं। कश्मीर का अनंतनाग नागवंशियों की राजधानी थी। .
----- काश्मीर भारत का सबसे प्राचीन और प्रथम राज्य है। मरीच पुत्र कश्यप के नाम से पूर्व मेँ कश्यपमेरु या कशेमर्र नाम था।

----- एक प्रसंग यह है कि इसका वास्तविक नाम कश्यपमर अथवा कछुओं की झील था, इसी से नाम कश्मीर हुआ

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इससे भी पूर्व मत्स्य पुराण में कहा गया है- मरीचि के वंशज देवताओं के पितृगण जहां निवास करते हैं वे लोग सोमपथ के नाम से विख्यात हैं। यह पितृ अग्निष्वात्त नाम से ख्यात है। जिनके सौन्दर्य से आकर्षित होकर इन्हीँ पितरोँ की मानस कन्या अमावसु नामक पितर युवक के साथ रहना चाहती थी। जिस दिन अमावसु ने अच्छोदा को मना किया। तब से वह तिथि अमावस्या नाम से प्रसिद्ध हुई और अच्छोदा नदी रूप हो गई। अमावस्या तभी से पितरोँ की प्रिय तिथि है।

 

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3. काश्मीर घाटी सतीसर--- कश्मीरी ब्राहमण ---

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      कश्मीर घाटी शिव की अर्धांगिनी पार्वतीका प्रदेश है। महाराजा कनिष्क ने बौद्ध धर्म का चौथा महा सम्मेलन इसी कश्मीर घाटी में आयोजित करवाया था। विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा के अवशेष श्रीनगर शहर से थोड़ी दूरी पर ही मिले हैं।

----- इस्लाम तो कश्मीर-घाटी में चौदहवीं शताब्दी में आया। सभी जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर के स्वर्गीय मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला के पितामह पंडित बाल मुकंद रैना थे। अवन्तीपुरम, मार्तंडमंदिर (सूर्य मंदिर , मट्टन, श्रीनगर इत्यादि नाम हिंदू संस्कृति के प्रतीक हैं।

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सतीसर से पूर्व--
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           सुना जाता है कि यह एक घाटी थी जिसमें कुछ कबीले रहते थे जिनका मुखिया दया देव था जो वर्त्तमान अफ्रीकी कबीले से मिलते जुलते थे | वस्तुतः यह स्थान चरवाहे कबीलों का शीत ऋतु में एक प्रकार का अभयारण्य था जो उच्च पर्वतों से नीचे घाटी में उतर आते थे एवं ग्रीष्म में पुनः अपने प्रदेश में चले जाते थे |

------लगभग ३८९९ ईसा पूर्व नोआ की बाढ़ ( मनु का #महाजलप्लावन---मत्स्यावतार ) की घटना में बारामूला स्थान पर ऊपर पर्वत से गिरी हुई पहाडी ने रास्ता रोक दिया जिसमें समस्त कबीले आदि नष्ट होगये एवं यह घाटी सतीसर झील में परिवर्तित होगई | इसी स्थान को काट कर महर्षि कश्यप ने सतीसर झील के जल निकाल कर पुनः कश्मीर घाटी को बसाया |
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वैज्ञानिकों के अनुसार लगभग १० करोड़ वर्ष पूर्व कश्मीर घाटी टेथिस सागर ( दिति सागर ) का भाग थी तथा आज जो पहाड़ियां है वे सब सागर के अन्दर जलमग्न थीं |
----- जिसे सतीसर कहा गया | भयानक भूकंप आने पर बारामूला के समीप पर्वत दीवार में दरार आगई और सतीसर झील कश्मीर घाटी में बदल गयी

----- ऋग्वेदिक काल में १२७००११५०० BCE में कश्मीर घाटी ग्लेशिअल झील थी ––निलमत पुराण के अनुसार --- -एक ऋग्वेदिक कबीलापिशाच -कश्मीर में रहता था जो हरियूपिया के असुर राजा का साथी था |
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११५०० BCE—में संभर = शंबरासुर-----हरियूपिया, हरप्पा का असुर राजा कश्मीर पर राज्य करने लगा |---११३२५ BCE—इंद्र ने शंबर को मार कर उसका राज्य छीन लिया |
---- वैदिक काल में कुरु-पांचाल राज्य पीर पंजाल पहाड़ियों तक जम्मू कश्मीर तक था|
----- जम्मू क्षेत्र में पुरु वंश का राजा मद्र-- मद्र राज्य वंश सिन्धु - सतलुज के मध्य राज्य करता था | मद्र की राजधानी सियालकोट एवं शाल्व की राजधानी शाकल थी |
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इस प्रकार काश्मीर क्षेत्र  को 'सती 'या 'सतीसर' कहते थे। यहां सरोवर में सती भगवती नाव में विहार करती थीं अर्थात शिव का क्षेत्र था जहां वे बहुत काल तक निवास करते रहे | तदुपरांत जलोद्भव नामक राक्षस इस झील में रहने लगा| वह स्थानीय लोगों पर अत्याचार करता था एवं ब्रहमा द्वारा दिए गए वरदान के अनुसार वह जब तक जल के अन्दर रहेगा कोई उसे नहीं मार सकता था |


------पार्वती ने कश्यप मुनि से कश्मीर आकर पांचाल गिरी क्षेत्र को शुद्ध करने को कहा |-----कश्यप अपने पुत्र नील नाग  (= वीरनाग ) के साथ शिव के साथ देने अनंतनाग क्षेत्र में आये और पिशाचों को हरा कर भगा दिया| वे पांचाल गिरि ( पीर पंजाल ) में बस गए. अतः उस स्थान का नाम कश्यप मेरु - कश्मीर कहा गया |
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उस समय जलोद्भव राक्षस कश्मीर घाटी में उत्पात मचाये हुए था | ११२०० BCE के लगभग घाटी में भूकंप आया और बारामूला के समीप चट्टानें हट जाने से सतीसर झील का जल बहा गया जिससे मद्र ,शाल्व, सिन्धु गुजरात में भीषण जल प्रलय हुई | कश्मीर घाटी में हरीपर्वत का उद्भव हुआ और जलोद्भव मारा गया | ११२०० BCE में कश्मीर घाटी रहने लायक हुई |
----- नील नाग कश्मीर का सर्वप्रथम शासक हुआ| और कश्यप-कद्रू के नाग पुत्रों ने लम्बे समय लगभग ५०० BCE तक कश्मीर पर राज्य किया |

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4. सतीसर
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नीलमत पुराण के अनुसार जब ब्रहमा के पौत्र कश्यप मुनि भारत के इस भाग की यात्रा पर आये तो उनके तेज, तप अध्यात्मिक शक्ति बल को देखकर स्थानीय लोगों ने अपनी व्यथा सुनाई | कश्यप मुनि ने राक्षस को मारने का निश्चय किया | उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या की तब शिव ने प्रसन्न होकर विष्णु ब्रह्मा को जलोद्भव को दंड देने को कहा परन्तु यह एक कठिन काम था क्योंकि वह जल के अन्दर छुप जाता था |
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अंतत ब्रह्मा विष्णु ने सतीसर को सुखाने का विचार किया | विष्णु ने बारामूला (बराह मूल ) के निकट पर्वत को काट दिया जिससे झील का जल बह गया | परन्तु फिर भी कुछ गड्ढे बचे थे जिसमें राक्षस छुप जाता था | तब विष्णु ने समीर पर्वत के एक टुकडे को काट कर उस गड्ढे में भर दिया और राक्षस उसमें दब कर मर गया, उस स्थान को कोही-मारन कहा गया और वह पत्थर हरी पर्वत हो गया। |

 

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--- "बारामूला" ----

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नाम संस्कृत के "वराहमूल" से उत्पन्न हुआ है और आज भी कश्मीरी भाषा में "वरमूल" कहलाता है। "वराह" का अर्थ (जंगली) सूअर होता है और "मूल" का अर्थ उसका पैना दांत है।[5] मान्यता है कि कश्मीर घाटी आदिकाल में एक सतिसर (या सतिसरस) नामक झील के नीचे डूबी हुई थी, जिसमें जलोद्भव नामक जल-राक्षस रहकर भय फैलाता था। भगवान विष्णु ने एक भीमकाय वराह का रूप धारण कर के आधुनिक बारामूला के पास झील को घरेने वाले पहाड़ों पर अपने लम्बे दाँत से प्रहार करा। इस से बनने वाली दरार से झील का पानी बह गया और कश्मीर वादी उभर आई और वास-योग्य बन गई।


झेलम के किनारे, लगभग सन् १८७५ में बारामूला का चित्र

 

 

------  यह भी कहा जाता है कि देवताओँ के आग्रह पर पक्षी सारिका रूप मेँ भगवती ने चोंच में पत्थर रखकर राक्षस के ऊपर फैंक कर राक्षस को मारा था।
-------ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में शोपियां के नज़दीक नोबुग्नई स्थान पर में नावें बांधने के बड़े बड़े छिद्र युत बड़ी बडी पर्वत शिलायें मिलती हैं जो हिन्दुओं के लिए पवित्र स्थान है | यह सिद्ध करते हैं कि कभी यह क्षेत्र जल के अन्दर रहा होगा |
-------- प्रकारान्तर से सतीसर में बनी इस दरार से पूरा पानी निकल गया और भूमि ऊपर गयी। ऋषियोँ, मरीचि पितरः तथा कश्यप की इस वास्तविक स्वर्ग भूमि #अमरनाथ, बूढा़ अमरनाथ #ज्वालादेवी पठानकोट #वैष्णोदेवी, छीरभवानी और अति प्राचीन मार्तण्डमंदिर भी था। मार्तण्ड मंदिर क्षेत्र को अब 'मटन' गांव कहा जाता है। इस प्रकार यह स्थान सूखी हुई जमीन काश्मीर घाटी हुई | नीलमत पुराण के अनुसार --संस्कृत का = जल शिमीरा = जल से सूखी हुई जमीन = काश्मीर--पृथ्वी का स्वर्ग | घाटी से प्रवाहित जल से वितस्ता ( व्यास ) झेलम नदियाँ प्रवाहित हुईं |

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कश्यप ऋषि ने इस सुन्दर स्थान को बसाने के लिए स्वयं जैसे विज्ञजनों ब्राहमणों को यहाँ बसने हेतु आवाहन किया एवं दूर दूर से विज्ञजनों को वहां लाकर बसाया गया|

इतिहासकारों के अनुसार -#कात्याचार्य#माम्ताचार्य  #अत्वाचार्य तीन #ब्राह्मण भाई थे जिन्होंने इस सुन्दर स्थान को फलने फूलने में योगदान दिया| ====इन सभी के वंशज आज के कश्मीरी ब्राह्मण हैं| जो वहां के मूल निवासी हैं | ====अतः यह स्थान कश्यपपुर या कश्मीर कहलाया | मीर =घर = कश्यप का घर | यह भी कहा जाता है कि कश्यप मुनि की पत्नी का नाम मीर था अतः नाम कश्यपमीर = कश्मीर हुआ |
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मुस्लिम कथा---के अनुसार सुलेमान के समय कश्मीर में एक देव( विशालकाय राक्षस ) कशाप रहता था जो मीर नाम की स्त्री पर रीझा हुआ था परन्तु उसे रिझाने में असफल था| जब सुलेमान ने सतीसर झील के लजाल को निकालन का फैसला किया तो उसने कशाप देव को वचन दिया कि यदि वह इस कार्य को कर देता है तो उसे मीर प्रदान कर दी जायगी | इस प्रकार कशाप देव ने बारामूला पर स्थान कट कर झील को बहा दिया जो वितस्ता नदी बनी |
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परन्तु यह असत्य कथा है इस स्थान पर बस्ती ५०० वर्ष ईसा पूर्व द्वापर युग मे बसाई गयी है जबकि सुलेमान कलियुग के १८०० वर्ष बाद कश्मीर पहुंचा था|---( कशाप देव व कशापा आदि   = कश्यप मुनि ही हैं सदा की भांति  तोड़ मरोड्कर बनाई गयी मुस्लिम व ईसाई कथायेँ )
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श्रीनगर जिसका पुराना नाम प्रवरपुर है, महाराजा प्रवरसिंह इस क्षेत्र के प्रथम शासक थे | इसी शहर की दोनों ओर हरीपर्वत और शंकराचार्य पर्वत हैं आदि शंकराचार्य ने इसी पहाड़ी पर भव्य शिवलिंग, मंदिर और नीचे मठ बनाया। शंकराचार्य पर्वत के समीप अति प्राचीन दुर्गानाथ मंदिर के विध्वंस के मलबे से ही 'हमदन मस्जिद भी बनाई गई है जो लकडी़ की है। वहां एक बहते जलस्रोत में आज भी हिन्दू काली की पूजा करते हैं।
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प्राचीन कश्मीर के लोग बूढ़े अमरनाथ क्षेत्र में महर्षि #पुलस्त्य के भव्य आश्रम में वेद पढ़ते थे। उनके नाम की वाली पुलस्ता नदी आज भी है। जम्मू पठान कोट मार्ग पर पुरमंडल नामक गौरवशाली गयाजी जैसा पवित्र और मान्य श्राद्धक्षेत्र भी है। .
------- भारतीय ग्रंथों के अनुसार जम्मू को डुग्गर प्रदेश कहा जाता है। जम्मू संभाग का क्षेत्रफल पीर पंजाल ( = कुरु-पंचाल ) की पहाड़ी रेंज में खत्म हो जाता है। इस पहाड़ी के दूसरी ओर कश्मीर है।


-- जम्मू

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पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर राज्य के मूल निवासी।  : हुंजा या बुरुशो लोग हुंजा घाटी और राज्य के सुदूर उत्तर में पड़ोसी घाटियों में निवास करते हैं। वे बुरुशास्की भाषा बोलते हैं जिसे भाषा के रूप में किसी भी भाषा समूह के साथ नहीं जोड़ा गया है।  


------ जम्मू -- कश्मीर की शीतकालीन राजधानी शिवालिक पर्वतमाला पर स्थित है, जहाँ से उत्तरी मैदानों का नज़ारा दिखता है। इस शहर की स्थापना मूल रूप से राजा जम्बूलोचन ने की थी, जो 14वीं शताब्दी ईसा पूर्व में रहते थे। किंवदंती के अनुसार, अपने एक शिकार अभियान के दौरान, राजा जम्बू लोचन तवी नदी पर पहुँचे, जहाँ उन्होंने एक बकरी और एक शेर को एक ही स्थान पर पानी पीते देखा। अपनी प्यास बुझाने के बाद, जानवर अपने-अपने रास्ते चले गए। राजा आश्चर्यचकित हो गए, उन्होंने शिकार करने का विचार त्याग दिया और अपने साथियों के पास लौट गए। उनके मंत्रियों ने समझाया कि इसका मतलब है कि इस जगह की मिट्टी इतनी पुण्यशाली है कि कोई भी जीवित प्राणी दूसरे के प्रति शत्रुता नहीं रखता। वह इस असामान्य दृश्य से इतना प्रभावित हुआ कि उसने इस भूमि पर एक राजधानी शहर बनाने का फैसला किया, 'जम्बूपुरा', तवी नदी के दाहिने किनारे पर, अपने भाई राजा बाहु के किले के सामने बसाया यह शहर जम्बू-नगर के नाम से जाना जाने लगा, जो बाद में जम्मू में बदल गया।

----- जम्मू ऐतिहासिक रूप से जम्मू प्रांत की राजधानी और पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर रियासत (1846-1952) की शीतकालीन राजधानी रहा है।

-------  जम्मू का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। हाल में अखनूर से प्राप्त  हड़प्पा कालीन अवशेषों तथा मौर्य, कुषाण और गुप्त  काल की कलाकृतियों से जम्मू के प्राचीन इतिहास का पता चलता है। लद्दाख एक ऊंचा पठार है जिसका अधिकतर हिस्सा 3,500 मीटर (9,800 फीट) से ऊंचा है। यह हिमालय और काराकोरम पर्वत श्रृंखला और सिन्धु नदी की ऊपरी घाटी में फैला है। जम्मू के बाद के इतिहास के बारे में बहुत कम जानकारी है, जब तक कि 1730 . में यह डोगरा राजा ध्रुव देव के शासन में नहीं गया। डोगरा शासकों ने अपनी राजधानी वर्तमान स्थल पर स्थानांतरित कर दी और जम्मू कला और संस्कृति, विशेष रूप से पहाड़ी चित्रकला शैली का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया।

--------- पुरा कथा के अनुसार जम्मू हिन्दू राजा जम्बुलोचन ईसा से १४०० वर्ष पूर्व बसाया था | शिकार करते हुए राजा तवी नदी के इस क्षेत्र में पहुंचा तो नदी की धार में शेर बकरी को एक ही स्थान पर जल पीते हुए देखकर अत्यंत प्रभावित हुआ और स्थान का नाम अपने नाम पर जम्बू रख दिया जो कालांतर में जम्मू हुआ |
------ जम्मू का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। हाल में अखनूर से प्राप् हड़प्पा कालीन अवशेषों तथा मौर्य, कुषाण और गुप् काल की कलाकृतियों से जम्मू के प्राचीन इतिहास का पता चलता है। लद्दाख एक ऊंचा पठार है जिसका अधिकतर हिस्सा 3,500 मीटर (9,800 फीट) से ऊंचा है। यह हिमालय और काराकोरम पर्वत श्रृंखला और सिन्धु नदी की ऊपरी घाटी में फैला है।


क्रमश --भाग 4---




सतीसर

कश्यप मुनि

डल झील 

सतीसर के सूखने के उपरांत कश्मीर घाटी

जम्मू के हुंजा मूल निवासी 

वराहमूल"-बारामूला 

 

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--एक चिकित्सक, शल्य-विशेषज्ञ जिसे धर्म, दर्शन, आस्था व सान्सारिक व्यवहारिक जीवन मूल्यों व मानवता को आधुनिक विज्ञान से तादाम्य करने में रुचि व आस्था है।