बुधवार, 26 दिसंबर 2018

मानवता का प्रथम महासमन्वय --- पौराणिकता आधारित विज्ञान कथा --डा श्याम गुप्त

 मानवता का प्रथम महासमन्वय --- पौराणिकता आधारित विज्ञान कथा...
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सभी कबीलों को एक करके समन्वित करने वाले दक्षिण भारतीय भूभाग के राजा शंभू चिंतित थे | उत्तर क्षेत्र से आये हुए मानवों से प्रारम्भिक झड़प के पश्चात ही उनके सेनापति इन्द्रदेव इस सन्देश के साथ आये कि वे आपस में मिलजुल कर परामर्श करने के इच्छुक हैं | अंतत उन्होंने मिलने का निश्चय किया |
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पितामह ! शम्भू जी पधारे हैं, इन्द्रदेव ने ब्रह्मा जी को सूचित किया |
----उन्हें सादर लायें इन्द्रदेव, वे हमारे अतिथि हैं, सुना है वे अति-बलशाली हैं साथ ही महाविद्वान् व कल्याणकारी शासक भी, ब्रह्मदेव बोले |
------- शंभू  दक्षिण भारतीय भूभाग के एकछत्र अधिपति थे | सुदूर दक्षिण से लेकर मध्यभारत व विन्ध्य-क्षेत्र तक एक उन्नत वनांचल मानव-सभ्यता-संस्कृति का फैलाव था, वे इसके निर्माता थे व जन-जन के पूज्य राजा - जाय जन्तोर राजाल |
-------ब्रह्मा विष्णु व इंद्र  मानसरोवर-सरस्वती-सुमेरु क्षेत्र में विकसित एक अति उन्नत मानव सभ्यता-संस्कृति के प्रतिनिधि थे | ब्रह्मा प्रजापति, विष्णु अधिपति व इंद्र सेनापति तथा अन्य देवता विभिन्न विशिष्ट शक्तियों के धारक थे |
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आबादी बढ़ने पर पृथ्वी अर्थात सुमेरु से हिमालय-क्षेत्र के पार बसने की इच्छा से इंद्र व विष्णु के नेतृत्व में सरस्वती के किनारे किनारे चलकर इस प्रदेश में पधारे |
------कुछ प्रारम्भिक मुठभेड़ों के पश्चात राजा शम्भू की विद्वता व शक्ति के बारे में जानकर कि वे समस्त प्रजा का कल्याणकारी भाव से पालन करते हैं, ब्रह्मदेव ने तुरंत युद्ध रोकने का आदेश दिया एवं उन्हें इंद्र के द्वारा समन्वय का सन्देश भजा गया और वे भी समन्वय के पक्ष में थे अतः पधारे |
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निर्भीक मुद्रा में, हाथ में त्रिशूल, कमर में बाघम्बर लपेटे राजा शंभू का स्वागत करते हुए विष्णु बोले, आइये शम्भू जी, सभा में स्वागत है, आसन ग्रहण कीजिये |
------ परन्तु आप तीन लोग एक समान स्थित हैं, आपके अधिपति कौन हैं ? शंभू आश्चर्य से पूछने लगे |
------ ये ब्रह्मदेव हैं समस्त मानव जाति के पितामह प्रजापति, मैं विष्णु व ये इन्द्रदेव | हम सभी आपस में मिलकर सभी समस्याएं-आर्थिक, सामाजिक व युद्ध संबंधी, सुलझाते हैं, हल करते हैं|
-----ओहो ! ब्रह्मदेव ! आदिपिता, वे तो हमारे भी पितृव्य हैं, शम्भु प्रणाम करते हुए, प्रसन्नता से बोले, अब भी स्मृति में सुमेरु-क्षेत्र ब्रह्मलोक की यादें हैं एवं वे स्मृतियाँ भी जब हम लोग इस क्षेत्र को छोड़कर दिति-सागर पार करके उत्तर सुमेरु क्षेत्र में जाकर बसे थे |
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‘अति शोभनं शम्भू ‘ ब्रह्मा जी कहने लगे, दिति-सागर (टेथिस समुद्र) के हट जाने पर उस उत्तर क्षेत्र में आबादी बढ़ने पर हमने प्रजा को यहाँ पर बसाने का निर्णय किया | सुदूर उत्तर तो समस्त हिम से आबद्ध रहता है अतः बसने योग्य नहीं है |’
-----‘तो तुम पुत्र शंकर हो, रूद्र-शिव जो साधना हेतु सुमेरु से कुमारी-कंदम हेला द्वीप चले आये थे |’ तुम्हारी व तुम्हारे क्षेत्र एवं प्रजा की प्रगति देखकर मैं अति प्रसन्न हूँ |
------जी पितामह, आप सब तो अपने ही लोग हैं, युद्ध की क्या आवश्यकता है, आज्ञा दें, परन्तु मेरे लोग कोई भी अधीनता स्वीकार नहीं करेंगे |
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अधीनता कभी हमारा मंतव्य व उद्देश्य नहीं रहा, शंभू जी, उचित कहा आपने, युद्ध की क्या आवश्यकता है, विष्णु बोले, समन्वय, मिलजुल कर रहने पर ही उस क्षेत्र, प्रजा व संस्कृति का विकास होता है, ज्ञान का प्रकाश उत्कीर्ण होता है, दोनों संस्कृतियाँ व सभ्यताओं की सम्मिलित, समन्वयात्मक प्रगति होती है |
------सब अपनी अपनी संस्कृति अपनाते हुए मिल-जुल कर निवास करेंगे |
----- स्वीकार है, शम्भू कहने लगे, यद्यपि विरोध होगा, सभी कबीलों, वर्गों को मनाना पडेगा परन्तु मैं सम्हाल लूंगा | प्रगति हेतु समन्वय तो आवश्यक ही है |
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आभार है शम्भू जी, विष्णु व इंद्र बोले, आपका यह कदम मानवता के इतिहास में स्वर्णिम निर्णय कहा जाएगा |
------हम इस समन्वित संस्कृति को ज्ञान के प्रसार, प्रकाश की संस्कृति, विज्ञजनों की, विद्या रूप वैदिक-संस्कृति कहेंगे |
-------भाषा व सभी ज्ञान का संस्कार आप करेंगे ताकि एक विश्ववारा संस्कृति का निर्माण हो |
------मेरा आशीर्वाद सभी के साथ है, सब मिल जुल कर रहें |. ब्रह्मदेव ने प्रसन्नतापूर्वक सभी को आश्वस्त करते हुए कहा |
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इस प्रकार एक उन्नत वनांचल संस्कृति, शायद पूर्व हरप्पा एवं उन्नत ग्राम्य संस्कृति, सुमेरु-सभ्यता का समन्वय हुआ जो विश्व का प्रथम मानव महा समन्वय था | इसे ***शिव-विष्णु समन्वय*** भी कहा जा सकता है |
------यही संस्कृति आगे प्रगतिमान होकर हरप्पा ( हरियूपिया ), सरस्वती सभ्यता, सिन्धु-घाटी सभ्यता वदेव-मानव वैदिक सभ्यता कहलाई और विश्व भर में फ़ैली |

बुधवार, 8 अगस्त 2018

बुराई की उत्पत्ति एवं सार्वकालीन उपस्थिति ---डा श्याम गुप्त


बुराई की उत्पत्ति एवं सार्वकालीन उपस्थिति


     अभी फेसबुक पर एक टिप्पणी थी कि ‘काश, इस दुनिया में सिर्फ सच्चाई का राज हो जाये तो समस्या कहाँ है?’---प्रायः सदा से ही बार बार यह कहा सुना जाता रहा है |
      इस सम्बन्ध में जैसा सभी कहते हैं, कहाजाता है कि बुराई अधिक तेजी से फैलती है | क्योंकि हम स्वयं की बुराई नहीं देखते अपितु दूसरे की बुराई अधिक देखते हैं –
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल देखा आपना, मुझसा बुरा न कोय |
     तो फिर बुराई सदा के लिए कैसे समाप्त होसकती है | एक पहलू यह भी है कि बुराई होगी ही नहीं तो अच्छाई की पहचान कैसे होगी |
    वस्तुतः बुराई के सार्वस्थानिक, सार्वकालिक उपस्थिति का मूल कारण है कि जब ब्रह्मा सृष्टि सृजन कर रहे थे उन्हें नींद आगई और इसी असावधानीवश अंधकारमय सृष्टि की उत्पत्ति होगई जो विभिन्न बुराइयों का प्रतीक बनी | |
        ब्रह्मा द्वारा मानव  की कोटियों में की गयी सृष्टि----
१.-ब्रह्मा के तमभाव देह से---आसुरी प्रव्रत्ति,  इस  देह के त्याग से रात्रि व अज्ञान भाव की उत्पत्ति हुई ।
२.सोते समय  सृष्टि—तिर्यक सृष्टि —जो अज्ञानी,  भोगी,  इच्छा-वशी, क्रोधी,  विवेक शून्य,  भ्रष्ट आचरण वाले एवं पशु-पक्षी जो पुरुषार्थ के सर्वथा अयोग्य थे ।
३.अन्य विशिष्ट कोटियां-- अन्धेरे में व क्रोध में -राक्षस, यक्ष आदि सदा भूखी सृष्टि --
          अब जो सृष्टिकर्ता की सृष्टि है उसकी सदा के लिए समाप्ति कैसे होसकती है |
          इस प्रकार मानव रक्त में आसुरी भाव अर्थात अति-भौतिकता जनित सुखाभिलाषा के प्रति आकर्षण के कारण विद्रोह करने की क्षमता पुराकाल से ही चली आ रही है, यही आसुरी भाव प्रत्येक काल में पुनः पुनः सिर उठाता रहता है ।--हर युग में,  –और कृष्ण को कहना पडा--

              यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत |...
               धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे | 
    इसका अर्थ यह नहीं कि हम स्वयं बुराई उन्मूलन हेतु कुछ करें ही नहीं, कृष्ण की ही प्रतीक्षा करते रहें | हमें तो नियमित रूप से बुराई के विरुद्ध युद्ध लड़ते ही रहना चाहिए | यदि एक बुरे को भी आपकी बात अच्छी लग गयी तो आपका कर्तव्य पूरा हुआ |

वैज्ञानिक खोज---
      परन्तु प्रकृति माता जो अपने पुत्र, मानव की भांति क्रूर नहीं होसकती एवम उसे अपनी आज्ञा पर अपने अनुकूलन में सम्यग व्यवहार से चलाने का यत्न करती आई है, ने कदम बढाया है। यह कदम मानव मस्तिष्क में एक एसे केन्द्र को विकसित करना है जो मानव को आज से भी अधिक विवेकशील सामाज़िक, सच्चरित्र, संयमित, विचारवान, संस्कारशील व्यवहारशील व सही अर्थों में महामानव बनायेगा। वह केन्द्र हैमानव मस्तिष्क के प्रमस्तिष्क में विकसित भाग बेसल नीओ कार्टेक्स (basal neo cortex)|

   वैग्यानिकों प्रो.ह्यूगो स्पेत्ज़ व मस्तिष्क विज्ञानी वान इलिओनाओ के अध्ययनो के अनुसार  पता चलता है कि मानव मस्तिष्क भी अभी अपूर्ण है तथा मानव के प्रमस्तिष्क के आधार भाग में एक नवीन भाग ( केन्द्र ) विकसित होरहा है, जो मानव द्वारा प्राप्त उच्च मानसिक अनुभवों, संवेगों, विचारों व कार्यों का आधार होगा।
      

यह नवीन विकासमान भाग प्रमस्तिष्क के अग्र व टेम्पोरल भागों के नीचे कंकाल बक्स( क्रेनियम-cranium) के आधार पर स्थित है। इसी को बेसल नीओ कार्टेक्स ( basal neo cortex) कहते हैं। प्राइमरी होमो सेपियन्स (प्रीमिटिव मानव) में यह भाग विकास की कडी के अन्तिम सोपान पर ही दिखाई देता है व भ्रूण के विकास की अन्तिम अवस्था मेंबनता है। बेसल नीओ कार्टेक्स के दोनों भागों को निकाल देने या छेड देने पर केवल मनुष्य के चरित्र व मानसिक विकास पर प्रभाव पडता है, अन्य किसी अंग व इन्द्रिय पर नहीं । अतः यह चरित्र व भावना का केन्द्र है।
     इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भविष्य में इस नवीन केन्द्र के और अधिकाधिक विकसित होने से  एक महामानव ( यदि हम स्वयम मानव बने रहें तो) का विकास होगा ( इसे महर्षि अरविन्द के अति-मानस की विचार धारा से तादाम्य किया जा सकता है ); जो चरित्र व व्यक्तित्व मे मानवीय कमज़ोरियों से ऊपर होगा, आत्म संयम व  मानवीयता को समझेगा, मानवीय व सामाज़िक संबंधों मे कुशल होगा और भविष्य में मानवीय भावनाओं के विकास के महत्व को समझेगा।  
      और हमारा स्वप्न सच हो सके कि---- काश,  इस दुनिया में सिर्फ सच्चाई का राज हो जाये ...|


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लखनऊ, उत्तर प्रदेश, India
--एक चिकित्सक, शल्य-विशेषज्ञ जिसे धर्म, दर्शन, आस्था व सान्सारिक व्यवहारिक जीवन मूल्यों व मानवता को आधुनिक विज्ञान से तादाम्य करने में रुचि व आस्था है।