पृथ्वी का संरचनात्मक विकास श्रृंखला ...भाग-पांच मानव- का विकास ---
यह आदि-सृष्टि कैसे हुई, ब्रह्मांड कैसे बना
एवं हमारी अपनी पृथ्वी कैसे बनी व यहां तक का सफ़र कैसे हुआ, ये आदि-प्रश्न सदैव
से मानव मन व बुद्धि को निरन्तर मन्थित करते रहे हैं । इस मन्थन के फ़लस्वरूप ही
मानव धर्म, अध्यात्म व विग्यान रूप से
सामाजिक उन्नति में सतत प्रगति के मार्ग पर कदम बढाता रहा । आधुनिक विग्यान के अनुसार
हमारे पृथ्वी ग्रह की
विकास-यात्रा क्या रही इस आलेख का मूल विषय है । इस आलेख के द्वारा हम आपको पृथ्वी की उत्पत्ति, बचपन से आज तक की
क्रमिक एतिहासिक यात्रा पर ले चलते हैं।....प्रस्तुत है इस श्रृंखला का अंतिम भाग पांच ..खंड ब. मानव का सामाजिक विकास |
( सृष्टि व ब्रह्मान्ड रचना पर वैदिक,
भारतीय दर्शन, अन्य दर्शनों व आधुनिक-विज्ञान के समन्वित मतों के प्रकाश में इस यात्रा
हेतु -- मेरा आलेख ..मेरे ब्लोग …श्याम-स्मृति the world of my thoughts...,
विजानाति-विजानाति-विज्ञान , All India
bloggers association के ब्लोग …. एवं e- magazine…kalkion Hindi तथा पुस्तकीय रूप में मेरे महाकाव्य "सृष्टि -ईशत इच्छा या बिगबैंग - एक अनुत्तरित उत्तर" पर पढा जा सकता है| ) -----
इस भाग को दो खण्डों में वर्णित किया जायगा....
(अ) मानव का संरचनात्मक विकास
(ब) मानव सभ्यता का विकास
(अ) मानव का संरचनात्मक विकास
जल में जीवन व प्रथम कोशिका उत्पत्ति से मत्स्य, स्थलीय प्राणी व वानर बनने के क्रम में --- छुद्र ग्रहों के पृथ्वी पर प्रहार- बम्बार्डमेंट,
महाद्वीपों के निर्माण व विनाश, वातावरण के क्रमिक रासायनिक व भौतिक बदलाव... ज्वालामुखीय
घटनाओं, किसी उल्का-पिण्ड
के प्रभाव, मीथेन
हाइड्रेट के गैसीकरण, समुद्र के जलस्तर में परिवर्तनों, ऑक्सीजन में
कमी की बड़ी घटनाओं या इन घटनाओं के किसी संयोजन आदि -- के कारण पृथ्वी पर
जीवन का लगातार बार-बार निर्माण व विनाश का क्रम
चलता रहा। प्रकृति ने भी हर बार नवीन प्रयोग किेये, प्रत्येक
बार नवीन जीव-सृष्टि उत्पन्न होती रही जो वातावरण व जीवन-संघर्ष के अधिकाधिक उपयुक्त थी। अनुपयुक्त जीव-सृष्टि नष्ट हो जाती थी व शेष.. जीवन को आगे विकसित
करके अपनी आगे की पीढी को अधिकाधिक उपयुक्तता प्रदान करती थी...शारीरिक संरचना व जीवन
प्रक्रियाओं में भी उसी प्रकार परिवर्तन व उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) आते गये। समर्थ प्रजातियों में से कुछ जीव म्यूटेशन या
विपर्यय-प्रज़नन द्वारा नवीन प्रजातियों की उत्पत्ति भी करते
गये। जो प्रथम मानव की उत्पत्ति तक चलता रहा। साथ ही साथ जीवन
के अन्य सभी रूपों में एक साथ विकास जारी रहा।
एक बार पुनः जल ( महासागर ) में ---- यद्यपि --पैलियोशीन काल में, स्तनधारी
जीवों में तेजी से विविधता उत्पन्न हुई, उनके आकार में
वृद्धि हुई और वे प्रभावी कशेरुकी जीव बन गए| परन्तु इन प्रारंभिक जीवों का
अंतिम आम पूर्वज शायद इसके 2 मिलियन वर्षों (लगभग 63 Ma में) बाद समाप्त हो गया| कुछ
ज़मीनी-स्तनधारी महासागरों में लौटकर गए, जिनसे अंततः डाल्फिनों
व ब्लयू-व्हेल आदि महासागरीय जीवन का विकास हुआ | ऊपर---चित्र-१---जलीय जीव से मत्स्य एवं बानर व मानव की उत्पत्ति का क्रम .... चित्र-२.. जलीय-जीव
से
मानव-आकृति तक के क्रमिक उत्पत्ति-विकास क्रम का चित्रान्कन
इस प्रकार सेनोज़ोइक युग (नव--काल) में .. लगभग 6 मिलियन के आस-पास पाया जाने वाला स्तनधारी छोटा अफ्रीकी वानर के वंशजों में आधुनिक मानव व उनके निकटतम संबंधी, बोनोबो तथा चिम्पान्ज़ी दोनों शामिल थे---कुछ कारणों से एक शाखा के वानरों ने सीधे खड़े होकर चल सकने की क्षमता विकसित कर ली | उनके मस्तिष्क के आकार में तीव्रता से वृद्धि हुई और 2 मिलियन तक, होमो -वंश के पहले प्राणी का जन्म हुआ। इसी समय के आस-पास, आम चिम्पांज़ी के पूर्वजों और बोनोबो के पूर्वजों के रूप में दूसरी शाखा निकली । और जीवन के अन्य सभी रूपों में एक साथ विकास जारी रहा।
चित्र-३—मानव के पूर्वज की विभिन्न शाखाये….
आधुनिक मानव (होमो सेपियन्स ) की उत्पत्ति--- लगभग 200,000
वर्ष पूर्व या और अधिक पूर्व अफ्रीका में हुई |
आध्यात्मिकता के संकेत देने वाले पहले मानव - नियेंडरथल वे अपने मृतकों को दफनाया करते थे, अक्सर भोजन या उपकरणों
के साथ | परन्तु इसका कोई वंशज शेष नहीं बचा
|
अधिक परिष्कृत विश्वासों के साथ मानव - क्रो-मैग्नन - गुफा-चित्रों, पत्थर की कुछ आकृतियां बनाने वाले व जादुई या धार्मिक
महत्व वाले मानव की उत्पत्ति लगभग 32,000
वर्ष के
उपरान्त ही लगभग हुई होगी क्योंकि गुफ़ा चित्र ३२०००
वर्ष तक नहीं मिलते। क्रो-मैग्ननों ने अपने पीछे पत्थर की कुछ आकृतियां जैसे विलेन्डॉर्फ का
वीनस, भी छोड़ी हैं|
11,000
वर्ष पूर्व की अवधि तक आते-आते, होमो सेपियन्स विश्व
भर में फ़ैल गए व
दक्षिणी-अमरीका के दक्षिणी छोर तक पहुंच गये, जो कि अंतिम निर्जन
महाद्वीप था | औज़ार व हथियार आदि उपकरणों का प्रयोग और
संवाद में सुधार जारी रहा और पारस्परिक संबंध अधिक जटिल होते गए |
यद्यपि अभी तक मानव का प्रथम अवतरण अफ़्रीका में माना जाता रहा है …. परन्तु आधुनिकतम खोजों से मानव का उद्भव व विकास एशिया से ही सिद्ध होता है। प्रोसीदिंग्स ऑफ
नॅशनल एकेडेमी ऑफ साइंसेज के अनुसार -- म्यामार में अन्थ्रोपोइड्स... [ मानव के पूर्वज ..बानर, (मंकी ) , लंगूर
(एप्स) व पूर्व-मानव ]... के दांतों के जीवाश्म (फौसिल) प्राप्त हुए हैं जो
अफ्रीका व एशिया के ‘मिसिंग लिंक्स ‘ हैं| वे एशिया में उत्पन्न हुए व अफ्रीका में स्थानांतरित होकर गए|
..
चित्र-४--- मानव- इतिहास का
पुनर्लेखन… टाइम्स ऑफ इंडिया ..साभार
मानव का जन्म भारतीय भूखंड पर होने के प्रमाण--वस्तुतः प्रत्येक भूखंड...(भूगर्भीय प्लेट
)..पर अपने समयानुसार ..मानव उद्भूत हुआ परन्तु ... उचित जीवन विकास योग्य वातावरण
के अभाव में नष्ट होता रहा...जैसा चित्र ३ में वर्णित लुप्त मानव शाखाओं से पता
चलता है |
भारतीय-टेक्टोनिक प्लेट सदा से ही प्रत्येक
हलचल में पृथक अस्तित्व में रही है....१३०० मि. सुपर कोंटीनेंट रोडेनिया के
समय भी ....पेंजिया के समय भी एवं गोंडवाना लेंड.. के विघटन पर विभिन्न
महाद्वीप बनने के समय से भारतीय-भूखंड बनने तक भी ... अतः इस भूखंड पर जीवन सबसे
अधिक काल तक रहा |
विभिन्न मानव प्रजातियों का लुप्त होना भी....सुपर कोन्टीनेन्ट..पेन्ज़िया (२५० मिलियन वर्ष) के लारेशिया व गोन्डवाना में टूटने पर व गोंडवाना लेंड के स्थलीय महाद्वीपों के पुनः-पुनः जुडने- बिखरने के कारण
होता रहा, जिसका मुख्य भाग, भारतीय भूभाग था । पुनः जब बाल्टिक व साइबेरिया जुडकर यूरेशिया बना तथा आस्ट्रेलिया गोन्डवाना से अलग हुआ, चाइना भाग युरेशिया के एक ओर तथा भारतीय भूभाग युरेशिया के मध्य में स्थिर हुआ और पृथ्वी
का सबसे स्थिर भूभाग बना ( ….जो बाद में पृथ्वी का सबसे उपजाऊ व समृद्ध क्षेत्र बना और मानव की प्रथम जन्म भूमि व प्रथम पालना…..)
हिमालय की उत्पत्ति.... ४०-५० मिलियन वर्ष पहले
टीथिस सागर के स्थान पर प्रारम्भ हुई ..गोंडवाना लेन्ड के विखंडन व भारतीय प्लेट के उत्तरीय प्लेट से टकराने से ५--६
मि. में टेथिस –समुद्र लुप्त होने लगा
व ३ मि.में उसके स्थान पर तिब्बत के पठार ने ले लिया तथा हिमालय शिवालिक
श्रेणी की उत्पत्ति हुई | भारतीय टेक्टोनिक प्लेट के उत्तरी भाग के डूबने पर शेष गोंडवाना लेंड के भाग से द. भारतीय भूखंड
बना | भारत
में आज भी गोंडवाना लेंड
मौजूद है|
लगभग ५ से २ मि. तक हिमालय श्रेणी विक्सित होती
रही व आज भी विकासमान है|
---
अतः उत्तरीय हिम-प्रदेशीय हवाओं से सुरक्षित क्षेत्र होने से पृथ्वी के
अन्य स्थानों की अपेक्षा जीवन के सर्वाधिक उपयुक्त होने के कारण ...प्राणी का तेजी
से विकास हुआ, और लघु बानर से मानव का जन्म स्थल भारत बना....एवं लगभग २ मि. में होमो वंश के पहले प्राणी ...आधुनिक मानव का जन्म
यहीं हुआ|
यही समय ५-६ मि. मानव के उद्भव का भी निश्चित हुआ
है...|
अन्य प्रमाण
----भारतीय पौराणिक-कथायें.....
१- अवतार कथायें…मत्स्यावतार से वामन अवतार तक….व आगे
......मत्स्य से छोटा -वानर के उद्भव व पुनः उन्नत -मानव के उद्भव व विकास की कथा से मेल खाती है।
२-जम्बू-द्वीप का
वर्णन – वस्तुतः जीवमय सम्पूर्ण विश्वखंड को गोन्डवना लेन्ड या भारत या जम्बू द्वीप कहा गया है जो... = भारत+अफ़्रीका+साउथ पोल+आस्ट्रेलिया+ चाइना…युक्त भूमि थी| राजा सगर के रथ के पहियों से सात सागर व सात
महाद्वीप बनने की कथा ...अर्थात समस्त जम्बू-द्वीप के बनने का वर्णन...
३-सुमेरु ..आज मानव निवास की
सबसे ऊंची चोटी हिमालय की बंदर-पूंछ चोटी है....जिसे सुमेरु भी कहा
जाता है.. अर्थात बन्दर की पूंछ लुप्त होकर मानव बनने का स्थान | सुमेरु विश्व की सबसे
प्राचीन सभ्यता का स्थान कहा जाता है|
४-
हिमालय की पुत्री पार्वती व शिव ... से आगे मानव जाति के कल्याण की कथाएं ..अर्थात मानव का विकास व वृद्धि ..
५- मनाली ...प्रथम
मानव मनु की तपस्या स्थली मनाली हिमाचल प्रदेश में स्थित है |
मानव का
विश्व भर में प्रयाण ... निरंतर विकास के उपरांत मानव जनसंख्या विकास के अगले चरण में ...मानव भारतीय भूभाग से उत्तर-पश्चिम की ओर से ..अफ़्रीका,
योरोप, एशिया,
चाइना, और ग्रेट-बेरियर रीफ़ पार करके उत्तरी अमेरिका पहुंचा,…वहां से दक्षिण -अमेरिका-( जो इस समय तक लारेशिया के विघटन से लारेन्शिया…उत्तरी अमेरिका व गोन्डवाना के विघटन व द.अमेरिकी भूभाग के बनने पर आपस में जुड चुके थे-)-- तत्पश्चात.. विभिन्न महाद्वीपों के विचलन व वातावरण के परिवर्तन..बार बार हिमयुग…आदि के कारण…मानव…..पूरे भूभाग पर एक स्थान से दूसरे स्थान पुनः पुनः परिवर्तन
व
गति करता रहा। अतः विभिन्न स्थानों पर अवशेष-फ़ौसिल्स आदि मिलने पर …आधुनिक वैग्यानिकों द्वारा उसी स्थान के नाम से ..उसे पुकारा जाने लगा।
आर्य
जाति.. प्रथम सुसंस्कृत मानव समूह...सिंधु
क्षेत्र में जन्म व विकास होने के उपरांत... पूर्व में गंगा क्षेत्र की
तरफ बढे... हिन्दुस्तान ....ब्रह्मावर्त..की स्थापना एवं सुदूर पूर्व में फैले
,..... दक्षिण की ओर ..विन्ध्य पार
करके दक्षिण भारत में स्थापित हुए | जो अगस्त्य मुनि की कथा से तादाम्य
करता है| इस प्रकार सम्पूर्ण भारत में स्थापित हुए|
मानव के वैज्ञानिक - विकास का क्रम....
अग्नि की खोज व प्रयोग - आग का प्रयोग
संभवतः प्रारंभिक
मानव -पैलियोलिथिक
होमिनिड ..होमो हैबिलिस –द्वारा किया जाता था | अग्नि को नियंत्रित
कर पाने की क्षमता शायद होमो इरेक्टस में शुरु हुई,
790,000 वर्ष पूर्व |
भारतीय वैदिक व पौराणिक देव अग्निदेव एवं
अंगिरा ऋषि-कुल को अग्नि के प्रथम आविष्कारक कहा जा सकता है | यज्ञ की परम्परा भी
अग्नि के आविष्कार व सर्व-प्रथम प्रयोग प्रमाण हैं|
भाषा की उत्पत्ति व
सामूहिकता का उद्भव - - जैसे-जैसे मस्तिष्क का आकार बढ़ा, इसके परिणामस्वरूप उनकी
सीखने की क्षमता में वृद्धि हुई, भावनाएं, विशिष्ट-कौशल, विशेषज्ञता, अनुभव-विशिष्टता
के कारण मनुष्य को एक दूसरे पर निर्भरता
की एक लंबी अवधि की आवश्यकता पड़ने लगी अतः सामूहिकता, सहजीवन व
सामाजिकता का विकास हुआ| सामाजिक कौशल अधिक जटिल बन गए तो
आपस में समन्वय व समझ हेतु ... इशारों के पश्चात भाषा विक्सित व परिष्कृत हुई, विविध विधियां, प्रक्रियाएं व उपकरण विक्सित व विस्तरित हुए| जिसने
आगे और अधिक सहयोग तथा बौद्धिक विकास में योगदान दिया| चित्र-५ –मानव का विकास (ब) मानव-सभ्यता का विकास --
युगों तक प्रारंभिक होमो
सेपियन घूमंतू शिकारी-संग्राहक -- के रूप में छोटी टोलियों में रहा करते थे | जैसे जैसे मस्तिष्क व सामाजिकता का विकास होता गया,
सांस्कृतिक विकास की प्रक्रिया तीब्रतर होती गयी|
सांस्कृतिक
उत्पत्ति व कृषि एवं पशुपालन -- ने सांस्कृतिक उत्पत्ति के साथ जैविक उत्पत्ति व विकास का भी रूप ले लिया| लगभग
8500 और 7000 ईपू के बीच, मध्य पूर्व के उपजाऊ अर्धचन्द्राकार क्षेत्र
में रहने वाले मानवों ने वनस्पतियों व पशुओं के व्यवस्थित पालन की व्यवस्था कृषि शुरुआत की जो प्रारम्भ में खानाबदोश थे व विभिन्न
क्षेत्रों में घूमते रहते थे |
यह अर्ध-चंद्राकार क्षेत्र वास्तव में भारतीय भूभाग का ब्रह्मावर्त
क्षेत्र था जहां सर्वप्रथम कृषि व पशुपालन प्रारम्भ हुआ| मथुरा-गोवर्धन
क्षेत्र विश्व में प्रथम पशुपालन व कृषि सभ्यताएं थीं, जिसका वर्णन ऋग्वेद
में भी है |
स्थाई बस्तियों का विकास— कृषि का प्रभाव
दूर दूर तक पड़ोसी क्षेत्रों तक फैला
व अन्य स्थानों पर स्वतंत्र रूप से भी विकसित हुआ | कृषि व पशु-पालन की विभिन्न स्थिर पद्धतियों के
विकास ने मानव को खानाबदोश जीवन की बजाय एक स्थान पर स्थिर होकर रहने को वाध्य
किया और मानव (होमो सेपियन्स ) कृषकों के रूप में
स्थाई बस्तियों में स्थानबद्ध हुए |
जनसंख्या वृद्धि - सभी
समाजों ने खानाबदोश जीवन का त्याग नहीं किया—अतः वहाँ सभ्यता तेजी से नहीं बढ़ी
|विशेष रूप से जो पृथ्वी के ऐसे क्षेत्रों में निवास करते थे, जहां घरेलू बनाई जा सकने वाली वनस्पतियों व पशु-पालन योग्य प्रजातियां बहुत कम थीं (जैसे ऑस्ट्रलिया, ) ... कृषि को न अपनाने वाली
सभ्यताओं में, कृषि द्वारा प्रदान की गई सापेक्ष-स्थिरता व बढ़ी एवं स्थिरता के कारण जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्ति बढ़ी |
पृथ्वी की पहली उन्नत सभ्यता विकसित -- कृषि का एक महत्वपूर्ण
प्रभाव पड़ा; मनुष्य वातावरण
को अभूतपूर्व रूप से प्रभावित करने लगे | अतिरिक्त खाद्यान्न ने
एक पुरोहिती या संचालक वर्ग को जन्म दिया, जिसके बाद श्रम-विभाजन में वृद्धि हुई| परिणामस्वरूप मध्य पूर्व के सुमेर में 4000
और 3000 ईपू पृथ्वी की
पहली सभ्यता विकसित हुई | शीघ्र ही सिंधु नदी की घाटी, प्राचीन मिस्र तथा
चीन में अन्य सभ्यताएं विकसित हुईं|
वास्तव में सुमेरु हिमालयन क्षेत्र का
केन्द्र-स्थान है, यहीं कैलाश पर्वत व मानसरोवर झील क्षेत्र है जो महादेव का
धाम है | यहीं से विश्व की सर्व -प्रथम
उन्नत सभ्यता भारतीय सभ्यता देव-सभ्यता के नाम से सर्व-प्रथम विक्सित हुई | पुनः
सिंधु-क्षेत्र में आर्य-सभ्यता के नाम से विक्सित हुई व् ब्रह्मावर्त के
अर्धचंद्राकार क्षेत्र में स्थापित हुई|
आज मानव निवास की सबसे
ऊंची चोटी हिमालय की बंदर-पूंछ चोटी है....जिसे सुमेरु भी कहा जाता
है.. अर्थात बन्दर की पूंछ लुप्त होकर मानव बनने का स्थान | सुमेरु विश्व की सबसे
प्राचीन सभ्यता का स्थान कहा जाता है|
धर्मों का विकास -- 3000 ईपू, हिंदुत्व - विश्व
के प्राचीनतम धर्मों में से एक, जिसका पालन आज भी किया
जाता है, की रचना शुरु हुई. इसके बाद शीघ्र ही
अन्य धर्म भी
विकसित हुए जो वस्तुतः ज्ञान व
अनुभव के वैज्ञानिक आधार पर रचित सामाजिक व्यवस्थाएं थीं | हिंदुओं के पारंपरिक -मौखिक ज्ञान – वैदिक साहित्य
ने विश्व-समाज में धर्म, समाज, साहित्य, कला व विज्ञान की उन्नति व विकास में
अभूतपूर्व योगदान दिया |
सभ्यता के इतिहास का
अंधकार-मय काल....( डार्क पीरियड ऑफ हिस्ट्री )...
भारतीय विद्वान मानव जाति के
स्वर्णिम युग --वैदिक-युग का काल १०००० हज़ार ई.पू. का मानते हैं | महाभारत
युद्ध ( ५५००-३००० ई.पू.) एक विश्व-युद्ध था एवं जैसे वर्णन मिलते हैं वह
एक परमाणु-युद्ध था जिसमें भीषण जन-धन-संसाधन व स्थानों व जातियों-कुलों व
संस्कृति का विनाश हुआ | सभ्यता के महा-विनाश से इस काल के आगे का इतिहास प्राय:
अँधेरे में है| विश्व भर के लिए प्रेरक, उन्नायक व उन्नति-कारक भारतीय-सभ्यता के अज्ञानान्धकार
में डूब जाने से सारे विश्व इतिहास का ही यह एक अन्धकार-मय काल रहा | जिसमें
सभ्यता का कोइ विकास नहीं हुआ| .......अंतत लगभग ५०० ई.पू में नई-सभ्यता के चिन्ह
प्राप्त होते हैं|
नई सभ्यताओं का विकास( मध्यकाल ) –
भाषा व लेखन के आविष्कार--- ने जटिल समाजों के
विकास को सक्षम बनाया था | मिट्टी की तख्तियों, लौह-पत्र, ताम्र-पत्र, शिला-लेख,
चर्म, सिल्क एवं भोज-पत्र का लेखन हेतु उपयोग ने प्राचीन ग्रंथों व ज्ञान
के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी | वैदिक युग से महाभारत-काल तक विश्व व
भारतीय सभ्यता के स्वर्ण-काल में संस्कृत भाषा व भोजपत्रों पर लिखित ग्रंथों का
सभ्यता के विकास में अति-महत्वपूर्ण योगदान था |
महाभारत काल- (५५००-३००० ईपू ) के पश्चात पुनः लगभग ५०० ई.पू. में विज्ञान के प्राचीन रूप में विभिन्न विषय विकसित हुए जो मानव के सुख-सुविधा के हेतु बने |
नई सभ्यताओं का विकास हुआ जो एक दूसरे के साथ व्यापार किया करतीं थीं और
अपने इलाके व संसाधनों
के लिये युद्ध किया करतीं थीं|
के लिये युद्ध किया करतीं थीं|
साम्राज्यों का विकास ---500 ईपू के आस-पास मध्य-पूर्व, ईरान, भारत, चीन
और ग्रीस, रोमन साम्राज्य आदि विभिन्न सभ्यताओं के केन्द्र थे इन सभी में
लगभग
एक जैसे साम्राज्य थे जो आपस में एक दूसरे से युद्ध में रत रहते थे और
हारते व जीतते रहते थे इसप्रकार देशों के अधिकार क्षेत्र व् सीमा-क्षेत्र
घटते व
बढ़ते रहते थे | युद्ध के कारण मूलतः व्यापार या प्रयोगार्थ संसाधन हुआ करते
थे|
कभी-कभी व्यक्तिगत झगड़े व स्त्रियाँ भी |
विश्वविद्यालयों (प्राचीनतम शिक्षा
केन्द्र– भारतीय वि.वि. तक्षशिला व नालंदा थे ) द्वारा ज्ञान के
प्रसार को सक्षम बनाया गया | पुस्तकालयों के उद्भव ने ज्ञान के
भण्डार का कार्य किया और ज्ञान व जानकारी के सांस्कृतिक संचरण को आगे बढ़ाया
| भारत में इस काल में एक पुनर्जागरण हुआ जिसके कारण इस युग में
भी भारत व भारतीय-सभ्यता विश्व में सिरमौर बन चुकी थी| अब
मनुष्यों को अपना सारा समय केवल अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिये कार्य करने
में खर्च नहीं करना पड़ता था- जिज्ञासा और शिक्षा
ने ज्ञान तथा बुद्धि द्वारा नई-नई खोजों की प्रेरणा दी|
आधुनिक विज्ञान का युग
प्रथम
शताब्दी में कागज़ के आविष्कार (१०५ ई....त्साई लूँ ..चीन का हान-साम्राज्य ) व चौथी शताब्दी से पूर्ण
प्रचलन में आने पर एवं मुद्रण-कला (१४३९ई. ..जर्मनी के गुटेनबर्ग
द्वारा ) के आविष्कार से ज्ञान-विज्ञान व उसका संरक्षण तेजी से बढ़ा |
चौदहवीं सदी में, धर्म, कला व विज्ञान में तेजी से हुई
उन्नति के साथ ही इटली से पुनर्जागरण काल ( रेनेशां )
का प्रारम्भ
हुआ| जो पूरे योरोप में फ़ैल गया| पुनर्जागरण सचमुच वर्तमान युग का आरंभ है। सन 1500ई. में वास्तव में यूरोपीय सभ्यता की नवीनीकरण
की शुरुआत हुई, जिसने वैज्ञानिक तथा औद्योगिक क्रांतियों को जन्म दिया, जिसके
बल पर उस महाद्वीप द्वारा पूरे ग्रह पर फैले मानवीय समाजों पर राजनैतिक और
सांस्कृतिक प्रभुत्व जमाने के प्रयास से सन 1914
से 1918 तथा 1939 से 1945t
तक, पूरे विश्व के देश विश्व-युद्धों में उलझे रहे |
यह वास्तव में योरोप द्वारा उच्च-ज्ञान,उन्नत-सभ्यता
व सुस्संकारिता का प्रथम स्वाद था जो भारतीय ज्ञान-विज्ञान, लूटे हुए शास्त्रादि-पुस्तकें व अकूत धन,
खजाने आदि .. के अरब व्यापारियों,
मुस्लिम आक्रान्ताओं व अन्य योरोपीय व ब्रिटिश साम्राज्यवादियों द्वारा मध्य-एशिया
से योरोप तक फैलाये जाने से प्राप्त हुआ| जिनके आधार पर व प्रकाश में योरोप
में वैज्ञानिक नवोन्नति व औद्योगिक क्रान्ति हुई|
सांस्कृतिक दृष्टि से यह युग अधि-भौतिकता के विरुद्ध भौतिकता का एवं मध्ययुगीन सामंती अंकुशों-अत्याचारों से व्यथित
समाज द्वारा सामाजिक अंकुशों के विरुद्ध व्यवस्था है। यह कथित रूप में व्यक्तिवाद व अंधविश्वास के विरुद्ध विज्ञान के संघर्ष का युग था
|
यह भारतीय
प्रभाव में यूनानी और रोमन शास्त्रीय विचारों के पुनर्जन्म का काल था | परन्तु
भारतीय ज्ञान-विज्ञान के दर्शन व धर्म से समन्वय नीति को न समझ पाने के कारण पुनर्जागरण
के साथ प्रक्षन्न मानववाद भी पनपा| अर्थात लौकिक मानव के ऊपर अलौकिकता,
धर्म और वैराग्य को
महत्व नहीं चाहिए। जिसने अंत में उसी व्यक्तिवाद को जन्म दिया जिसके विरुद्ध
विज्ञान का संघर्ष प्रारम्भ हुआ था| इसने एक नए शक्तिशाली मध्यवृत्तवर्ग को भी जन्म दिया, बौद्धिक
जीवन में एक क्रांति पैदा की।
पुनर्जागरण और सुधार आंदोलन दोनों पाश्चात्य प्राचीन पंरपराओं से प्रेरणा लेते थे, और नए सांस्कृतिक मूल्यों का निर्माण करते थे।
अठारहवीं सदी तर्क और रीति का
उत्कर्षकाल व पुनर्जागरण काल की समाप्ति है। तर्कवाद और यांत्रिक भौतिकवाद का विकास हुआ| धर्म की जगह, मनुष्य
के साधारण सामाजिक जीवन, राजनीति, व्यावहारिक नैतिकता इत्यादि पर जोर | यह आधुनिक गद्य के विकास का युग भी
है। दलगत संघर्षों, कॉफी-हाउसों
और क्लबों में
अपनी शक्ति के प्रति जागरूक मध्यवर्ग की नैतिकता ने इस युग में पत्रकारिता को जन्म दिया।-
उन्नीसवीं सदी में ---रोमैंटिक युग में फिर व्यक्ति की आत्मा का उन्मेषपूर्ण और उल्लसित स्वर
सुन पड़ता है| तर्क की जगह सहज गीतिमय अनुभूति और कल्पना; अभिव्यक्ति में साधारणीकरण की जगह
व्यक्ति निष्ठता; नगरों के कृत्रिम जीवन से प्रकृति और एकांत की ओर मुड़ना; स्थूलता की जगह सूक्ष्म आदर्श
और स्वप्न, मध्ययुग और प्राचीन इतिहास का आकर्षण; मनुष्य में आस्था | विक्टोरिया के युग में जहाँ एक ओर जनवादी विचारों
और विज्ञान पर अटूट विशवास जन्म हुआ वहीं क्रान्तिवादिता का भी जन्म हुआ|
वीसवीं सदी ---- फासिज्म, रूस की समाजवादी क्रांति, समाजवाद की स्थापना और पराधीन देशों के स्वातंत्र्य संग्राम; प्रकृति पर विज्ञान की विजय व नियंत्रण से सामाजिक विकास की अमित संभावनाएँ और उनके साथ
व्यक्ति व जीवन की संगति-समन्वय की समस्यायें- अति-भौतिकतावाद से उत्पन्न
..पर्यावरण, प्रदूषण, भ्रष्टाचार, अनैतिकता, अनाचार , स्वच्छंदता आदि...भी उत्पन्न
हुईं । व्यक्तिवादी आदर्श का विघटन तेजी से हुआ अतः यौन कुंठाओं के
विरुद्ध भी आवाज उठी। जिसमें चिंता, भय और दिशाहीनता और विघटन की प्रवृत्ति की प्रधानता
है।
फिर से भारत -----भारतीय दृष्टि से अंधकार-युग के पश्चात विश्व के
सामंती युग का प्रभाव भारत पर भी रहा| अपनी सांस्कृतिक धरोहर की विस्मृति
से उत्पन्न राजनैतिक अस्थिरता के कारण उत्तर–पश्चिम की असभ्य व
बर्बर जातियों के अधार्मिक, खूंखार व अनैतिक चालों से देश गुलामी में फंसता
चला गया | योरोप के पुनर्जागरण से बीसवीं शताब्दी तक विश्व के सभी देश भारत
पर अधिकार को लालायित रहे एवं योजनाबद्ध तरीकों से भारतीय पुस्तकालयों, विश्वविद्यालयों, शैक्षिक
केन्द्रों, संस्कृति का विनाश व प्राचीन शास्त्रों की अनुचित
व्याख्याओं द्वारा उन्हें हीन ठहराने के प्रयत्नों में लगे रहे| जिसमें असत्य
वैज्ञानिक, दार्शनिक, व साहित्यिक तथ्यों का सहारा भी लिया जाता रहा, ताकि भारतीय
अपने गौरव को पुनः प्राप्त न कर पायें एवं उनका साम्राज्य बना रहे| परन्तु १९ वीं
सदी में भारतीय नव-जागरण काल प्रारम्भ हुआ और भारतीय स्वाधीनता संग्राम द्वारा
१९४७ ई. में विदेशी दासता के जुए को उतार कर भारत एक बार फिर अपने मज़बूत पैरों पर
उठ खडा हुआ है अपने समर्थ, सक्षम, सुखद अतीत के ज्ञान-विज्ञानं को नव-ज्ञान से
समन्वय करके अग्रगण्य देशों की पंक्ति में |
समाज का वैश्वीकरण
प्रथम विश्वयुद्ध (१९१४—१९१८ ) के बाद स्थापित लीग ऑफ नेशन्स विवादों को
शांतिपूर्वक सुलझाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की स्थापना की ओर पहला कदम
था| जब यह द्वितीय विश्वयुद्ध को रोक पाने में विफल रही, तो इसका स्थान संयुक्त राष्ट्र संघ ने ले लिया| द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद विश्व क्षितिज पर नई शक्ति अमेरिका
का उदय हुआ जो संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय भी बना| 1992
में अनेक यूरोपीय राष्ट्रों ने मिलकर यूरोपीय संघ की स्थापना की. परिवहन
व संचार में सुधार होने के कारण, पूरे विश्व में
राष्ट्रों के राजनैतिक मामले और अर्थ-व्यवस्थाएं एक-दूसरे के साथ अधिक गुंथी हुई
बनतीं गईं| इस वैश्वीकरण ने
अक्सर टकराव व सहयोग दोनों ही उत्पन्न किये हैं, जो
विभिन्न द्वंद्वों को जन्म देते रहते हैं |
कम्प्युटर युग--
बीसवीं सदी से प्रारम्भ, वर्त्तमान
इक्कीसवीं सदी में कम्प्युटर व सुपर-कम्प्युटर के विकास ने मानव व सभ्यता
के सर्वांगीण विकास को को नई-नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है | आज मानव सागर के अतल
गहराइयों से लेकर आकाश की अपरिमित ऊंचाइयों को छानने में सक्षम है और मानव व्यवहार
के दो मूल क्षेत्र –विज्ञान व अध्यात्म दोनों ही को यदि अतिवाद से परे ..समन्वित
भाव में प्रयोग-उपयोग किया जाय तो वे भविष्य में एक महामानव
के विकास की कल्पना को
सत्य करने में सक्षम हैं | जो शायद आपसी द्वंद्वों से परे व्यवहार कुशल-सरल मानव
होगा |
चित्र ५- आधुनिक मानव का सामाजिक विकास