शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

सृष्टि व ब्रह्माण्ड भाग १.

जिस दिन मानव ने ज्ञान का फ़ल चखा,उसने मायावश होकर प्रकृति के विभिन्न रूपों को भय,रोमान्च,आश्चर्य व कौतूहल से देखा और उसी क्षण मानव के मन मेंईश्वर,गौड, रचयिता,खुदा,कर्ता का आविर्भाव हुआ। उसकी खोज के परिप्रेक्ष्य मेंब्रह्मांड, सृष्टि
व जीवन की उत्पत्ति का रहस्य जाननाप्रत्येक मस्तिष्क का लक्ष्य बन गया।
इसी उद्देश्य यात्रा मेंमानव की क्रमिक भौतिक उन्नति, वैज्ञानिक व दार्शनिक उन्नति के आविर्भाव की गाथा है। आधुनिक --विज्ञान हो या दर्शन या पुरा-वैदिक - विज्ञान इसी यक्ष प्रश्न का उत्तर खोजना ही सबका का चरम लक्ष्य है ।
की गाथा है |
आधुनिक विज्ञान की मान्यता के अनुसार उत्पत्ति का मूल "बिग बेन्ग" सिद्दान्त है। प्रारम्भ में ब्रह्मांड एकात्मकता की स्थिति में( सिन्ग्यूलेरिटी) में शून्य आकार व अनन्त ताप रूप (इन्फ़ाइनाइट होट) था। फ़िर -----
.-अचानक उसमें एक विष्फ़ोट हुआ-बिग बेन्ग, और
१/१००० सेकन्ड में तापक्रम १०० बिलिअन सेंटीग्रेड होगया, घनीभूत ऊर्ज़ा व
विकिरण के मुक्त होने से आदि-ऊर्ज़ा उपकण उत्पन्न होकरनन्त ताप के कारण
विखन्डित होकर एक दूसरे से तीब्रता से दूर होने लगे। ये हल्के,भार
रहित,विद्युतमय व उदासीन आदि ऊर्ज़ा उपकण थे।जो मूलतः- इलेक्ट्रोन्स,
पोज़िट्रोन, न्युट्रीनोज़ व फ़ोटोन्स थे । सभी कण बराबर संख्या में थे एवन
उपस्थित स्वतन्त्र ऊर्ज़ा से लगातार बनते जा रहे थे। इस प्रकार एक
’कोस्मिक-सूप’ बन कर तैयार हुआ।
.-एनीहिलेशन
(सान्द्रीकरण) स्थिति- कणो के लगातार आपस में दूर-दूर जाने से तापक्रम कम
होने लगा एवम हल्के कण एक दूसरे से जुड कर भारी कण बनाने लगे,जो
१०००मिलियन: १ के अनुपात में बने। वे मुख्यतया ,प्रोटोन ,न्यूट्रोन व
फ़ोटोन्स थे। (जो -१०००मिलियन एलेक्ट्रोन्स या फ़ोटोन्स या पोज़िट्रोन्स
या न्यूट्रीनोस=१ प्रोटोन या न्यूट्रोन के अनुपात में बने।) ये एटम-पूर्व
कण थे जो लगातार बन रहे थे एवम उपस्थित ऊर्ज़ा से नये उप-कण उत्पन्न भी
होरहे थे, तापमान लगातार गिरने से बनने की प्रक्रिया धीमी थी।
३.-स्वतन्त्र केन्द्रक( न्यूक्लियस)
१४वे सेकन्ड मेंतीब्र अनीहिलेशन से जटिल केन्द्रक बनने लगे, १ प्रोटोन+ १
न्यूट्रोन=भारी हाइड्रोज़न(ड्यूटीरियम) के अस्थायी केन्द्रक व पुनः २
प्रोटोन+२ न्यूट्रोन से स्थायी हीलियम के केन्द्रक ,जो परमाणु पूर्व कण थे
बने।
.-बिग बेन्ग के तीन मिनट के अन्त में- शेष हल्के कण,न्यूट्रोन्स-प्रतिन्यूट्रोन्स, लघु केन्द्रक कणों के साथ ही
७३% हैदर व २७% हीलियम मौज़ूद थे । एलेक्ट्रोन्स नहीं बचे थे ।


इस समयआदि-कण बनने की्प्रक्रिया धीमी होने पर स्वतन्त्र ऊर्ज़ा के व
एलेक्ट्रोन्स आदि के न होने से आगे की विकास प्रक्रिया लाखों वर्षों तक
रूकी रही। यद्यपि कणों के तेजी से एक दूसरे से दूर जाने पर यह पदार्थ-
कोस्ममिक-सूप-कम घना होता जारहा था, अतः उपस्थित गेसों की एकत्रीकरण
(क्लम्पिन्ग) क्रिया प्रारम्भ होचली थी ,जिससे बाद में गेलेक्सी व तारे
आदि बनेने लगे।
५.-ऊर्ज़ा का पुनः निस्रण--लाखों
वर्ष बाद जब ताप बहुत अधिक कम होने पर,पुनः ऊर्ज़ा व एलेक्ट्रोन्स निस्रत
हुए; ये एलेक्ट्रोन, प्रोटोन्स व न्यूट्रोन्स से बने केन्द्रक के चारों ओर
एकत्र होकर घूमने लगे ,इस प्रकार प्रथम एटम का निर्माण
हुआ जो हाइड्र्प्ज़न व हीलियम गेस के थे। इसी प्रकार अन्य परमाणु, अणु, व
हल्के-भारी कण,गेसें ऊर्ज़ा आदि मिलकर विभिन्न पदार्थ बनने के प्रक्रिया
प्रारम्भ हुई।----
----न्युट्रिन+अन्टीनुट्रिनो+भारी एलेक्ट्रोन्स+केन्द्रक = ठोस पदार्थ, तारे,ग्रह पिन्ड आदि बने।
-----शेष एलेक्ट्रोन्स+पोज़िट्रोन्स +ऊर्ज़ा = तरल पदार्थ, जल आदि।
----फ़ोटोन्स(प्रकाश कण) +शेष ऊर्ज़ा + हल्के कण पदार्थ = नेब्यूला,गेलेक्सी आदि । इस प्रकार सारा
ब्रह्माण्ड बनता चलागया |


सम स्थिति सिद्धांत--विज्ञान
के इस एक अन्य सिद्दान्त के अनुसार,ब्रह्मांड सदैव वही रहता है, जैसे
-जैसे कण एक दूसरे से दूर होते हैं नया पदार्थ उन के बीच के स्थान को भरता
जाता है, तारों,
गेलेक्सियों आदि के बीच भी, यही प्रक्रिया चलती रहती है।
पुनः एकात्मकता--( या लय-प्रलय)--प्रत्येक
कण लगातार एक दूसरे से दूर होते जाने से ब्रह्मान्ड अत्यधिक ठन्डा होने
पर, कणों के मध्य आपसी आकर्षण समाप्त होने पर, पदार्थ कण पुनः विश्रन्खलित
होकर अपने स्वयम के आदि-कण रूप में आने लगते हैं, पदार्थ विलय होकर पुनः
ऊर्ज़ा व आदि कणों में संघनित्र होकर ब्रह्मांड एकात्मककता को प्राप्त
होता है,पुनः नय्र बिगबेन्ग व पुनर्स्रष्टि के लिये।


गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009

वैदिक युग में लक्ष्मी पूजन ----,संस्कृति ,मानव व्यवहार व दीपावली पर्व ----

भारतीय संस्कृति में कभी भी कर्म ,धर्म ,दर्शन विज्ञान को संसार ,भौतिकता व्यवहारिकता से पृथक नहीं माना है | वह दौनों में सामंजस्य करके चलने की प्रेरणा देता है | इशोपनिषद का कथन --
"" अन्धः तम् प्रविशन्ति ये सम्भूत्यः उपासते | ततो भूयः यऊ ये असम्भूत्यः रताः ||""-----वे जो संसार का व्यवहार पालन नहीं करते घोर कष्ट पाते हैं ; परन्तु वे और भी घोर कष्टों में घिरते हैं जो केवल संसारी कृत्यों में ही रमे रहते हैं |
इसी सामंजस्य का पर्व दीपावली व लक्ष्मी आवाहन का वैदिक साहित्य में इस प्रकार विभिन्न वर्णन है----
श्री सूक्त में वैदिक ऋषि कहता है--""महालक्ष्मी विघ्न्हे विष्णु पत्नी धीमहि |तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात ||""महालक्ष्मी को मैं जानता हूँ ,जिस विष्णु पत्नी का ध्यान करता हूँ, वह हमारे मन, बुद्धि को प्रेरणा दे |
""" शुचीनां श्रीमतां गेहे योग्भ्रश्तो अभिजायते | तां आवह जातवेदो लक्ष्मी मन पगामिनीम |
यस्यां हिरण्य विन्देय गामश्च पुरुशान्हम ||"""----अर्थात हे जातवेदस ! में सुवर्ण,गाय, घोडे व इष्ट मित्रों को प्राप्त कर सकूं , ऐसी अविनासी लक्ष्मी मुझे दें |
"""पद्मानने पद्मिनी पद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्म दलायाताक्षी विश्व प्रिये विश्व मनोनुकूले त्वत्पाद पद्मं मई संनिधास्त्व ||---हे कमल मुखी,कमल पर विराजमान,कमल दल से नेत्रों वाली , कमल पुष्पों को पसंद कराने वाली लक्ष्मी सदैव मेरे ह्रदय में स्थित हों |
"""ऊँ हिरण्य वर्णा हरिणीं सुवर्ण रज़स्त्राम चंद्रा हिरण्य मयी लक्ष्मी जात वेदों मआवः||"""----हे अग्नि! हरित, व हिरण्य वर्ण हार , स्वर्ण,रज़त सुशोभित चन्द्र और हिरण्य आभा देवी लक्ष्मी का आव्हान करो||

''''' तामं आवह जातवेदो लक्ष्मी मन पगामिनीम | यस्या हिरण्यं विदेयं गामश्च पुरुशान्हं अश्व्पूर्वा रथमध्याहस्तिनादं प्रमोदिनीम | श्रियं देवी मुपव्हायें श्रीर्मा देवी जुषतां ||"""----- हे हमारे गृह -अनल !आव्हान करो कि उस देवी का वास हो जो प्रचुर धन, प्रचुर गो,अश्व,सेवक,सुतदे, जिनके पूर्वतर ,मध्यस्थ,रथ, हस्ति रव से प्रवोधित पथ पर देवी का आगमन हो | यहे प्रार्थना है|

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

प्राचीन भारत में सर्जरी के कुछ दर्पण---




<----प्राचीन भारतीय शल्य चिकित्सा के यन्त्र व-शस्त्र( सुश्रुत संहिता)

ये आधुनिक इन्सट्रूमेन्ट्स के ही समान हैं, नाम ,शक्ल व कार्य में।











ऊपर--प्रख्यात भारतीय शल्य-चिकित्सक आचार्यवर सुश्रुत, कान की प्लास्टिक सर्जरी करते हुए। कान की सर्जरी का यह तरीका-सुश्रुत-विधि -कह्लाता है।

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मेरी फ़ोटो
लखनऊ, उत्तर प्रदेश, India
--एक चिकित्सक, शल्य-विशेषज्ञ जिसे धर्म, दर्शन, आस्था व सान्सारिक व्यवहारिक जीवन मूल्यों व मानवता को आधुनिक विज्ञान से तादाम्य करने में रुचि व आस्था है।