गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009

वैदिक युग में लक्ष्मी पूजन ----,संस्कृति ,मानव व्यवहार व दीपावली पर्व ----

भारतीय संस्कृति में कभी भी कर्म ,धर्म ,दर्शन विज्ञान को संसार ,भौतिकता व्यवहारिकता से पृथक नहीं माना है | वह दौनों में सामंजस्य करके चलने की प्रेरणा देता है | इशोपनिषद का कथन --
"" अन्धः तम् प्रविशन्ति ये सम्भूत्यः उपासते | ततो भूयः यऊ ये असम्भूत्यः रताः ||""-----वे जो संसार का व्यवहार पालन नहीं करते घोर कष्ट पाते हैं ; परन्तु वे और भी घोर कष्टों में घिरते हैं जो केवल संसारी कृत्यों में ही रमे रहते हैं |
इसी सामंजस्य का पर्व दीपावली व लक्ष्मी आवाहन का वैदिक साहित्य में इस प्रकार विभिन्न वर्णन है----
श्री सूक्त में वैदिक ऋषि कहता है--""महालक्ष्मी विघ्न्हे विष्णु पत्नी धीमहि |तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात ||""महालक्ष्मी को मैं जानता हूँ ,जिस विष्णु पत्नी का ध्यान करता हूँ, वह हमारे मन, बुद्धि को प्रेरणा दे |
""" शुचीनां श्रीमतां गेहे योग्भ्रश्तो अभिजायते | तां आवह जातवेदो लक्ष्मी मन पगामिनीम |
यस्यां हिरण्य विन्देय गामश्च पुरुशान्हम ||"""----अर्थात हे जातवेदस ! में सुवर्ण,गाय, घोडे व इष्ट मित्रों को प्राप्त कर सकूं , ऐसी अविनासी लक्ष्मी मुझे दें |
"""पद्मानने पद्मिनी पद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्म दलायाताक्षी विश्व प्रिये विश्व मनोनुकूले त्वत्पाद पद्मं मई संनिधास्त्व ||---हे कमल मुखी,कमल पर विराजमान,कमल दल से नेत्रों वाली , कमल पुष्पों को पसंद कराने वाली लक्ष्मी सदैव मेरे ह्रदय में स्थित हों |
"""ऊँ हिरण्य वर्णा हरिणीं सुवर्ण रज़स्त्राम चंद्रा हिरण्य मयी लक्ष्मी जात वेदों मआवः||"""----हे अग्नि! हरित, व हिरण्य वर्ण हार , स्वर्ण,रज़त सुशोभित चन्द्र और हिरण्य आभा देवी लक्ष्मी का आव्हान करो||

''''' तामं आवह जातवेदो लक्ष्मी मन पगामिनीम | यस्या हिरण्यं विदेयं गामश्च पुरुशान्हं अश्व्पूर्वा रथमध्याहस्तिनादं प्रमोदिनीम | श्रियं देवी मुपव्हायें श्रीर्मा देवी जुषतां ||"""----- हे हमारे गृह -अनल !आव्हान करो कि उस देवी का वास हो जो प्रचुर धन, प्रचुर गो,अश्व,सेवक,सुतदे, जिनके पूर्वतर ,मध्यस्थ,रथ, हस्ति रव से प्रवोधित पथ पर देवी का आगमन हो | यहे प्रार्थना है|

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लखनऊ, उत्तर प्रदेश, India
--एक चिकित्सक, शल्य-विशेषज्ञ जिसे धर्म, दर्शन, आस्था व सान्सारिक व्यवहारिक जीवन मूल्यों व मानवता को आधुनिक विज्ञान से तादाम्य करने में रुचि व आस्था है।