हमारा कश्मीर -2... सती देश ---
कश्मीर घाटी शिव की अर्धांगिनी ‘पार्वती’ का प्रदेश है। महाराजा कनिष्क ने बौद्ध धर्म का चौथा महा सम्मेलन इसी कश्मीर घाटी में आयोजित करवाया था। विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा के अवशेष श्रीनगर शहर से थोड़ी दूरी पर ही मिले हैं।
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इस्लाम तो कश्मीर-घाटी में चौदहवीं शताब्दी में आया। सभी जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर के स्वर्गीय मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला के पितामह पंडित बाल मुकंद रैना थे। अवन्तीपुरम, मार्तंडमंदिर (सूर्य मंदिर , मट्टन, श्रीनगर इत्यादि नाम हिंदू संस्कृति के प्रतीक हैं।
‘नीलमत-पुराण’ के अनुसार
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इस प्रदेश का नाम ‘सतिदेश’ था जिसकी आकृति किसी आधुनिक ‘डैम’ के समान थी। दोनों ओर ऊंची-ऊंची पर्वत शृंखलाएं और बीच में एक बड़ी लम्बी-चौड़ी विशालकाय झील। वर्षों पहले एक बालक एक विशेष उद्देश्य से ‘सतिदेश’ में आया। इस बालक का नाम ‘जलोदभव’ था जिसका अर्थ है पानी से पैदा हुआ। पानी में रह कर इसने तपस्या की और ‘ब्रह्मा’ जी से वरदान ले लिया कि ‘जब तक मैं पानी में रहूं मुझे कोई न मार सके।’ ब्रह्मा जी ने ‘तथास्तु’ कह दिया। बालक जलोदभव युवा हो गया। उसका दिमाग घूम गया। वह लोगों की मृत्यु का कारण बनने लगा, विनाश करने लगा। चारों तरफ इसने उत्पात मचा दिया। वह जिद्दी और क्रूर भी था। इसका पिता नील बेचारा परेशान हो उठा। उसे यह सब बर्दाश्त नहीं था।
नील अपने पिता कश्यप ऋषि के पास जलोदभव की शिकायत लेकर पहुंचा। कश्यप ऋषि ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास जलोदभव को ठिकाने लगाने की प्रार्थना करने लगे। विष्णु भगवान ने जलोदभव को सीधे रास्ते लगाने की कोशिश की परन्तु उसे तो ब्रह्मा ने वरदान दे रखा था कि जब तक वह पानी में रहेगा उसे कोई नहीं मार सकेगा। जब-जब जलोदभव को मारने का देवताओं ने यत्न किया वह ‘सतिसर’ झील में जा छुपता। देवताओं को चिंता सताने लगी कि जलोदभव को कैसे मारा जाए? नीलमता पुराण में ऐसी कथा आती है कि देवताओं ने निर्णय किया कि ‘सतिसर’ झील को ही सुखा दिया जाए। बारह स्थानों से ‘सतिसर’ झील को घेरे हुए पहाड़ों को चीरा जाने लगा। बारह सुरंगों से पानी आसमान को छूता हुआ ऊंची-ऊंची तरंगों से बहने लगा। जहां बारह सुरंगों का पानी निकला वहां ‘बारामूला’ शहर बसा। ‘सतिसर’ झील सूख गई। जलोदभव को छुपने को कहीं पानी नहीं मिला। परिणामस्वरूप भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से जलोदभव का सिर धड़ से अलग कर दिया। लोगों ने सुख की सांस ली।
बारामूला –
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--नाम संस्कृत के "वराहमूल" से उत्पन्न हुआ है और आज भी कश्मीरी भाषा में "वरमूल" कहलाता है। "वराह" का अर्थ (जंगली) सूअर होता है और "मूल" का अर्थ उसका पैना दांत है।[5] मान्यता है कि कश्मीर घाटी आदिकाल में एक सतिसर (या सतिसरस) नामक झील के नीचे डूबी हुई थी, जिसमें जलोद्भव नामक जल-राक्षस रहकर भय फैलाता था। भगवान विष्णु ने एक भीमकाय वराह का रूप धारण कर के आधुनिक बारामूला के पास झील को घरेने वाले पहाड़ों पर अपने लम्बे दाँत से प्रहार करा। इस से बनने वाली दरार से झील का पानी बह गया और कश्मीर वादी उभर आई और वास-योग्य बन गई।
सतीसर , काश्मीर घाटी ..
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इसी ‘सतिसर’ झील में समय बीतने पर नई सभ्यता ने जन्म लिया। यही ‘सतिसर’ झील कालांतर में कश्मीर घाटी के नाम से विकसित हुई। इसी कश्मीर घाटी का लम्बा इतिहास है। मिथिक कथाओं का कोई ठोस प्रमाण नहीं होता परन्तु ऐसी कथाएं लोक कथाओं में प्रचलित हो जाती हैं परन्तु यह सच है कि भौगोलिक परिवर्तनों ने इस ‘सतिसर’ झील को समयानुसार वर्तमान कश्मीर घाटी बना दिया। यह 5000
लाख साल
पुरानी है। 2000 ईस्वी पूर्व के अवशेष तो मिले ही हैं। नाग, खासी, धर, भूटा, निषाद इत्यादि जातियों के अस्तित्व को कश्मीर घाटी से नकारा नहीं जा सकता। राजा के दैवी सिद्धांत का उद्गम कश्मीर घाटी से शुरू हुआ। विदेशी आक्रमणकारी इसी घाटी की सुंदरता के प्रलोभन से भारत में घुसे। इस घाटी की सीमाएं रूस, चीन, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से सटी हुई हैं।
भारत द्रोही शक्तियां इसी कश्मीर घाटी को डकार जाना चाहती हैं। कभी यह घाटी हिंदू सभ्यता और बौद्ध धर्म की संरक्षक थी, आज इस्लामिक ताकतें दनदना रही हैं।
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