वर्षगीर का युध्द—--
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भारत का पहला और आखरी युध्द जिसमे भारतवर्ष की सेना ने अपने इलाके से बाहर आक्रमण करके दुश्मन को हराया था।...डॉ श्याम गुप्त ...
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-----पृष्ठभूमि----
विश्व के सर्वप्रथम महायुद्ध #दाशराज्ञ युद्ध में राजा #सुदास ने दस राजाओं की सामूहिक विशाल सेना को हरा कर अखण्ड भारतवर्ष का नींव रखी और पहले सम्राट बने! कुछ समय बाद सुदास को यमुना किनारे के राजाओं से युध्द करना पड़ा। इस युध्द में फिर से सुदास विजयी हुये। इस लड़ाई के बाद सुदास ने अपने राज्य की सीमा उत्तर में पांचाल, गंगा यमुना के दोआब, यमुना के किनारे और सरस्वती नदी के इलाके पर भी कब्ज़ा जमाया। सुदास को उसके गुरु ने और आगे बढ़ने की बजाय वापस जाके पश्चिम की ओर स्थापित होने को कहा।
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सम्भवतः ===सप्तसिंधु और आर्यवर्त विजय ===के बाद सुदास ने फिर से पूर्व का रुख किया था जिससे #सरयू का इलाका भी उसके राज्य में शामिल हो गया था, या फिर इधर के राजाओं ने सुदास का अधिपत्य स्वीकार करके संधि कर लिया था।
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चूंकि सुदास प्रारम्भ में पांच नदियों के राज्य (अब का पंजाब) से पूर्व दिशा की और बढ़ा था और फिर वापस पश्चिम की ओर गया तो मैकाले के समर्थन वाले लोग सुदास के सिंधु पार करके पूर्व की ओर बढ़ने की घटना को ==आर्यन इन्वेज़न की थ्योरी== को मानते हैं।
------अगर आर्यन इन्वेज़न के सिद्धांत को माना जाए तो हमला पश्चिम से पूर्व यानि सप्तसिंधु को पश्चिम से पूर्व की ओर पार करना था जबकि हुआ ठीक इसके उलट था।
----- जिनको आर्य कहा गया उन्होंने पंजाब के इलाके से सिंधु को पार किया और पूर्व से पश्चिम की ओर गए थे एवं विजय के पश्चात पुनः पूर्व की ओर स्वक्षेत्र में आये । असल में भारत की तरफ से सप्तसिंधु को पहले पार किया गया और केंद्रीय एशिया में कबीले बने।
*****अतः आर्य इंवेज़न का सिद्धांत कहीं नहीं ठहरता |*****
-------- दशराज्ञ युद्ध के बाद #हारे हुए राजाओं के लोग पश्चिम की ओर चले गए और इस बात के सबूत मिलते हैं कि इन लोगों ने ही #पांचप्रमुखराज्यों ---पार्थी, पर्सियन, बलोच, पख्तून, और पिशक (कुर्द) नींव रखी।
-------इनके अलावा इस युद्ध में हारे लोग, अन्य दुसरे लोग ---16 टुकड़ियों में बंट कर अलग जगहों पर गए, इन लोगों ने 16 अन्य इलाके जिनके सबूत मिलते हैं उन्होंने सोगडियना, मार्गियना, बक्टृा, कबुलिस्तान, गज़नी, नांता, अरचोसिया, द्रणगियाना, ज़मीन, दावर और कलत-ई-गिलजय के बीच का इलाका, लुगार घाटी, काबुल और कुर्रम के बीच का इलाका, ऐरन्य, वैजेह, ईरान आदि जगहों पर ये कबीले स्थापित किये।
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सुदास को अक्सर पश्चिम सीमा पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता था। हारे हुए लोग जिन्होंने पांच राज्यों और सोलह कबीलों की नींव को रखा था अक्सर सिंधु पार इलाकों पर दुबारा स्थापित होने और बसने की कोशिश करते थे। सुदास की शक्ति और रण कौशल के आगे टिक नहीं पाते थे, अतः सुदास का सारा जीवन युद्ध करते बीता।
------ युद्धों के कारण पश्चिमी शक्तियां ख़त्म होती चली गईं जबकि सप्तसिंधु और आर्यवर्त का सामूहिक इलाका नदियों, पहाड़ों, उपजाऊ जमीन, दुधारू पशुओं आदि के कारण मजबूत होती गईं।
------ पश्चिम के इलाकों में पानी, फसल और दुधारू पशुओं का अभाव था अतः इन विस्थापित समूहों को खुद को किसी सही जगह स्थापित होने में बहुत समय लगा। ये लोग अधिकाधिक रूप से आज के ईरान, इराक के कुर्द, अफगानिस्तान, यूनान और कुछ अन्य जगहों पर जम गए। इन जगहों पर सब व्यवस्थित करने में इनको वर्षों का समय लगा। अतः इस बीच किसी भी बड़े युद्ध का कोई वर्णन नहीं मिलता।
------- जिसे कहा जाता है कि विश्वामित्र व उनके लोगों को भूमिगत होना पडा | बाद में वे सशक्त होकर बाहर आये |
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उसके बाद सुदास के पोते राजा #सोमक को भी हार कर बाहर गए हुए उन लोगों से लड़ाई लड़नी पड़ी थी क्योंकि सिंधु पार कर के कबीले में बसे लोग वापस सप्तसिंधु के इस पार के समृद्ध इलाके में आकर अधिपत्य ज़माना चाहते थे।कुछ कबीलों ने आपस में मिल कर फिर से सप्तसिंधु के इलाके पर हमला किया जिसको सुदास के पोते राजा सोमक ने उनके इलाके में ही घुस कर हराया। ये लड़ाई उस इलाके में लड़ी गयी जो आज का अफगानिस्तान है। इसको “==वर्षगीर का युध्द==” कहा जाता है।
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****दशराज्ञ युद्ध के बाद- वर्षगीर का युद्ध*****
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राजा सुदास की तीसरी पीढ़ी थी राजा सोमक’ | राजा सोमक को गांधार से सन्देश प्राप्त हुआ कि पश्चिम के कबीलों ने आपस में इकठ्ठा हो कर एक सैन्य शक्ति तैयार किया है और वो गांधार को रौंदते हुए सप्तसिंधु पर कब्ज़ा जमाना चाहते हैं।
-------- सुदास के उलट सोमक ने इन कबीलाई हमलावरों को अपने क्षेत्र में न घुसने देने का तरीका अपनाया। सुदास ने अगर ये युद्ध लड़ा होता तो शायद सुदास ने उनको आराम से सप्तसिंधु पार करने दिया होता और फिर घेर के उनका विनाश किया होता।
------राजा सोमक का साथ दिया राजा #सहदेव और राजा #राजश्व ने। इन तीनो के सम्मिलित सैनिकों ने सिंधु पार करके अफगानिस्तान की और कूंच किया। चूंकि गांधार कबीले (आज का पेशावर) के राजन ने राजा सोमक को मदद के लिए बुलाया था अतः सोमक के सैन्य बल को आराम से आगे बढ़ने का रास्ता मिला। उस समय गांधार के अंतर्गत आज का स्वात घटी, पटोहर पठार, खैबर पख्तूनख्वा और जलालाबाद आते थे।
-------आगे बढ़ते राजा सोमक के सैन्य बल ने कबीला गठबन्धन की सेना (जो ईरानियों और कुर्दों की अगुवाई में मिल के बनी थी) को बोलन दर्रे पर रोक लिया। बोलन दर्रे के इलाके में हुई इस लड़ाई को वर्षगिर का युद्ध कहा जाता है। ये युद्ध दो दिन चला – राजा सोमक के सैन्य बल और रण कौशल के आगे ईरानी और कुर्द गठबंधन ढेर हो गया।
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-------वर्षगीर का युद्ध पहला और आखरी युध्द है जिसमे भारतवर्ष की सेना ने अपने इलाके से बाहर आक्रमण करके दुश्मन को हराया था। इस युद्ध के बाद सोमक चाहता तो ईरान, कुर्द आदि इलाके तक अपना अधिपत्य स्थित कर सकता था परन्तु सोमक ने हारे हुए लोगों को जाने दिया और वापस अपने राज्य में आ गया एवं भारत पुनः एक बात उन्नति शिखर की ओर अग्रसर हुआ|
चित्र---आर्य सम्राट एवं सप्त सिन्धु क्षेत्र ----विश्व का सर्वाधिक समृद्ध क्षेत्र , सिन्धु-सरस्वती क्षेत्र , जिसके लिए महानतम युद्ध हुए |
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