(१.) उनका कथन-कि सृष्टि का अस्तित्व भौतिकी या प्रकृति के बुनियादी नियमों की विशेष प्रक्रिया व ' द ग्रेंड डिजायन' से हुआ। ............प्रश्न उठता ,तो उस डिजायन की परिकल्पना किसने की ? प्रकृति के वे मूल नियम किसने बनाए ?--शायद ब्रह्म या ईश्वर ने --यजुर्वेद १.३.७।; सामवेद ३.२१.९ व अथर्व वेद ४.१.५९१ --में निम्न श्लोक है --
"ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्तात विसीमितः सुरुचो वेन आवः।स बुघ्न्या उपमा अस्य विष्टा: सतश्च योनिं सतश्च वि वः॥ -----सृष्टि के आरम्भ में जिस परमात्म शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ, वह शक्ति ब्रह्माण्ड में व्यवस्था रूप में व्यक्त हुई । वही व्यवस्था विविध रूपों में विभिन्न व्यक्त-अव्यक्त लोकों व जगतों को प्रकाशित ( संचालित ) करती है। तथा ऋग्वेद १०.९०.९८१३ का कथन है---
"सप्तास्यासन परिधियास्त्रि: सप्त समिधः व्रता । देवा यज्ञस्य तन्वाना अबघ्न्म्पुरुषम पशुम ॥ ---जब वे सब देवगण सृष्टि का ताना बाना बुन रहे थे तो इसकी सात परिधियाँ बनाईं, ३x ७ समिधाएँ हुईं । उनमें स्वाधीन पुरुष (ब्रह्म) को पशु ( बंधन युक्त चेतना) से आवद्ध किया गया। वे सात परिधियाँ हैं--
----रासायन विज्ञान की 'पीरियोडिक टेबल ' में तत्वों के सात वर्ग --
----परमाणु के चारों ओर इलेक्ट्रोंस की सात परिधियाँ ---
----पृथ्वी व आकाश के सात सात स्तर व सात रंग ---
पृथ्वी, आकाश व अंतरिक्ष तीनों के लिए त्रिसप्त समिधाएँ अर्थात इनसब केलिए ( सारे जगत/ब्रह्माण्ड) की क्रियाओंव निर्माण के लिए ऊर्जा व पदार्थ का चक्रीय उत्पादन की ' ग्रेंड डिजायन '।
(२)--बिग बेंग से बना ब्रह्माण्ड-- तो वह शुरूआती अति तापीय ब्रह्माण्ड व बिगबेंग वाला पिंड कहाँ से आया ---यदि विज्ञान मौन है तो शायद ईश्वर ने ही , वैदिक विज्ञान में वर्णन के अनुसार प्रादुर्भूत किया | जिसमें कथन है 'ब्रह्म की सृष्टि इच्छा ', ''एकोहं बहुस्याम' के तीब्र अनाहत नाद से ही ऊर्जा --->उप कण -->कण-->पदार्थ -->.....सृष्टि बनना प्रारम्भ हुई।
(३)--' मल्टी वर्स ' अर्थात बहुत से ब्रह्माण्ड ---इसका स्पष्ट वर्णन विष्णु पुराण में , आदि महाविष्णु के रोम रोम में अनंत ब्रह्माण्ड बने, तथा ऋग्वेद में ब्रह्म को "सूर्यस्य सूर्य --" महा सूर्य कहा है ,जिसके चारों और असंख्य सूर्य घूमते हैं , अपनी अपनी आकाश गंगाओं के साथ । विज्ञान व वैदिक दर्शन के समन्वय पर लिखा गया 'श्रृष्टि महाकाव्य'में कहा गया है------------------
" महाविष्णु और रमा संयोग से ,
प्रकट हुए चिद बीज अनंत।
फैले थे जो परम व्योम में,
कण कण में बनाके हेमांड।
उस असीम के महाविष्णु के
रोम रोम में बन ब्रह्माण्ड॥ " एवं --
" और असीम उस महाकाश में,
हैं असंख्य ब्रह्माण्ड उपस्थित।
धारण करते हैं ये सब ही,
अपने अपने सूर्य चन्द्र सब।अपने अपने गृह नक्षत्र सब,
है स्वतंत्र सत्ता प्रत्येक की ॥ "
(४)--स्टीफन कहते हैं--'हमें ईश्वर केमस्तिष्क का पता चल सकता है।’---अर्थात वे ईश्वर को एक मनुष्य समझते हैं---इसका उत्तर इस समाचार में देखिये।"ईश्वर कोई तत्व नहीं जो दिखे।"॥काशी के विद्वान--हिन्दी हिन्दुस्तान-दि-०७-९-१० --स्टीफन के असाधारण मस्तिष्क का उद्भव कैसे हुआ , सब का तो इतना असाधारण मस्तिष्क नहीं होता ? विज्ञानी कह सकते हैं कि ' प्राकृतिक चयन', ' उत्परिवर्तन (म्यूटेशन )' ---परन्तु वह चयन कौन करता है ? यदि विज्ञान मौन है तो शायद वही ईश्वर ।
(5)--एम् थ्योरी , ११आयाम वाला ब्रह्माण्ड------ वैदिक साहित्य में ये ११ आयाम इस तरह वर्णित हैं---
१---११ रुद्र--मूलतत्व, २---महत्तत्व से=५ तन्मात्राएं+५ महाभूत +१ अव्यक्त(नथिन्ग नेस, रिणात्मकता)=११, ३---४ आदि- मुनि सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार + ७ सप्तर्षि , ४----शीला-अशीला, श्यामा-गौरी, क्रूर-सौम्या आदि ११ नारी-भाव व ११ पुरुष-भाव , ५----५ कर्मेन्द्रियाँ +५ ज्ञानेन्द्रियाँ + १ मन = ११ , ६---गीता के अनुसार --आत्मा, जीव , मन , अहंकार + सप्तर्षि =११.------इन्हीं सारे ११ आयामों से ब्रह्माण्ड बना है।
(६)--लगता तो यही है कि न्यूटन की धारणा कि-- 'ब्रह्माण्ड का सृजन अवश्य ही ईश्वर ने किया होगा क्योंकि इसकी उत्पत्ति अराजकता के बीच नहीं होसकती '-- सत्य ही है | वैसे भी स्टीफन सिर्फ खगोलविद हैं , उन्होंने न्यूटन के जैसी कोई मूल खोज(गुरुत्व आदि ) भी नहीं की है सिर्फ अटकलें ही अटकलें हैं , जो उन्हें न्यूटन के समक्ष नहीं ठहरातीं | वे पहले अपनी पुस्तक ' ऐ ब्रीफ हिस्टरी ऑफ़ टाइम 'में ईश्वर के अस्तित्व को मानते थे परन्तु अब नहीं , हो सकता है आगे चलाकर वे भी न्यूटन की भांति ईश्वर को मानने लगें।
वस्तुतः वही एक तत्व है जिसे भिन्न भिन्न माध्यम अपने=-अपने ढंग से कहते हैं--" एको सद विप्राः बहुधा वदन्ति " प्रश्न यह नहीं कि सृष्टि का सृजक कौन , ईश्वर या भौतिक नियम या स्वतः ही --प्रोफ यशपाल के शब्दों में-पढ़ें ऊपर -चित्र १. में .--- तथा सृष्टि महाकाव्य में ----
"नहीं महत्ता इसकी है कि,
ईश्वर ने यह जगत बनाया।
अथवा वैज्ञानिक भाषा में,
आदि अंत बिन, स्वतःरच गया।
अथवा ईश्वर की सत्ता है,
अथवा ईश्वर कहीं नहीं है॥"
यदि मानव खुद ही कर्ता है,
और स्वयं ही भाग्य विधाता।
इसी सोच का पोषण हो तो,
अहं भाव जाग्रत होजाता,
मानव संभ्रम में घिर जाता,
और पतन की राह यही है॥
पर ईश्वर है जगत नियंता,
कोई है अपने ऊपर भी।
रहे तिरोहित अहं भाव सब,
सत्व गुणों से युत हो मानव ,
सत्यं शिवं भाव अपनाता,
सारा जग सुन्दर होजाता ॥ " -----और अंत में --
" सूर्य चन्द्रम्सौ धाता यथापूर्वामकल्पयत। दिवं च प्रिथवीं चान्तारिक्षशयो स्वः ॥ "--सूर्य चन्द्र, पृथ्वी,अंतरक्ष ,द्यावा आदि सब कुछ पूर्व में कल्पित ( सुनिश्चित - द ग्रेंड डिजायन के अनुसार ), या पूर्व की भांति --बार बार , विज्ञान के अनुसार सृष्टि की बारम्बारिता, से वह विधाता, ईश्वर, ब्रह्म या प्रकृति-भौतिक नियम, इन सब की सृष्टि करता है॥
कोई तो है ही !!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, संगीता जी---कोई तो है....
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