-------वह आकृति अपनी गुफा में से अपने फल आदि उठाकर आगंतुक की गुफा में साथ रहने चली आई | यह मैत्री भाव था, साहचर्य --निश्चय ही संरक्षण-सुरक्षा भाव था..पर अधीनता नहीं ....बिना अनिवार्यता..बिना किसी बंधन के.....| इस प्रकार प्रथम बार मानव जीवन में सहजीवन की नींव पडी | साथ साथ रहना...फल जुटाना ..कार्य करना..स्वरक्षण...स्वजीवन रक्षा...अन्य प्राणियों की भांति | चाहे कोई भी फल या खाना जुटाए...एक बाहर जाए या दोनों ...पर मिल बाँट कर खाना व रहने की निश्चित प्रक्रिया -सहजीविता - ने जीवन की कुछ चिंताओं को -खतरे की आशंका व खाना जुटाने की चिंता -अवश्य ही कुछ कम किया | और सिर्फ खाना जुटाने की अपेक्षा कुछ और देखने समझने जानने का समय मिलने लगा |
--------फिर एक दिन उन्होंने ज्ञान का फल चखा ....स्त्री-पुरुष का भेद जाना ... वे पत्तियों से अपना शरीर ढंकने लगे, बृक्षों पर आवास बनने की प्रक्रिया हुई, अन्य अपने जैसे मानवों की खोज व सहजीवन के बढ़ने से अन्य साथियों का साहचर्य..सहजीवन..के कारण .. सामूहिकता का विकास हुआ...नारी स्वच्छंद थी....स्त्री-पुरुष सम्बन्ध बंधन हीन व उन्मुक्त थे | एक प्रकार से आजकल के 'लिव इन रिलेशन' की भांति | स्त्री-पुरुष सम्बन्ध विकास से संतति व मानव समाज के विकास के साथ ही संतति सुरक्षा का प्रश्न खड़े हुए, जो मानवता का सबसे बड़ा मूल प्रश्न बना, क्योंकि प्रायः नर-नारी दोनों ही भोजन की खोज में दूर दूर चले जाते थे व बच्चे जानवरों के बच्चों के भांति पीछे असुरक्षित होजाते थे ...| समाज बढ़ने से द्वंद्व भी बढ़ने लगे | अतः शत्रु से संतति रक्षा के लिए किसी को आवास स्थान पर रहना आवश्यक समझा जाने लगा, इसप्रकार प्रथम बार कार्य विभाजन, श्रम विभाजन (Division of labour) की आवश्यकता पडी |
--------क्योंकि नारी शारीरिक रूप से चपल, स्फूर्त, प्रत्युत्पन्न मति, तात्कालिक उपायों में पुरुष से अधिक सक्षम, तीक्ष्ण बुद्धि वाली , दूरदर्शी होने के साथ साथ , संतति की विभिन्न आवश्यकताओं व प्रेम भावना की पूर्ति हित सक्षम होने के कारण --उसने स्वेक्षा से निवास-स्थान पर असहाय संतान के साथ रहना स्वीकार किया , और स्त्री प्रबंधन समाज की स्थापना हुई | जो बाद में स्त्री -सत्तात्मक समाज भी कहलाया |
----------------क्रमश : भाग तीन..स्त्री-सत्तात्मक समाज.....
आधुनिक-विज्ञान व पुरा वैदिक-विज्ञान, धर्म, दर्शन, ईश्वर, ज्ञान के बारे में फ़ैली भ्रान्तियां, उद्भ्रान्त धारणायें व विचार एवम अनर्थमूलक प्रचार को उचित व सम्यग आलेखों, विचारों व उदाहरणों, कथा, काव्य से जन-जन के सम्मुख लाना---ध्येय है, इस चिठ्ठे का ...
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विग्यान ,दर्शन व धर्म के अन्तर्सम्बन्ध
- drshyam
- लखनऊ, उत्तर प्रदेश, India
- --एक चिकित्सक, शल्य-विशेषज्ञ जिसे धर्म, दर्शन, आस्था व सान्सारिक व्यवहारिक जीवन मूल्यों व मानवता को आधुनिक विज्ञान से तादाम्य करने में रुचि व आस्था है।
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