ईश्वर- कण , हिग्स बोसोन , गोड पार्टिकल एवँ सृष्टि – डॉ. श्याम गुप्त
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आधुनिक-विज्ञान व पुरा वैदिक-विज्ञान, धर्म, दर्शन, ईश्वर, ज्ञान के बारे में फ़ैली भ्रान्तियां, उद्भ्रान्त धारणायें व विचार एवम अनर्थमूलक प्रचार को उचित व सम्यग आलेखों, विचारों व उदाहरणों, कथा, काव्य से जन-जन के सम्मुख लाना---ध्येय है, इस चिठ्ठे का ...
ईश्वर- कण , हिग्स बोसोन , गोड पार्टिकल एवँ सृष्टि – डॉ. श्याम गुप्त
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कस्मै देवाय हविषा विधेम -- डॉ.श्याम गुप्त ..
हमारा
काश्मीर –भाग 4--- कश्यप ऋषि व उनकी
संतति का राज्य क्षेत्र—जम्बू द्वीप---
ब्रह्माजी के मानस पुत्र मरीची के विद्वान पुत्र ऋषि कश्यप जिन्हें अरिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है, इनकी माता का नाम 'कला' था जो कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी| पुराणों अनुसार सुर-असुरों के मूल पुरुष ऋषि कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर स्थित था जहाँ वे परब्रह्म की तपस्या में लीन रहते थे| कश्यप सागर, केस्पियन सी, कश्यप मेरु प्रदेश, कश्मीर प्रदेश उन्हीं के नाम पर कहे जाते हैं।
मानव के अतिरिक्त अन्य प्राणियों का जन्म-----कश्यप ऋषि से उनकी विभिन्न पत्नियों से हुआ--महर्षि कश्यप ब्रह्मा के मानस पुत्र मरीचि के पुत्र थे इस प्रकार ब्रह्मा के पोते हुए | महर्षि कश्यप ने ब्रह्मा के पुत्र प्रजापति दक्ष की कन्याओं से विवाह किया | संसार की सभी मानवेतर जातियां इन्ही की संतानें मानी जाती हैं| कथनानुसार इन पूर्व मानवों को विविध रूप धारण करने की कला आती थी अतः जिस जिस रूप में नारी भाव ने रूप धारण किया उसी के अनुरूप पुरुष रूप भाव धारण करके गर्भाधान से विविध प्राणियों का जन्म हुआ | इसी कारण कश्यप की पत्नियों को लोकमाता भी कहा जाता है । उनकी संतानें इस प्रकार हैं--
---- देवता –अर्यमा , भग, मित्र, वरुण, पूषा, त्वस्त्र, विष्णु, विवस्वत, सावित्री, इन्द्र और धात्रि या त्रिविक्रम बामन भगवान्
-----दैत्य और मरुत , रुद्र, गरुड़ , अरुण, कुबेर दानव, गंधर्व , यक्ष,
राक्षस, दैत्य व दानव, अप्सरायेँ,
किन्नर, विध्याधर , समस्त
जल थल गगन चर- पशु, पक्षी,
नाग , सर्प-विच्छू , सरीसृप
,विषैले जीव, कीट पतंगे , मत्स्य
वंस्पति व वृक्ष , गोवंश , गज,वराह, दिग्गज़ सभी कश्यप
मुनि की संतानेँ है।
प्रारंभ में सभी महाद्वीप आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए थे| धरती को प्राचीन काल में सात द्वीपों में बांटा गया था – जम्बू द्वीप, प्लक्ष द्वीप, शाल्मली द्वीप, कुश द्वीप, क्रौंच द्वीप, शाक द्वीप एवं पुष्कर द्वीप। इसमें से जम्बू द्वीप सभी के बीचोबीच स्थित था। जम्बू द्वीप के 9 खंड थे : इलावृत, भद्राश्व, किंपुरुष, भारत, हरिवर्ष, केतुमाल, रम्यक, कुरु और हिरण्यमय। इसी क्षेत्र में सुर और असुरों का साम्राजय था जो महर्षि कश्यप की संतानेँ थीँ ।
विभिन्न मानव प्रजातियों का उत्पत्ति व लुप्त होना सुपर कोन्टीनेन्ट पेन्ज़िया (२५० मिलियन वर्ष) के लारेशिया व गोन्डवाना में टूटने पर व गोंडवाना लेंड के स्थलीय महाद्वीपों के पुनः-पुनः जुडने- बिखरने के कारण होता रहा, जिसका मुख्य भाग, भारतीय भूभाग था । पुनः जब बाल्टिक व साइबेरिया जुडकर यूरेशिया बना तथा आस्ट्रेलिया गोन्डवाना से अलग हुआ, चाइना भाग युरेशिया के एक ओर तथा भारतीय भूभाग उपजाऊ व समृद्ध क्षेत्र बना और मानव की प्रथम जन्म भूमि व प्रथम पालना |
हिमालय की उत्पत्ति.... ४०-५० मिलियन वर्ष पहले टीथिस सागर( दिति सागर—कश्यप की पत्नी दिति के नाम पर ) के स्थान पर प्रारम्भ हुई ..गोंडवाना लेन्ड के विखंडन व भारतीय प्लेट के उत्तरीय प्लेट से टकराने से ५--६ मि. में टेथिस –समुद्र लुप्त होने लगा व ३ मि.में उसके स्थान पर तिब्बत के पठार ने ले लिया तथा हिमालय की शिवालिक श्रेणी की उत्पत्ति हुई | भारतीय टेक्टोनिक प्लेट के उत्तरी भाग के डूबने पर शेष गोंडवाना लेंड के भाग से द.भारतीय भूखंड बना | भारत में आज भी गोंडवाना लेंड मौजूद है| लगभग ५ से २ मि.वर्ष तक हिमालय श्रेणी विक्सित होती रही व आज भी विकासमान है|
सुमेरु ..आज मानव निवास की सबसे ऊंची चोटी हिमालय की बंदर-पूंछ चोटी है जिसे सुमेरु भी कहा जाता है.. अर्थात बन्दर की पूंछ लुप्त होकर मानव बनने का स्थान | सुमेरु विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता का स्थान कहा जाता है| उत्तरी ध्रुव, साइबेरिया, पामीर का पठार क्षेत्र सुमेरु क्षेत्र था | इसे महाभारत में उत्तर कुरु देश कहा गया है जहां की मेरु-प्रभा ( पोलर ट्वाईलाईट ) का महाभारत में वर्णन है |
वास्तव में हिमालय पूर्व काल में यह प्रदेश देव-मानव सभ्यता का प्रदेश था..जहां ब्रह्मा-विष्णु के ब्रह्मलोक, स्वर्गलोक, व अन्य देवलोक थे..., कश्यप का केश्पियन सागर, स्वर्ग, शिव का कैलाश आदि यहीं थे जो अति उन्नत सभ्यता थी ।
आज यही प्रदेश मध्य एशिया, साइबेरिया से केश्पियन सागर , उजबेकिस्तान, तुर्कमेनिया, ताज्किस्तान आमू दरिया अर्थात ओक्सस नदी ( जो वैदिक संस्कृत मेँ वक्षु नदी है) से अफगानिस्तान हिंदू कुश पर्वत श्रेणी तक एवँ पामीर के पठार तक फैला हुआ है । यहाँ वैदिक काल के व मध्य आर्योँ के काल के विभिन्न बस्तियाँ एवँ किले आज भी खंडहर रूप में मौजूद हैँ। इसी क्षेत्र को मध्य काल में बेक्ट्रिया कहा गयाअर्थात भारतीय, दो हम्प वाले ऊँटोँ का देश । जो आज का बलख या बल्ख प्रदेश है। यह समस्त क्षेत्र कश्यप ऋषि व उसकी संतानोँ का राज्य था ।
----- चित्र 1- काखा फोर्ट--कश्यप का किला , हावा अफ्गानिस्तान में , 2. उजबेक, तुर्क्मेनिस्तान क्षेत्र में देव केस्कन काला --देव-कार्तिकेय किला... 3. अय व ययाति का किला (अयाज काला ) ,, 4. गोनूर टेपे ताम्र युग की बस्तियाँ पर्शियन मार्गू नाम से , अर्थात भ्रगु मुनि की बस्तियाँ । चित्र ... में देखेँ ।
मनु व कश्यप की सभी संतानें भाई-भाई होने पर भी स्वभाव व आचरण में भिन्न थे \ विविध मानव एवं असुर आदि मानवेतर जातियाँ साथ साथ ही निवास करती थीं । भारतीय भूखंड में उत्पन्न व विकसित मानव जो अपने को आर्य अर्थात सात्विक धर्मी कहते थे स्वर्ग –शिवलोक कैलाश अदि आया जाया करते थे देवों से सहस्थिति थी जबकि अमेरिकी भूखंड (पाताल लोक) व अन्य सुदूर एशिया –अफ्रीका के असुर आदि मानवेतर जातियों को अपने क्रूर कृत्यों के कारण अधर्मी माना जाता था | युद्ध होते रहते थे एवं शिव जो स्वयं वनांचल सभ्यता के हामी थे सभी जीव व प्राणियों –मानवों आदि के लिए समभाव रहते थे |
वस्तुतः समस्त मानव सभ्यता, संस्कृति सामाजिकता का उद्भव शिव व शिव परिवार द्वारा ही हुआ , वेदों का उद्भव ब्रह्मा के मुख से हुआ हो परन्तु उसे व्यवहारिक रूप शिव ने ही दिया जिसे भारतीय मानवों ने अपनाया एवं अपना विकासमान आदर्श बनाया एवं समस्त विश्व में फैलकर अपने ज्ञान –विकास व सभ्यता का सिक्का जमाया |
यह एक प्रकार से पूर्व –वैदिक सभ्यता ही थी | जिसे आज वैज्ञानिक भारोपीय सभ्यता आदि का नाम देते हैं| जो तत्पश्चात हिमालय के उद्भव से उत्तरीय सुमेरु क्षेत्र के भारतीय भूभाग से पृथक होने के कारण भारतीय टेक्टोनिक प्लेट पर बसे देशों में सिमटने लगी एवं हिमालय की ओट में अत्यंत वर्फीली हवाओं व ध्रुवीय वातावरण से बचाव व संरक्षण मिलने के कारण तथा उत्तरापथ को आवागमन की कठिनाइयां बढ़ने से मानव हिमालय के इस पार के क्षेत्रों में ही सिमटने लगे सभ्यता भारतीय प्रदेशों में ही तेजी से विकसित होने लगी जो सनातन भारतीय, ईरानी, बेक्ट्रीयन,दज़ला-फरात, वैदिक सभ्यता एवं सिन्धु-सरस्वती सभ्यता, आर्य व अर्धचन्द्राकार ब्रह्मावर्त भारत देश वैदिक–हिन्दू सभ्यता, हिन्दुस्तानी आदि नाम लेने लगी इसीलिये तिलक साइबेरिया को आर्यों का मूल स्थान मानते थे |
इस प्रकार ब्रह्मा-विष्णु-महेश- स्वय्म्भाव मनु, दक्ष, कश्यप-अदिति-दिति द्वारा स्थापित विविध प्रकार के आदि-प्राणी सभ्यता.. ( कश्यप ऋषि की विविध पत्नियों से उत्पन्न विश्व की मानवेतर संतानें नाग, पशु, पक्षी, दानव, गन्धर्व, वनस्पति इत्यादि ) एवं देव.असुर सभ्यता आदि का निर्माण हुआ| मूल भारतीय प्रायद्वीप से स्वर्ग व देवलोक ( पामीर, सुमेरु, जम्बू द्वीप, समस्त पुरानी दुनिया=यूरेशिया+अफ्रीका +भारत ) कैलाश में दक्षिण –प्रायद्वीप से उत्तरापथ एवं हिमालय की मनुष्य के लिए गम्य ( टेथिस सागर की विलुप्ति व हिमालय के ऊंचा उठने से पूर्व ) ..नीची श्रेणियों से होकर मानव का आना जाना बना रहता था... यही सभ्यता कश्यप ऋषि की संतानों – देव-दानव-असुर आदि विभिन्न जीवों व प्राणियों के रूप में समस्त भारत एवं विश्व में फ़ैली एवं विश्व की सर्वप्रथम स्थापित सभ्यता देव-मानव सभ्यता कहलाई |
सुर-असुरों के मूल पुरुष ऋषि कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर स्थित था | कश्यप सागर ..केस्पियन सी.... कश्यप मेरु प्रदेश ..कश्मीर प्रदेश उन्हीं के नाम पर कहे जाते हैं| देव, दानव एवं मानव सभी ऋषि कश्यप को बहुत आदरणीय मानते एवं उनकी आज्ञा का पालन करते थे ऋषि कश्यप ने अनेकों स्मृति-ग्रंथों की रचना की थी ।
कश्यप की अन्य संतानोँ के विभिन्न प्रदेश –
1. टाइटन्स ( जिन्हें असुर कहा जाता था ) वे महान शिव भक्त थे रावण की भाँति | आयरलेंड में हिल ऑफ़ तारा पर प्राचीन शिवलिंग स्थित है जिसे ब्रोंज(कांसा) बनाने की शक्ति वाला देवता लेकर आया था जो देवी दनु के पुत्र थे | अर्थात कश्यप की पत्नी दनु( दक्ष पुत्री ) के पुत्र दानव जो सारे आयरलेंड में राज्य करते थे एवं डेन्यूब नदी (दनु नदी )के किनारे किनारे सारे योरोप में फैले| | डेन्यूब नदी योरोप के विभिन्न देशों में दुनाज़,दूना,दुनेव,दुनारिया,आदि नामों से जानी जाती है | वोल्गा के बाद यह योरोप की सबसे बड़ी नदी है |
2. आज के ओक्सस = वक्षु नदी =मध्य एशिया, फारस, ईरान, उजब्किस्तान,रूस,योरोप,तुर्कमानिया,अरब आदि हिमालय के उत्तरी एवं पश्चिमी तथा उच्च-हिमालय क्षेत्र के समस्त प्रदेश) मानव व समाज को स्थिर व उन्नत बनाते हुए, भाषा, समाज व संस्कृति के भिन्न भिन्न जलवायु, वातावरण, मूल देश से दूरी के अनुसार यथारूप-परिवर्तन के साथ पहुँचते रहे और बस्तियाँ बनाते रहे ।| |
3. .सुमेरिया- 2300-2150 : सुमेर सभ्यता को ही मेसोपोटामिया की सभ्यता कहा जाता है। मेसोपोटामिया का अर्थ होता है- दो नदियों के बीच की भूमि। दजला (टिगरिस) और फुरात (इयुफ़्रेट्स) नदियों के बीच का क्षेत्र। इसी तरह सिन्धु और सरस्वती के बीच की भूमि पर आर्य रहते थे। इसमें आधुनिक इराक, उत्तर-पूर्वी सीरिया, दक्षिण-पूर्वी तुर्की तथा ईरान के कुजेस्तान प्रांत के क्षेत्र शामिल हैं। इस क्षेत्र में ही सुमेर, अक्कदी, बेबिलोन तथा असीरिया की सभ्यताएं अस्तित्व में थीं। अक्कादियन साम्राज्य की राजधानी बेबिलोन थी अतः इसे बेबिलोनियन सभ्यता भी कहा जाता है। यहां बाद की जातियां तुर्क, कुर्द, यजीदी, आशूरी (असीरियाई), सबाईन, हित्ती, आदि सभी कश्यप, ययाति, भृगु, अत्रि वंश की मानी गई हैं।
4. .बेबिलोनिया (2000-400 ईसा पूर्व) : सुमेरी सभ्यता के पतन के बाद इस क्षेत्र में बाबुली या बेबिलोनियन सभ्यता पल्लवित हुई। अक्कादियन साम्राज्य की राजधानी बेबिलोन थी, इस सभ्यता के लोग हिन्दु्ओं के समान ही पूजा प्रात: और सायं अर्घ्य, तेल, धूप, अभ्यंग, दीप, नेवैद्य आदि लगाकर करते थे। ईसा पूर्व 18वीं शताब्दी के वहां के कसाइट राजाओं के नामों में वैदिक देवताओं के सूर्य, अग्नि, मरूत आदि नाम मिलते हैं। वहां के हिट्टाइट और मिनानी राजाओं के बीच हुई संधियों में गवाह के रूप में इंद्र, वरुण, मित्र, नासत्य के नाम मिलते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि बेबिलोनिया के लोग भी हिन्दू धर्म का ही पालन करते थे।
मिले शिलालेखों में सीरिया, फिलिस्तीन के राजाओं के नाम भारतीय राजाओं के समान है। असीरिया शब्द असुर का बिगड़ा रूप है। बेबिलोन की प्राचीन गुफाओं में पुरातात्विक खोज में जो भित्तिचित्र मिले हैं, उनमें भगवान शिव के भक्त, वेदों के उत्सुक गायक तथा हिन्दू देवी-देवताओं की उपासना करते हुए उत्कीर्ण किया गया है।
5. .असीरिया (1450-500 ईसा पूर्व) : असीरिया को पहले अश्शूर कहा जाता था। अश्शूर प्राचीन मेसोपोटामिया का एक साम्राज्य था। यह असुर शब्द का अपभ्रंश है। यह दजला नदी के ऊपरी हिस्से में अश्शूर साम्राज्य में स्थित था। इसके बाद यह साम्राज्य फारस के हखामनी वंश के शासकों के अधीन आ गया।असीरिया निवासी सूर्यपूजक थे और वहां के राजा अपने आपको सूर्य का वंशज मानते थे। अथर्वण संप्रदाय में भारत में अंगीकृत अथर्वणि चिकित्सा यहां भी प्रचार में थी।
6. .रूस -- प्राचीनकाल में रूस के मध्यभाग को जम्बूद्वीप का इलावर्त कहा जाता था। यहां देवता और दानव लोग रहते थे। रूस में वाइकिंग या स्लाव लोगों के आने से पूर्व वहां भारतीय भारतीयों ने राज किया । पहले यहां असंगठित रूप से हिन्दू धर्म प्रचलित था और उससे भी पहले संगठित रूप से वैदिक पद्धति के आधार पर हिन्दू धर्म प्रचलित था।
सूर्य के अलावा प्राचीनकालीन रूस में कुछ मशहूर देवियां भी थीं- बिरिगिन्या, दीवा, जीवा, लादा, मकोश और मरेना। प्राचीनकालीन रूस की यह मरेना नाम की देवी जाड़ों की देवी थी और उसे मौत की देवी भी माना जाता था। हिन्दी का शब्द मरना शायद इसी मरेना देवी के नाम से तो पैदा हुआ? इसी तरह रूस का यह जीवा देवता शायद हिन्दी का ‘जीव’ है, ‘जीव’ यानी हर जीवंत आत्मा।
महाभारत में अर्जुन के उत्तर-कुरु तक जाने का उल्लेख है। कुरु वंश के लोगों की एक शाखा उत्तरी ध्रुव के एक क्षेत्र में रहती थी। उन्हें उत्तर कुरु इसलिए कहते हैं, क्योंकि वे हिमालय के उत्तर में रहते थे। महाभारत में उत्तर-कुरु की भौगोलिक स्थिति का जो उल्लेख मिलता है वह रूस और उत्तरी ध्रुव से मिलता-जुलता है।
7. चींन--- मात्र ५०० से ७०० ईसापूर्व ही चीन को महाचीन एवं प्राग्यज्योतिष कहा जाता था| इसके पहले आर्य काल में यह संपूर्ण क्षेत्र हरिवर्ष, भद्राश्व और किंपुरुष नाम से प्रसिद्ध था। जम्बूद्वीप के ९. देश थे उसमें से ३ थे हरिवर्ष, भद्राश्व और किंपुरुष, उक्त तीनों देशों को मिलाकर आज इस स्थान को चीन कहा जा सकता है। रामायण बालकांड में प्राग्यज्योतिष की स्थापना का उल्लेख मिलता है। विष्णु पुराण में इस प्रांत का दूसरा नाम कामरूप (किंपुरुष) मिलता है। स्पष्ट है कि रामायण काल से महाभारत काल पर्यंत असम से चीन के सिचुआन प्रांत तक के क्षेत्र प्राग्यज्योतिष ही रहा था। जिसे कामरूप कहा गया। कालांतर में इसका नाम बदल गया। इस विशाल प्रांत के प्रवास पर एक बार श्रीकृष्ण भी गए थे। यह उस समय की घटना है, जब उनकी अनुपस्थिति में शिशुपाल ने द्वारिका को जला डाला था।
चीन प्राचीनकाल में हिन्दू राष्ट्र था। 1934 में हुई एक खुदाई में चीन के समुद्र के किनारे बसे एक प्राचीन शहर च्वानजो में 1000 वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन हिन्दू मंदिरों के लगभग एक दर्जन से अधिक खंडहर मिले हैं।
माना जाता है कि मंगोल, तातार और चीनी लोग चंद्रवंशी हैं। इनमें से तातार के लोग अपने को अय का वंशज कहते हैं, यह अय पुरुरवा का पुत्र आयु था। (पुरुरवा प्राचीनकाल में चंद्रवंशियों का पूर्वज है जिसके कुल में ही कुरु और कुरु से कौरव हुए)। इस आयु के वंश में ही सम्राट यदु हुए थे और उनका पौत्र हय था। चीनी लोग इसी हय को हयु कहते हैं और अपना पूर्वज मानते हैं।
एक दूसरी मान्यता के अनुसार चीन वालों के पास 'यू' की उत्पत्ति इस प्रकार लिखी है कि एक तारे (तातार) का समागम यू की माता के साथ हो गया। इसी से यू हुआ। यह बुद्घ और इला के समागम जैसा ही किस्सा है। इस प्रकार तातारों का अय, चीनियों का यू और पौराणिकों का आयु एक ही व्यक्ति है। इन तीनों का आदिपुरुष चंद्रमा था और ये चंद्रवंशी क्षत्रिय हैं।
चित्र.अ,ब,स-
ओक्सस =वक्षु नदी प्रदेश (परसिया, बेक्त्रिया, तुर्किस्तान आदि मध्य एशिया में आदि आर्यों व वैदिक सभ्यता के बाद में समस्त यूरेशिया, जम्बू द्वीप, में फैलाव के क्षेत्र..) में प्राप्त स्वर्ण रथ व घोड़ों की मूर्तियाँ.
8. .जापान –ये बात कम ही लोगों को मालूम होगी. जापान में कई हिन्दू देवी-देवताओं को
जैसे
ब्रह्मा, गणेश, गरुड़, वायु, वरुण आदि की पूजा आज भी की जाती है | बेंजाइटेंसमा (सरस्वती), बिश्मोन (वैशवरावा या कुबेरा), दायकोकुटेन (महाकाल / शिव), और किचिजोटन (लक्ष्मी)। बेंजाइटेनेयो / सरस्वती और किशौतनेयो / लक्ष्मी के साथ-साथ तीन हिंदू त्रिदेवी देवियों के निप्पोनिज़ेशन को पूरा करते हुए, हिंदू देवी महाकाली को जापानी देवी डाइकोकुटनेयो के रूप में निप्पोनिज्ड किया गया है|
कुछ वर्ष पूर्व ही रूस में वोल्गा प्रांत के स्ताराया मायना (Staraya Maina) गांव में विष्णु की मूर्ति मिली थी जिसे 7-10वीं ईस्वी सन् का बताया गया। कि मूर्ति के साथ ही उत्खनन में प्राचीन सिक्के, पदक, अंगूठियां और शस्त्र भी मिले हैं। आज भी पुरातत्ववेताओं को कभी-कभी खुदाई करते हुए प्राचीन रूसी देवी-देवताओं की लकड़ी या पत्थर की बनी मूर्तियां मिल जाती हैं। कुछ मूर्तियों में दुर्गा की तरह अनेक सिर और कई-कई हाथ बने होते हैं। रूस के प्राचीन देवताओं और हिन्दू देवी-देवताओं के बीच बहुत ज्यादा समानता है।
सूर्य के अलावा प्राचीनकालीन रूस में कुछ मशहूर देवियां भी थीं- बिरिगिन्या, दीवा, जीवा, लादा, मकोश और मरेना। प्राचीनकालीन रूस की यह मरेना नाम की देवी जाड़ों की देवी थी और उसे मौत की देवी भी माना जाता था। हिन्दी का शब्द मरना शायद इसी मरेना देवी के नाम से तो पैदा हुआ? इसी तरह रूस का यह जीवा देवता शायद हिन्दी का ‘जीव’ है, ‘जीव’ यानी हर जीवंत आत्मा।
महाभारत में अर्जुन के उत्तर-कुरु तक जाने का उल्लेख है। कुरु वंश के लोगों की एक शाखा उत्तरी ध्रुव के एक क्षेत्र में रहती थी। उन्हें उत्तर कुरु इसलिए कहते हैं, क्योंकि वे हिमालय के उत्तर में रहते थे। महाभारत में उत्तर-कुरु की भौगोलिक स्थिति का जो उल्लेख मिलता है वह रूस और उत्तरी ध्रुव से मिलता-जुलता है।
बाद में सम्राट ललितादित्य मुक्तापिद और उनके पोते जयदीप के उत्तर कुरु को जीतने का उल्लेख मिलता है। यह विष्णु की मूर्ति शायद वही मूर्ति है जिसे ललितादित्य ने स्त्री राज्य में बनवाया था। चूंकि स्त्री राज्य को उत्तर कुरु के दक्षिण में कहा गया है तो शायद स्ताराया मैना पहले स्त्री राज्य में
हो।
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