आधुनिक-विज्ञान व पुरा वैदिक-विज्ञान, धर्म, दर्शन, ईश्वर, ज्ञान के बारे में फ़ैली भ्रान्तियां, उद्भ्रान्त धारणायें व विचार एवम अनर्थमूलक प्रचार को उचित व सम्यग आलेखों, विचारों व उदाहरणों, कथा, काव्य से जन-जन के सम्मुख लाना---ध्येय है, इस चिठ्ठे का ...
शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010
इसे कहते हैं -जीवन ,जीवन लक्ष्य,परमात्मा , आनंद व मुक्ति....
जीवन क्या है, इसे कैसे जीना चाहिए, -प्रायः विद्वान् अपने अपने ढंग से कहते रहते हैं जो-प्रायः एकांगी दृष्टि होतीहै; पूर्ण दृष्टि के लिए देखिये यह समाचार, इसमें आई आई टी के इंजीनियर, भाभा रिसर्च सेंटर के वैज्ञानिक, गी-विद्युत ऊर्जा पर शोधकर्ता श्री सुद्धानंद गिरी जी अब आत्मीय ऊर्जा की खोज में हैं | यह ठीक उसी तरह है जिसेपूर्ण जीवन की खोज व प्राप्ति के विषय में --यजुर्वेद के अंतिम अध्याय --ईशोपनिषद के ११ वें श्लोक --सूत्र में कहागया है---
""विध्यांन्चाविध्या च यस्तद वेदोभय सह |अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्यया s मृतंश्नुते || ""
अर्थात --अविद्या ( सांसारिक ज्ञान, विज्ञान, ) प्राप्त करके , विद्या ( आत्म ज्ञान, आत्मीय ऊर्जा, परमात तत्व ) दोनोंको ही प्राप्त करना चाहिए | अविद्या से मृत्यु , अर्थात संसार सागर को पार करके , विद्या से अमृत अर्थात आत्मतत्व, ईश्वरीय ज्ञान की प्राप्ति करनी चाहिए यही सम्पूर्ण जीवन है |
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विग्यान ,दर्शन व धर्म के अन्तर्सम्बन्ध
- drshyam
- लखनऊ, उत्तर प्रदेश, India
- --एक चिकित्सक, शल्य-विशेषज्ञ जिसे धर्म, दर्शन, आस्था व सान्सारिक व्यवहारिक जीवन मूल्यों व मानवता को आधुनिक विज्ञान से तादाम्य करने में रुचि व आस्था है।
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