गुरुवार, 11 अगस्त 2011

स्त्री-विमर्श गाथा-भाग-७ ( अंतिम भाग )...नव जागरण काल ......ड़ा श्याम गुप्त....



              यूं तो सहज रूप में ही १५ वीं सदी से ही समय समय पर नव जागरण ,स्त्री जागरण, समाज सुधार के  बीज अंकुरित होते रहे थे | ११ वीं सदी में  गुरु गोरखनाथ के पश्चात देश भर में संत साहित्यकार गुरु नानक , तुलसीदास, कबीर, सूरदास रैदास, तुकाराम, एकनाथ ,तिरुवल्लर, कुवेम्पू ,केलासम अपने अपने विचारों से अपने अपने ढंग से नव-जागरण का ध्वज उठाये हुए थे | राजनीति के स्तर पर भी  शिवाजी , राणा प्रताप अदि देश भक्तों की लंबी परम्परा चलती रही | 
                 मूलतः १९ वीं सदी में विश्व स्तर की कुछ महान एतिहासिक  घटनाओं के फलस्वरूप नव जागरण का कार्य तेजी से बढ़ा | ये थीं विश्व पटल पर अमेरिका का उदय व विश्व भर में शासन तंत्र के बदलाव की नयी हवाएं .....राज-तंत्र का समाप्ति की ओर जाना  व गणतंत्र   की स्थापना   ( जिसका एक प्रयोग पहले ही भारत में वैशाली राज्य में हो चुका था ..यद्यपि वह कुछ अपरिहार्य कारणों से असफल रहा ) |  सारे विश्व में ही राज्य तंत्र की निरंकुशता से ऊबे जन मानस ने लोकतंत्र की  खुली हवा में सांस लेना प्रारम्भ किया |  तुलसी की रामचरित मानस, सूरदास के कृष्ण-भक्ति साहित्य, कबीर के निर्गुण -भक्ति ज्ञान के साहित्य मूल रूप से समाज व नारी जागरण के वाहक बने | साहित्य जगत में भारतेंदु हरिश्चंद्र , जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा,सुभद्राकुमारी चौहान, सुमित्रा नन्द पन्त,  मैथिली  शरण गुप्त, दिनकर , निराला, महाबीर प्रसाद द्विवेदी , मुंशी प्रेम चन्द्र , शरतचन्द्र , रवीन्द्रनाथ टेगोर , सुब्ब्रन्यम भारती .....समाज सेवी व राजनैतिक क्षेत्र  में  राजा राममोहन राय, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, आर्य समाज व  महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी आदि के प्रयासों से भारतीय समाज से विभिन्न कुप्रथाओं का अंत हुआ एवं नारी-शिक्षा द्वारा नारी के नव जागरण का युग प्रारम्भ  हुआ |                 
                                                                                                       


             
                                                   
     अंग्रेज़ी दासता से स्वतंत्रता पश्चात समाज की विभिन्न भाव उन्नति के साथ  नारी-शिक्षा, नारी- स्वास्थ्य, अत्याचार-उत्प्रीडन् से मुक्ति, बाल-शिक्षा, विभिन्न कुप्रथाओं की समाप्ति द्वारा आज नारी व भारतीय नारी के पुनः अपनी आत्म-विस्मृति, दैन्यता, अज्ञानता से बाहर आकर 
खुली हवा में सांस ले रही है एवं समाज व पुरुष की अनधिकृत बेडियाँ तोडने में रत है |
                         परन्तु यह राह भी खतरों से खाली नहीं है , इसके लिए उन्हें आरक्षण आदि की वैसाखियों व  पुरुषों का अनावश्यक सहारा  नहीं लेना चाहिए अपितु अपने बल पर सब कुछ अर्जित करना ही श्रेयस्कर रहेगा | पुरुषों की बराबरी के नाम पर अपने स्त्रियोचित गुण व कर्तव्यों का बलिदान व नारी विवेक की सीमाओं का  उल्लंघन उचित नहीं |  शारीरिक आकर्षण के बल पर सफलता की आकांक्षा व बाज़ार और पुरुषों के समझौते वाली भूमिका में लिप्त  नहीं होनी चाहिए |  भोगवादी व्यवस्था , अतिभौतिकवादी चलन एवं अंधाधुंध पाश्चात्य अनुकरण, आकर्षणों, प्रलोभनों  के साथ स्वार्थी पुरुषों व पुरुषवादी संगठनों, छद्म-नारीवादी संगठनों  की बाज़ारवादी व्यवस्था से परे रह कर ही नारी श्रृद्धा- मूलक समाज, स्त्री-नियंता समाज नारी-पुरुष समन्वयात्मक समाज की स्थापना की रीढ़ बन् सकती है |
                

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

स्त्री विमर्श गाथा ....भाग -६ आत्म विस्मृति का युग....ड़ा श्याम गुप्त


--चित्र में-१-विधवाएं 2- बाल-विवाह ,3-सती प्रथा,..४-दहेज़ ह्त्या ..५-महिला श्रम..6 -मुस्लिम विजेताओं द्वारा विक्रय हेतु नग्न-देह प्रदर्शन  ....7 -घरेलू हिंसा एवं  8-दहेज़ लेन-देन ....





-----इस प्रकार पुरुष अधिकारत्व समाज में ही यद्यपि स्त्रियों के अधिकारों.की स्वायत्तता का परिसीमन प्रारम्भ होचुका था परन्तु भारत में फिर भी स्त्रियों के आदरभाव में कमी उत्पन्न नहीं हुई थी जो वस्तुतः वैदिक संस्कृति का ही प्रभाव था | यद्यपि विश्व की अन्य संस्कृतियों देशों में स्त्रियों पर अत्याचारों की अंतहीन कथाओं के उल्लेख हैं व उनके अधिकार भी काफी कम होचुके थे | यहाँ तक कि स्त्री शासकों , रानियों के राज्यों में भी स्त्रियों अत्याचारों का सिलसिला रहा |
भारत में वस्तुत यह सामंती, आत्मविस्मृति के, अन्धकार-अज्ञान के काल में होने लगा जो मूलतः श्च महाभारत युद्ध का काल है | वास्तव में महाभारत युद्ध सिर्फ भारतीय महाद्वीप का युद्ध न होकर एक विश्व युद्ध था , जो काफी प्रामाणिक तौर पर आणविक युद्ध था जिसमें भौतिक व सांस्कृतिक तौर पर महाविनाश हुआ | भारत के स्वर्णिम काल के विनाश के गाथाएं विश्व में फैलीं , जो विदेशी लोग स्वदेश में ही युद्ध रत रहते थे ... बाहर भी जाने लगे....क्रान्ताओं का युग प्रारम्भ हुआ ...भारत के स्वर्ण युग के प्रसिद्धिके कारण भारत विदेशी आक्रान्ताओं क प्रिय स्थल बना ...| अर्जुन  पुत्र परीक्षत के सर्पदंश से मृत्यु के उपरांत उसके पुत्र जन्मेजय द्वारा तक्षशिला के नाग- सम्राट तक्षक जो परीक्षत की मृत्यु का कारण व षडयंत्रकारी था , के राज्य का विनाश कर दिया यद्यपि तक्षक स्वयं आस्तीक मुनि के कारण जिनकी माता नाग कुल से थी बचगया परन्तु उसे जंगलों में भटक कर दस्यु-वृत्ति अपनानी पडी|--इस प्रकार उस द्वंद्व के काल में भी स्त्रियों का आदर-भाव था |  जन्मेजय वंश(कुरु वंश ) के अंतिम शासक अधिसिम कृष्ण को हरा कर शिशुनाग वंश के शासक महापद्मनंद( जिसने इश्वाकू वंश के अंतिम शासक  क्षेमक का वध करके राज्य प्राप्त किया था ) ने उत्तर भारत पर अपना नन्द वंश  स्थापित किया | नन्द वंश का अंतिम सम्राट धननन्द  जो प्रजा में अप्रिय था ,व महानंद की दासी या नाइन रानी का पुत्र था, के वध उपरांत  सम्राट चन्द्रगुप्त ने मौर्य वंश के स्थापना ....सिकंदर का आक्रमण ....से अशोक ...लिक्षवी गणराज्य......गुप्त वंश....गज़नी   ...खिलजी...शेरशाह .आदि के आक्रमणों से आदि से उत्पन्न .....     आतंरिक स्थिति भी गृह-कलह द्वंद्व के थी , चक्रवर्ती सम्राट ...राष्ट्रीय एकता...भारतीय सांस्कृतिक एकता,एक रूपता की कमी...के कारण राजनैतिक अस्थिरता -द्वंद्व-द्वेष -अनैतिकता के स्थिति उत्पन्न होने लगी |  अज्ञानता व वैदिक दर्शन के विस्मृति के युग में विभिन्न नास्तिक व वेदेतर-दर्शनों---चार्वाक, बौद्ध, जैन आदि की उत्पत्ति , पौँगा पंथी, तंत्र-मन्त्र, झाड-फूंक, अत्यधिक कर्मकांड आधारित ब्राह्मण वर्ग की अकर्मण्यता व ऋषि-आश्रम , व्यवस्था का लुप्त होना के साथ समाज में अज्ञानता व पतन का प्रारम्भ हुआ और यह स्थिति मुगलों के काल से होते हुए अंग्रेजों व सामंती काल तक चलती रही | परन्तु नारी की स्थिति भारत में इस्लामिक आक्रमण से पूर्व के  काल तक  भी आदरणीय थी जैसा कि महापद्म्नंद की नाइन पत्नी के पुत्र को राज्य मिलना....चन्द्रगुप्त की  विदेशी पत्नी हेलेना आदि की गाथा से पता चलता है ...परन्तु निश्चय ही महाद्वन्द्वों,संघर्षों , युद्धों व अशांति की स्थिति में ... .यथास्थिति नारी जगत में भी अज्ञानता ,दैन्यता, आत्म-विस्मृति ,पराधीनता के अन्धकार के कारण नारी की चेतनता भी लुप्त होने लगी | ....
                       इलाम के उद्भव पर इस्लामी आक्रान्ताओं के स्त्री को वस्तु की भाँति उपयोग की वस्तु समझने, भारतीय संस्कृति ,भारतीय संस्कृति के विरुद्ध युद्ध में शत्रु सेना की स्त्रियों के लूट  , क्रय , वलात्कार,नग्न-देह प्रदर्शन  आदि अत्याचारी -भोगी संस्कृति के कारण उन सब वीभत्स स्थितियों से बचने के लिए स्त्री बंधनों में रहने लगी और  सती प्रथा, पर्दा-प्रथा, स्त्री-शिक्षा की कमी आदि  बुराइयां भारतीय समाज में घर करने लगीं
 तत्पश्चात  मुग़ल आक्रान्ताओं व  अंग्रेजों की भोगी संस्कृति व मैकाले की शिक्षा व सांस्कृतिक विनाश की नीति व अंतहीन बाह्य व आतंरिक युद्धों व द्वंद्वों के कारण सामंती काल तक आते आते, भ्रमित भारतीयों द्वारा विदेशियों की संस्कृति की नक़ल , अनुकरण व व्यक्तिगत स्वार्थवश ... नारी के बंधन कठोर होते गए, नारी को क्रीति-दासी समझा जाने लगा | घूंघट प्रथा, पर्दा-प्रथा, ती-प्रथा (यद्यपि ..सती--- मूल नाम शिव पत्नी 'सती ' द्वारा पिता के यज्ञ में पति के अपमान के कारण किया गया आत्म दाह से लिया गया है ..जो एक दुर्घटना थी..परन्तु अज्ञान वश एक गलत प्रथा को यह नाम देदिया गया) जो अशिक्षाबाल-विवाह, दहेज़-प्रथा, वैश्या वृत्ति पति व ससुराल वालों द्वारा स्त्री-प्रतारणा , अत्याचार --जो अनाचार व द्वंद्व के युग में आर्थिक, संपत्ति लालच, पारिवारिक द्वंद्व के कारण व नारी को घर की इज्ज़त के रूप में मानने पर ..ऋणात्मक भाव में ...नारी पर अत्याचार का सिलसिला भी चलने लगा |

                        -----सभी चित्र ...साभार

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लखनऊ, उत्तर प्रदेश, India
--एक चिकित्सक, शल्य-विशेषज्ञ जिसे धर्म, दर्शन, आस्था व सान्सारिक व्यवहारिक जीवन मूल्यों व मानवता को आधुनिक विज्ञान से तादाम्य करने में रुचि व आस्था है।