रविवार, 26 सितंबर 2010

आखिर कब हम आत्म-कुन्ठा से मुक्त होंगे....डा श्याम गुप्त..



-इस आलेख में लेखक का कथन कि---- १-गाँव का भारत /शहर का भारत; बन्चितों का भारत/शाइनिंग भारत आपस में लड़ रहे हैं , इस टकराव से इनकार नहीं किया जासकता
---क्यों भाई आखिर आप इसे टकराव मानते ही क्यों हैं , नासमझी का खेल है, पुराने नए में समन्वय क्यों नहीं कर /कह सकते ? टकराव तो वहां होता है जहां अहं होता है और नए का पुराने से अहं कैसा क्यों ? सीख व समझ क्यों नहीं?
-जिन हाथों में खेलहै वे पुराने भारत का प्रतिनिधित्व करते है, जो भ्रष्ट ,आलसी,अक्षम, अराजक.....पूरा मन्त्रि मन्डल’ सब चलता है’ का रवैयावालों से भरा है...
-----क्यों भाई, क्या मन्त्री, मुख्य मन्त्री,प्रधान मन्त्री -कल्माडी, चिदम्बरम( आधुनिक शिक्षा प्राप्त-कान्वेन्ट व विदेश में), सभी मन्त्री-मंडल( जिसमें युवाओं की भी भागी दारी है) सभी कामचोर ,भ्रष्ट,अक्षम आदि हैं-तो फ़िर क्यों आपने उन्हें देश चलाने के लिये चुना?---क्या आधुनिक युवा जो चोरी, लूट,बे ईमानी , डकैती, वलात्कार, हत्या, गिर्ल फ़्रेन्ड को लूट के माल से घुमाते हुए व महाभ्रष्टाचार में पकडे जारहे है वे नया भारत हैं, सक्षम हैं।------क्या चंद अन्ग्रेज़ी दां, ऊल-जुलूल घ्रणित खेल खेलते हुए, सट्टेबाज़ी से लिप्त, पैसे के लिये कुछ भी विग्यापन करते हुए, सारी विदेशी बस्तुएओं का ही भरपूर उपभोग करते हुए- युवा , नया भारत है ??
३-दुनिया भारत को दोस्त बनाने व निवेश करने को आतुर है.....
------क्या आप /दुनिया नहीं जानती एसा क्यों है--अपना बाज़ार बनाने के लिये अपनी सन्श्क्रिति आदि के गुप्त अजेन्डे को उतारने के लिये --कोई आपको मुफ़्त में दोस्त व निवेश भागीदार नहीं बनाता । आप स्वयं क्यों नही अपना बाज़ार/अर्थशास्त्र बनाते, अपनी संस्क्रित के अनुसार , बाहर का निवेश क्यों चाहिये। कमीशन के लिये?
----नसमझी के इन बिन्दुओं,विचारों,आलेखों से युवा , बच्चों व सामान्य जन में गलत संदेश जाता है कि पुराने व पुराने पीढी के लोगों को दूर करना चाहिये , वे नासमझ व असक्षम हैं। आखिर कब तक हम विदेशों के धन, विदेशी संस्क्रिति( नहीं कल्चर) पर आत्म मुग्धता व स्व-संस्क्रिति की अग्यानता के कारण, आत्म-कुन्ठा, स्व संस्क्रिति-दोषान्वेषण की घातक प्रव्रत्ति, पराभूत भाव दर्शाने से बाज़ आयेंगे।

सोमवार, 13 सितंबर 2010

ब्रह्माण्ड --कुछ सबाल-जबाव ...





ब्रह्माण्ड --कुछ सबाल-जबाव .......
हाल में ही छपे 'द टेलीग्राफ' में समाचार के अनुसार , डा स्टीफन की खोज के पश्चात कुछ तथ्य सामने आये हैं कि --
१. धार्मिक लोग ब्रह्माण्ड की संरचना के पीछे किसी योजनाकार का हाथ मानते रहे हैं जबकि ब्रह्माण्ड ग्रेंड डिजायन से भौतिकी - विज्ञान के सिद्धांत की अपरिहार्य परिणति-बिगबेंग से | बिना ईश्वर या किसी के बटन दवाये |
२.चार्ल्स डार्विन ने इसे हिला दिया --आज सिर्फ १७% अमेरिकी डार्विन की थ्योरी पर विशवास करते हैं |
३. डा स्टीफन ने कुछ बचकाने से प्रश्न भी उठाये हैं |
-----उठाये गए सबालों के उत्तर---
१.ईश्वर किसने पैदा किया-----क्या वैज्ञानिकों के पास इस प्रश्न का उत्तर है कि विज्ञान -भौतिकी व उसके नियम किसने पैदा किये,उनसे पहले कैसे कार्य होता था, डार्विनिस्म के क्रमिक विकास का योजनाकार कौन था ?कम से कम यह तो उत्तर तो उपस्थित है कि --ईश्वर (व आत्मा) कोई मानव नहीं जो पैदा हो , वह अनित्य,व स्वयंभू है ---न जायते म्रियते कदाचिन्नाय भूतस्य भविता वा ।........ जो मूल पदार्थ की परिभाषा है|
२.उसका रूप कैसा है.......क्या विज्ञानी बता सकते हैं कि विग्यान के नियम कैसे दिखते है, विज्ञान का स्वयम का स्वरुप कैसा दिखता है ---ईश्वर के लिए तो कथन है ही ( वही विज्ञान आदि के लिए भी सत्य है) कि " न तस्य प्रतिमा अस्ति " वह निराकार , कण कण में, सर्व व्यापी है |
३.सृष्टि से पहले वह क्या कररहा था -----सृष्टि की 'ग्रेंड डिजायन' पर विचार कररहा था , परिकल्पना व योजना बना रहा था |

----डा स्टीफन व विज्ञानियों से कुछ सबाल----
----१.विना योजनाकार व योजना ,विचारणा के 'ग्रेंड डिजायन' कैसे बनी ---कारण के बिना कार्य कैसे हो सकता है|
----२. बिगबेंग का पिंड कहाँ से आया | उसमें सन्निहित अपार ऊर्जा कहाँ से आयी ? वह इतना संघनित कैसे हुआ, विष्फोट क्यों हुआ ?
----३।प्रयोग व तर्क व ज्ञान -मानव के साथ उत्पन्न हुए ( मानव की उत्पत्ति से काफी बाद में ), विज्ञान और बाद में , तो वे किसने उत्पन् किये ,उससे पहले कैसे कार्य होता था?
----४. गेंड- डिजायन किसने बनाई |

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मंगलवार, 7 सितंबर 2010

सृष्टि का सृजक कौन ..?????

हाल में ही प्रसिद्दभौतिकविद - विज्ञानी स्टीफन वेनबर्ग ने अपनी खोजों से ईश्वर के अस्तित्व को नकारा है , यद्यपि यह कोई नई बात नहीं है , अनीश्वरवादी दर्शन-चार्वाक, जैन, बौद्ध व स्वयम परम्परावादी वैज्ञानिक सदैव से यह कहते रहे हैं , हाँ, यह बात अलग है कि वे अभी तक ईश्वर को नकारने में सफल नहीं हुए हैं| यदि हम स्टीफन वेनबर्ग की व्याख्या-कथनों को बिन्दुवार विश्लेषित करें तो ये तथ्य सामने आते हैं -----
(१.) उनका कथन-कि सृष्टि का अस्तित्व भौतिकी या प्रकृति के बुनियादी नियमों की विशेष प्रक्रिया व ' ग्रेंड डिजायन' से हुआ। ............प्रश्न उठता ,तो उस डिजायन की परिकल्पना किसने की ? प्रकृति के वे मूल नियम किसने बनाए ?--शायद ब्रह्म या ईश्वर ने --यजुर्वेद १.३.७।; सामवेद ३.२१.९ व अथर्व वेद ४.१.५९१ --में निम्न श्लोक है --
"ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्तात विसीमितः सुरुचो वेन आवः बुघ्न्या उपमा अस्य विष्टा: सतश्च योनिं सतश्च वि वः -----सृष्टि के आरम्भ में जिस परमात्म शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ, वह शक्ति ब्रह्माण्ड में व्यवस्था रूप में व्यक्त हुई । वही व्यवस्था विविध रूपों में विभिन्न व्यक्त-अव्यक्त लोकों व जगतों को प्रकाशित ( संचालित ) करती है। तथा ऋग्वेद १०.९०.९८१३ का कथन है---
"सप्तास्यासन परिधियास्त्रि: सप्त समिधः व्रतादेवा यज्ञस्य तन्वाना अबघ्न्म्पुरुषपशुम---जब वे सब देवगण सृष्टि का ताना बाना बुन रहे थे तो इसकी सात परिधियाँ बनाईं, x समिधाएँ हुईं । उनमें स्वाधीन पुरुष (ब्रह्म) को पशु ( बंधन युक्त चेतना) से आवद्ध किया गया। वे सात परिधियाँ हैं--
----रासायन विज्ञान की 'पीरियोडिक टेबल ' में तत्वों के सात वर्ग --
----परमाणु के चारों ओर इलेक्ट्रोंस की सात परिधियाँ ---
----पृथ्वी व आकाश के सात सात स्तर सात रंग ---
पृथ्वी, आकाश व अंतरिक्ष तीनों के लिए त्रिसप्त समिधाएँ अर्थात इनसब केलिए ( सारे जगत/ब्रह्माण्ड) की क्रियाओंव निर्माण के लिए ऊर्जा व पदार्थ का चक्रीय उत्पादन की ' ग्रेंड डिजायन '।
()--बिग बेंग से बना ब्रह्माण्ड-- तो वह शुरूआती अति तापीय ब्रह्माण्ड व बिगबेंग वाला पिंड कहाँ से आया ---यदि विज्ञान मौन है तो शायद ईश्वर ने ही , वैदिक विज्ञान में वर्णन के अनुसार प्रादुर्भूत किया | जिसमें कथन है 'ब्रह्म की सृष्टि इच्छा ', ''एकोहं बहुस्याम' के तीब्र अनाहत नाद से ही ऊर्जा --->उप कण -->कण-->पदार्थ -->.....सृष्टि बनना प्रारम्भ हुई।
()--' मल्टी वर्स ' अर्थात बहुत से ब्रह्माण्ड ---इसका स्पष्ट वर्णन विष्णु पुराण में , आदि महाविष्णु के रोम रोम में अनंत ब्रह्माण्ड बने, तथा ऋग्वेद में ब्रह्म को "सूर्यस्य सूर्य --" महा सूर्य कहा है ,जिसके चारों और असंख्य सूर्य घूमते हैं , अपनी अपनी आकाश गंगाओं के साथ । विज्ञान व वैदिक दर्शन के समन्वय पर लिखा गया 'श्रृष्टि महाकाव्य'में कहा गया है------------------
" महाविष्णु और रमा संयोग से ,
प्रकट हुए चिद बीज अनंत
फैले
थे जो परम व्योम में,
कण
कण में बनाके हेमांड
उस
असीम के महाविष्णु के
रोम रोम में बन ब्रह्माण्ड॥ " एवं --

"
और असीम उस महाकाश में,
हैं
असंख्य ब्रह्माण्ड उपस्थित
धारण
करते हैं ये सब ही,
अपने
अपने सूर्य चन्द्र सबअपने अपने गृह नक्षत्र सब,
है स्वतंत्र सत्ता प्रत्येक की ॥ "

(४)--स्टीफन कहते हैं--'हमें ईश्वर केमस्तिष्क का पता चल सकता है।’---अर्थात वे ईश्वर को एक मनुष्य समझते हैं---इसका उत्तर इस समाचार में देखिये।"ईश्वर कोई तत्व नहीं जो दिखे।"॥काशी के विद्वान--हिन्दी हिन्दुस्तान-दि-०७-९-१० --स्टीफन के असाधारण मस्तिष्क का उद्भव कैसे हुआ , सब का तो इतना असाधारण मस्तिष्क नहीं होता ? विज्ञानी कह सकते हैं कि ' प्राकृतिक चयन', ' उत्परिवर्तन (म्यूटेशन )' ---परन्तु वह चयन कौन करता है ? यदि विज्ञान मौन है तो शायद वही ईश्वर
(5)--एम् थ्योरी , ११आयाम वाला ब्रह्माण्ड------ वैदिक साहित्य में ये ११ आयाम इ तरह वर्णित हैं---
१---११ रुद्र--मूलतत्व, २---महत्तत्व से=५ तन्मात्राएं+५ महाभूत +१ अव्यक्त(नथिन्ग नेस, रिणात्मकता)=११, ३---४ आदि- मुनि सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार + ७ सप्तर्षि , ४----शीला-अशीला, श्यामा-गौरी, क्रूर-सौम्या आदि ११ नारी-भाव व ११ पुरुष-भाव , ५----५ कर्मेन्द्रियाँ +५ ज्ञानेन्द्रियाँ + १ मन = ११ , ६---गीता के अनुसार --आत्मा, जीव , मन , अहंकार + सप्तर्षि =११.------इन्हीं सारे ११ आयामों से ब्रह्माण्ड बना है।
()--लगता तो यही है कि न्यूटन की धारणा कि-- 'ब्रह्माण्ड का सृजन अवश्य ही ईश्वर ने किया होगा क्योंकि इसकी उत्पत्ति अराजकता के बीच नहीं होसकती '-- सत्य ही है | वैसे भी स्टीफन सिर्फ खगोलविद हैं , उन्होंने न्यूटन के जैसी कोई मूल खोज(गुरुत्व आदि ) भी नहीं की है सिर्फ अटकलें ही अटकलें हैं , जो उन्हें न्यूटन के समक्ष नहीं ठहरातीं | वे पहले अपनी पुस्तक ' ऐ ब्रीफ हिस्टरी ऑफ़ टाइम 'में ईश्वर के अस्तित्व को मानते थे परन्तु अब नहीं , हो सकता है आगे चलाकर वे भी न्यूटन की भांति ईश्वर को मानने लगें।
वस्तुतः वही एक तत्व है जिसे भिन्न भिन्न माध्यम अपने=-अपने ढंग से कहते हैं--" एको सद विप्राः बहुधा वदन्ति " प्रश्न यह नहीं कि सृष्टि का सृजक कौन , ईश्वर या भौतिक नियम या स्वतः ही --प्रोफ यशपाल के शब्दों में-पढ़ें ऊपर -चित्र १. में .--- तथा सृष्टि महाकाव्य में ----

"नहीं महत्ता इसकी है कि,
ईश्वर ने यह जगत बनाया।
अथवा वैज्ञानिक भाषा में,
आदि अंत बिन, स्वतःरच गया।
अथवा ईश्वर की सत्ता है,
अथवा ईश्वर कहीं नहीं है॥"

यदि मानव खुद ही कर्ता है,
और स्वयं ही भाग्य विधाता।
इसी सोच का पोषण हो तो,
अहं भाव जाग्रत होजाता,
मानव संभ्रम में घिर जाता,
और पतन की राह यही है॥

पर ईश्वर है जगत नियंता,
कोई है अपने ऊपर भी।
रहे तिरोहित अहं भाव सब,
सत्व गुणों से युत हो मानव ,
सत्यं शिवं भाव अपनाता,
सारा जग सुन्दर होजाता ॥ " -----और अंत में --

" सूर्य चन्द्रम्सौ धाता यथापूर्वामकल्पयतदिवं प्रिथवीं चान्तारिक्षशयो स्वः"--सूर्य चन्द्र, पृथ्वी,अंतरक्ष ,द्यावा आदि सब कुछ पूर्व में कल्पित ( सुनिश्चित - द ग्रेंड डिजायन के अनुसार ), या पूर्व की भांति --बार बार , विज्ञान के अनुसार सृष्टि की बारम्बारिता, से वह विधाता, ईश्वर, ब्रह्म या प्रकृति-भौतिक नियम, इन सब की सृष्टि करता है

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लखनऊ, उत्तर प्रदेश, India
--एक चिकित्सक, शल्य-विशेषज्ञ जिसे धर्म, दर्शन, आस्था व सान्सारिक व्यवहारिक जीवन मूल्यों व मानवता को आधुनिक विज्ञान से तादाम्य करने में रुचि व आस्था है।