मंगलवार, 3 नवंबर 2009

प्रमाण -मीमांसा

मीमांसा दर्शन के अनुसार किसी वस्तु या व्यापार के लिए प्रमाण इस प्रकार देखना चाहिए ----प्रत्यक्ष प्रमाण , अनुमान प्रमाण , एवं शास्त्र प्रमाण |
आधुनिक विज्ञान मूलतः प्रत्यक्ष प्रमाण को ही मानता है, जो प्रत्यक्ष आंखों से दिखाई दे वही सत्य है ,परन्तु मात्र वहही सही प्रमाण नहीं है वह सिक्के का सिर्फ़ एक पार्श्व भी हो सकता है , जो स्वयं विज्ञान के अत्याधुनिक आविष्कारों से हीप्रत्यक्ष प्रमाणित है ,जैसे---टी वी पर या थ्री -डी तस्वीर में पानी बहते दिखना जो कि वास्तविकता से परे अर्थात सत्य नहींहै परन्तु प्रत्यक्ष है |यह सत्य भी आपको अनुमान प्रमाण ( अनुभव , ज्ञान , विवेक,आदि )से अर्थात वैज्ञानिक ज्ञान से कि यहबहते जल का चित्र है एवं शास्त्र प्रमाण ( वैज्ञानिक साहित्य, इलेक्ट्रोनिक ज्ञान की पुस्तकें आदि ) से सुनिश्चित करना पडेगाकि ऐसा हो सकता है |
अनुमान प्रमाण -अर्थात जो प्रत्यक्ष उपस्थित नहीं है परन्तु अनुमान से जाना जाने वाला सत्य , जैसे धुंआ देखकरआग का अस्तित्व होना | यह व्यक्ति के अनुभव, ज्ञान , विवेक पर आधारित होता है |प्रत्यक्ष प्रमाण की सदैव आवश्यकतानहीं होती |
शास्त्र प्रमाण -राम थे या नहीं ,ऐतिहासिक घटनाएँ , शब्दों के अर्थ क्या होते हैं ,कहाँ से आए आदि विभिन्न बातेंशास्त्र प्रमाण से जानी मानी जातीं है | इतिहास, भूगोल, क़ानून, नियम-नीति आदि शास्त्र प्रमाण होते हैं | ये युगों केअनुभव, ज्ञान के भण्डार स्वयं -सिद्ध होते हैं

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज ३ जून, २०१३ के ब्लॉग बुलेटिन - भूली कहावतें पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

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लखनऊ, उत्तर प्रदेश, India
--एक चिकित्सक, शल्य-विशेषज्ञ जिसे धर्म, दर्शन, आस्था व सान्सारिक व्यवहारिक जीवन मूल्यों व मानवता को आधुनिक विज्ञान से तादाम्य करने में रुचि व आस्था है।