शुक्रवार, 9 अगस्त 2024

ईश्वर- कण , हिग्स बोसोन , गोड पार्टिकल एवँ सृष्टि – डॉ. श्याम गुप्त

          ईश्वर- कण , हिग्स बोसोन , गोड पार्टिकल एवँ सृष्टि – डॉ. श्याम गुप्त

======================================


चित्र- ब्रह्मांड उत्पत्ति-


आस्थावानोँ के लिये प्रसन्नता का विषय कि वैज्ञानिकों ने गाड पार्टीकल यानि ईश्वरीय अणु खोज लिया है। निश्चय ही यदि ईश्वरीय कण है तो ईश्वर का ज्ञात होना भी दूर नहीँ।
दावा है कि ‘गाड पार्टीकल’ लगभग देख लिया गया है, शोधकर्ता अंग्रेज़ वैज्ञानिक हिग्स व भारतीय वैज्ञानिक सत्येंद्र नाथ बोस के नाम पर इसका नाम ‘हिग्स बोसोन’ रखा गया है।
\
सृष्टि संरचना का मूल इतिहास जानने की कोशिश में ****वैज्ञानिक मानते आए हैं कि ****सृष्टि भार वाले भौतिक परमाणुओं से बनी है ।
---प्रश्न उठा कि भारयुक्त परमाणुओं को जोड़ने का काम करने वाला भी कोई परमाणु या बल भी होना चाहिए?
ईश्वरीय आस्था वाले लोग उसको ईश्वर कह देते हैं- भारतीय आस्था का ईश्वर, ब्रह्म या विश्वकर्मा जैसा कोई बल |
***वैज्ञानिकों की जिज्ञासा व स्थापना है कि ---
---- भार रहित परमाणुओं को भार देने वाले कणों का अपना भार नहीं होता। बिना भार वाले परमाणुओं से ब्रह्मांड नहीं बनता।
---- भार शून्यता के चलते सभी पदार्थो के परमाणु गतिशील तो होंगे, लेकिन जुड़ नहीं सकते।
----- ऊर्जा का कोई भार नहीं होता। भार रहित सृष्टि होती नहीं। भार के कारण ही सृष्टि बनी।
तब प्रश्न उठता है कि वह ****भार कहां से आया?
************************************
हिंग्स बोसोन सिद्धांत के अनुसार -(हिग्स मेकेनिज्म --)
1.--- गॉड पार्टिकल से ही ***पदार्थ में द्रव्यमान की उत्पत्ति ***होती है । यह अपने चारोँ ओर एक क्षेत्र निर्माण करके समस्त ब्रह्मांड को भर देता है इसे हिग्स क्षेत्र कहते हैँ ।
2. --- जब कोई कण यहाँ से गुजरता है तो उसका एक प्रतिरोधक बल से सामना होता है ।इसी** प्रतिरोधी बल से द्रव्यमान (भार) की उत्पत्ति** होती है ।
3. --- फोटोन व ग्लुओन जैसे कणोँ के साथ यह क्षेत्र कोई क्रिया नहीँ करता , अत: कोई प्रतिरोधी बल न होने के कारण वे द्रव्यमान रहित होते हैँ परंतु विराम अवस्था में । गतिशील अवस्था में उनमें भी द्रव्यमान होता है ।
यहां खाली जगह (परमाणु में) में परमाणु को भार देने वाले कण मौजूद हैं। इनका कोई भार या द्रव्यमान नहीं होता। वैज्ञानिकों द्वारा ऐसे कण देखने का दावा किया है। इसी को ***हिंग्स बोसोन या गाड पार्टीकल ***बताया गया है ।
ऋग्वेद (10.72.6) में इन्हीं परमाणुओं को कहा है*** ‘देव’***कहा है ।
वैज्ञानिकों ने अब कुछ ‘भारविहीन’-ऊर्जा कण भी देखे हैं। अर्थात कुछ कणों में चेतना ऊर्जा तो है, लेकिन उनका शरीर नहीं। जैसे सभी प्राणियों में चेतना है, लेकिन अदृश्य है।
शरीर दृश्य भाग है और ‘द्रव्यविहीन चेतना’ वैदिक साहित्य की प्राचीन अनुभूति है। ऋग्वेद से लेकर उपनिषद्, ब्राह्मण, आरण्यक, पुराण और रामायण महाभारत तक में अतिरिक्त जिज्ञासा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और असीम अनंत के प्रति प्रश्नाकुलता है। सत्य खोजी वैज्ञानिक दृष्टि रही है
\
ऋग्वेद में विश्वकर्मा की स्तुति है,
**********************
लेकिन जिज्ञासा भी है कि सृष्टि सृजन के पूर्व वे सृष्टि सृजन की सामग्री लाए कहां से? इसी तरह विश्वप्रतिष्ठ… नासदीय सूक्त (ऋ0 10.129) में असत् और सत् के भी पूर्वकाल की जिज्ञासा है। यथा----
१. नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं नासीद्रजो नो व्योमा परो यत् ।
किमावरीवः कुह कस्य शर्मन्नम्भः किमासीद्गहनं गभीरम् ॥ १॥
------ इस जगत् की उत्पत्ति से पहले न किसी का आस्तित्व था और न ही अनस्तित्व, अर्थात इस जगत् की शुरुआत शून्य से हुई। तब न हवा थी, ना आसमान था और ना उसके परे कुछ था, चारों ओर समुन्द्र की भांति गंभीर और गहन बस अंधकार के आलावा कुछ नहीं था।
३. तम आसीत्तमसा गूहळमग्रे प्रकेतं सलिलं सर्वाऽइदम् ।
तुच्छ्येनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिनाजायतैकम् ॥३॥
----- शुरू में सिर्फ अंधकार में लिपटा अंधकार और वो जल की भांति अनादि पदार्थ था जिसका कोई रूप नहीं था, अर्थात जो अपना आयतन न बदलते हुए अपना रूप बदल सकता है। फिर उस अनादि पदार्थ में एक महान निरंतर तप् से वो 'रचयिता'(परमात्मा/भगवान) प्रकट हुआ।
---- वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि सृष्टि की रचना सबसे पहले पानी द्वारा / जल में हुई थी।
४. कामस्तदग्रे समवर्तताधि मनसो रेतः प्रथमं यदासीत् ।
सतो बन्धुमसति निरविन्दन्हृदि प्रतीष्या कवयो मनीषा ॥४॥
------ सबसे पहले रचयिता को कामना/विचार/भाव/इरादा आया सृष्टि की रचना का, जो की सृष्टि उत्पत्ति का पहला बीज था, इस तरह रचयिता ने विचार कर आस्तित्व और अनस्तित्व की खाई पाटने का काम किया।
५. तिरश्चीनो विततो रश्मिरेषामधः स्विदासीदुपरि स्विदासीत् ।
रेतोधा आसन्महिमान आसन्त्स्वधा अवस्तात्प्रयतिः परस्तात् ॥५॥
--- फिर उस कामना रुपी बीज से चारों ओर सूर्य किरणों के समान ऊर्जा की तरंगें निकलीं,
जिन्होंने उस अनादि पदार्थ(प्रकृति) से मिलकर सृष्टि रचना का आरंभ किया।
इस अणु जैसे सूक्ष्म घटक की जानकारी उपनिषद् काल में भी थी।
कठोपनिषद् में कहते हैं ‘वह अणु से भी छोटा है और विराट से भी बड़ा है, वह शरीर में है लेकिन अशरीरी है।’ अर्थात भार रहित है।
“अणो अणीयान, महतो महीयानात्मास्य जन्तोर्निहितो गुहायाम “ -कठोपनिषद १/२० --यह लघुतम से भी लघुतम व महान से भी महान आत्मा, प्राणियों के गुहा ( ह्रदय ) में स्थित रहता है |
\
वैज्ञानिक सृष्टि संरचना के रहस्य जानने के लिए श्रमरत हैं। प्रयोग से प्राप्त निष्कर्षों के अनुसार -----
***भार रहित उपपरमाणुओं व भार सहित परमाणुओं की टकराहट से पृथ्वी, चंद्र, तारा मंडल आदि ग्रहों का निर्माण हुआ होगा। ***
यद्यपि यह निष्कर्ष अंतिम नहीं है, लेकिन भार रहित परमाणुओं की चर्चा ध्यान देने योग्य है। बेशक आधुनिक भौतिकी के लिए यह एक नया प्रशंसनीय पड़ाव है, --
-----पर भारतीय अनुभूति में यहां कोई नई बात नहीं है। ऋग्वेद (10.72.6) में इन्हीं परमाणुओं को देव कहा गया है-‘हे देवो आपके नृत्य से उत्पन्न धूलि से पृथ्वी बनी।’
यद्दे॑वा अ॒दः स॑लि॒ले सुसं॑रब्धा॒ अति॑ष्ठत । अत्रा॑ वो॒ नृत्य॑तामिव ती॒व्रो रे॒णुरपा॑यत ॥ ऋग्वेद (10.72.6)
----- जब सृष्टि से पहले समस्त अंतरिक्ष में सर्वत्र जल ही जल था (अपो वा इदम सर्वँ –तैत्त्तरीय आरण्यक 10.22 ) इस अवसर पर (नृत्यताम्-इव वः) नाचते हुए जैसे सर्वत्र विचरते हुए तुम्हारा (तीव्रः-रेणुः-अपायत) प्रभावशाली धूलि युत ताप पृथिवी आदि लोकों पर पड़ता है |
-----देवनृत्य से पैदा धूलि का प्रतीक अति विशिष्ट है। कह सकते हैं कि देव यही भारहीन दिव्य कण हैं। इन्हीं की टक्कर से भार सहित परमाणुओं में जुड़ने की शक्ति आई।
विंगवैंग सिद्धांत -आधुनिक विज्ञान ---
ऋग्वेद क़े मंत्र (10.72.2) में कहते हैं ‘परमसत्ता ने अव्यक्त को लोहार की धौंकनी की तरह पकाया।’ ‘इसे वर्तमान विज्ञान विंगवैंग कहते हैं।’ ऋग्वेद में विंगवैंग जैसे संकेत भी हैं। फिर बताते हैं कि ‘असत् से सत् आया।’ (10.72. 3) असत् भारहीन अदृश्य स्थिति है और सत् दृश्यमान अस्तित्व। -भार रहित कण का प्रतीक भारतीय वैदिक चिंतन में सर्वत्र उपस्थित है ।
हिग्स बोसोन----
****************
आधुनिक वैज्ञानिक भार रहित देखे गए कण को हिग्स बोसोन कहते हैं।.. वहीँ --
----वैदिक ऋषि उसे संपूर्णता में ***ब्रह्म या ईश्वर*** कहते हैं।
----मुण्डकोपनिषद् (2.9) - ‘वह परम आकाश में सब जगह उपस्थित है, कलाओं से रहित है, अवयव शून्य और निर्मल है।’ यहां कला रहित, अवयव शून्य होना भारहीनता ही है।
----श्वेताश्वतर उपनिषद् (6.19) उसे ‘निष्कलं (कला रहित) शान्तं, निरवद्यं, निरंजनम्’ कहती है। भाररहित के लिए वैदिक ऋषियों के शब्द प्रयोग बड़े विद्वतापूर्ण व विशिष्ट भाव युत है। परमसत्ता की अनुभूति इसी शरीर में होती है, लेकिन उसे अशरीरी बताया गया है।
-----ईशावास्योपनिषद् के आठवें मंत्र में उसे अकायं-काया रहित, अस्नविरम्-स्नायु रहित, शुद्ध बताते हैं।
स पर्यगाच्छुक्रमकायमब्रणम अस्नाविरम शुद्धम्पापविद्धम कविर्मनीषी परिभू: स्वयंभू: याथातथ्यतोsर्थान व्यदधाच्छाश्वतीभ्य: समाभ्यः ||
--- वह एकमात्र अकेला ब्रह्म सर्वत्र व्यापक, कण-कण में स्थित, उसी में समस्त जगत स्थित है, सारे जगत का उत्पादन कर्ता, शारीरिक विकारों से रहित, स्नायुविक अर्थात तन,मन व आत्मिक बंधनों से मुक्त, पापरहित, पवित्र, सूक्ष्मदर्शी, आदि-अंत रहित अनादि, मनीषी, सब कुछ जानने वाला, सर्वज्ञ, स्वयंभू है| उस ब्रह्म ने सदैव अनादि काल से ही कर्मों के अनुसार सभी के लिए यथातथ्य उचित व्यवस्था व फल का विधान किया है |
पुन: मूलभूत प्रश्न यह है कि ‘हिंग्स बोसोन’ ही गाड पार्टीकल क्यों है।
====================================
हिंग्स बोसोन सिद्धांत भी मानता है कि इन कणों के अभाव में सृष्टि सृजन असंभव था। सृष्टि के हरेक पदार्थ के सृजन में इन्हीं कणों की भूमिका है।
------ईशावास्योपनिषद् कहता है -- ‘ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किचं जगत्यां जगत-इस सर्वस्व जगत् में ईश्वर की ही उपस्थिति है। सब तरफ ईशावास्य ही है। अत: ईशावास्योपनिषद् का ईश्वर भार रहित होकर भी अनंत को आच्छादित करता है,
-----इसलिए हिग्स बोसोन कणों को ही गाड पार्टीकल कहना उचित नहीं है। इस जगत् का हरेक अणु परमाणु गाड पार्टीकल-ब्रह्म कण ही है। एवँ ---
----उस भार रहित, निर्मल, प्रशांत, निष्कल, निरंजन का ही दृश्यमान चेहरा है, यह जगत।
विज्ञान की सीमा है। लेकिन परमसत्ता-ईश्वर अनंत और असीम है।
=================================
ईशावास्योपनिषद् (मंत्र 5) में कहते हैं ‘तद् दूरे, तद्वन्तिके, तदन्तस्य सर्वस्य तदु सर्वस्याय वाह्यतः-----वह अति दूर भी है, लेकिन समीप भी है। वह हमारे भीतर भी है और सबको बाहर से भी घेरता है।’
अत: गोड पार्टिकल की जिज्ञासा व खोज तो उचित है, परंतु सच बात यह है कि-
------ ईश्वर पदार्थ नहीं है। वह सत् और असत् दोनो ही हैं, इसलिए उसका कण कैसे होगा? हरेक कण, अणु, परमाणु और छंद वाणी स्पंदन, स्थिरता और गतिशीलता में उसी की सर्वशक्तिमान समुपस्थिति है।
------विज्ञान पदार्थ, गति और ऊर्जा के रिश्ते खोजता है। वह अज्ञात को ज्ञात की परिधि में लाता है,
-----लेकिन सृष्टि में ही अंतर्भूत सृष्टा का रहस्य अज्ञात की परिधि में नहीं, अज्ञेय के विस्तार में होता है।
विश्वविख्यात चीनी दार्शनिक लाउत्सु ने ‘ताओ तेह चिंग’ लिखी थी। बताया है ‘अंधकार से प्रकाश आया। अरूप से रूप व्यवस्था आई।’
-----यहां ऋग्वेद के असत् से सत् आने का ही भाव है। लाओत्सु ब्रह्म या ईश्वर की जगह ताओ का प्रयोग करता है कि- ‘ज्ञान या तर्क से उसका बोध नहीं होता। उसमें चाहे जितना जोड़ो, घटाओ, फर्क नहीं पड़ता।’
वृहदारण्यक उपनिषद् में हजारों वर्ष पहले कहा गया था ‘वह पूर्ण है, यह पूर्ण है। पूर्ण में पूर्ण घटाओ अथवा जोड़ो तो पूर्ण ही रहता है।’
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते ।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
----- मुण्डकोपनिषद (2.2.10) में कहते हैं ‘वहां न सूर्य हैं न चांद, न तारे, न अग्नि, न विद्युत। केवल उसकी आभा से ही यह सब प्रकाशमान है।’ सारे प्रकाश उसी की दीप्ति हैं।
-----वृहदारण्यक (1.5.2) में कहते है ‘संचरन च, असंचरन च---वह गतिशील है, स्थिर भी है।’
-----तैत्तिरीय उपनिषद (2.6) में कथन है -, ‘वह निरूक्त है, अनिरूक्त है, निलयन है, अनिलयन है, विज्ञान है, अविज्ञान है।’
****गीता का आत्मतत्व**** भी भारहीन कण जैसा है ‘उसे शस्त्र नहीं मार सकते। आग नहीं जला सकती, पानी सुखा नहीं सकता।’
----केनोपनिषद का ऋषि इसीलिए एक उदात्त घोषणा करता है, ‘नाहं मन्ये सुवेदेति नो न वेदेति वेद च-----मैं यह नहीं मानता कि मैं उसे ठीक से जानता हूं, न यह मानता हूं कि मैं उसे नहीं जानता।’
वैज्ञानिकों के निष्कर्ष भारतीय प्राचीन ज्ञान को सही ठहरा रहे हैं। खोजे गए गाड पार्टीकल यानि ब्रह्म कण को सादर नमस्कार है।
***परम तत्व की प्राप्ति ***आसान नहीं। वह वैज्ञानिक शोध से नहीं अनुभूतिपरक आत्मबोध में ही पाया गया, गाया गया है। यथा --- नासदीय सूक्त--
कामस्तदग्रे समवर्तताधि मनसो रेतः प्रथमं यदासीत् |
सतो बन्धुमसति निरविन्दन्हृदि प्रतीष्याकवयो मनीषा ||ऋक. 10/129/4
--- – सृष्टि की उत्पत्ति के समय सब से पहले काम अर्थात् सृष्टि रचना करने की इच्छा शक्ति उत्पन्न हुयी, जो परमेश्वर के मन मे सबसे पहला बीज रूप कारण हुआ; भौतिक रूप से विद्यमान जगत् के इस बन्धन-कामरूप कारण ( परमात्मा , सृष्टा ) को क्रान्तदर्शी ऋषियो ने अपने ज्ञान व अनुभव भाव द्वारा, विलक्षण भाव एवँ अभाव ( the bond of existence in non-existence.) मे से खोज डाला।… तथा...
**** सृष्टि महाकाव्य ****
---( सृष्टि –ईशत इच्छा या बिगबेंग, एक अनुत्तरित उत्तर - डॉ. श्याम गुप्त ) में भी इसी तथ्य को स्पष्ट किया गया है।
उस पार-ब्रह्म को ऋषियों ने,
आत्मानुभूति से पहचाना।
पाया और अन्तर्निहित किया,
ज़ाना समझा गाया व लिखा।
अनुभव से यज्ञ की वेदी पर,
वे गीत उसी के गाते हैं॥
-- सृष्टि –ईशत इच्छा या बिगबेंग, एक अनुत्तरित उत्तर ( डॉ. श्याम गुप्त ).....

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

लोकप्रिय पोस्ट

फ़ॉलोअर

ब्लॉग आर्काइव

विग्यान ,दर्शन व धर्म के अन्तर्सम्बन्ध

मेरी फ़ोटो
लखनऊ, उत्तर प्रदेश, India
--एक चिकित्सक, शल्य-विशेषज्ञ जिसे धर्म, दर्शन, आस्था व सान्सारिक व्यवहारिक जीवन मूल्यों व मानवता को आधुनिक विज्ञान से तादाम्य करने में रुचि व आस्था है।