शुक्रवार, 18 दिसंबर 2009

सृष्टि व ब्रह्माण्ड (भाग -३)----रचना एवं निर्माण कार्य.

सृष्टि व ब्रह्माण्ड (भाग -३)

(सृष्टि व ब्रह्माण्ड भाग २ में हमने वैदिक विज्ञान के अनुसार सृष्टि रचना प्रारम्भ क्रम, से विश्वौदन अज (कोस्मिक सूप) बनने व उसमें भाव तत्व का प्रवेश तक व्याख्यायित किया था, आगे इस भाग में हम समय की उत्पत्ति, जड़ व जीव सृष्टि की मूल भाव संरचना, मूल तत्व-महत्तत्व, व्यक्त पुरुष, व्यक्त मूल ऊर्जा -आदिशक्ति, त्रिदेव, अनंत ब्रह्माण्ड की रचना एवं निर्माण कार्य में व्यवधान का वर्णन करेंगे)

१. सृष्टि की भाव संरचना ---वह चेतन ब्रह्म, परात्पर ब्रह्म, पर ब्रह्म (जैसा कि भाग २ में कहा ही कि चेतन प्रत्येक कण में प्रवेश करता है) ; जड़ व जीव दोनों में ही निवास करता है। उस ब्रह्म का भू : रूप (सावित्री रूप), जड़ सृष्टि का निर्माण करता है एवं भुव: (गायत्री रूप) जीव सृष्टि की रचना करता है। इस प्रकार --
---परात्पर अव्यक्त से --->परा शक्ति (आदि शम्भू -अव्यक्त) एवं अपरा शक्ति (आदि माया -अव्यक्त) - दोनों के संयोग से ==आदि व्यक्त तत्व --महत्त्तत्व प्राप्त होता है।
----महत्तत्व के विभाजन से ---> व्यक्त पुरुष (आदि विष्णु) व आदि-माया (व्यक्त आदि शक्ति अपरा)
----आदि विष्णु (आदि-पुरुष) से --->महा विष्णु, महा शिव, महा ब्रह्मा ---क्रमश: पालक, संहारक, धारक तत्व बने (विज्ञान के इलेक्ट्रोन, प्रोटोन व न्यूत्रों कण कहा जा सकता है)
----आदि माया (आदि शक्ति) से --> रमा, उमा व सावित्री --सर्जक,संहारक व स्फुरण प्रति तत्व बने। (विज्ञान के एंटी-इलेक्ट्रोन-प्रोटोन-न्यूत्रों कहा जासकता है) ---आधुनिक विज्ञान में पुरुष तत्व की कल्पना नहीं है, ऊर्जा ही सब कुछ है, कण व प्रति कण सभी ऊर्जा हे हैं, जो देवी भागवत के विचार, देवी -आदि-शक्ति ही समस्त सृष्टि की रचयिता है -के समकक्ष है)
----महाविष्णु व रमा के संयोग (सक्रिय तत्व व सृजक ऊर्जा) से अनंत चिद-बीज या हेमांड (जिसमें स्वर्ण अर्थात सब कुछ निहित है) या ब्रह्माण्ड (जिसमें ब्रह्म अर्थात सब कुछ निहित है) या अंडाणु, ग्रीक दर्शन का प्रईमोरडियल - एग, की उत्पत्ति हुई जो असंख्य व अनंत संख्या में थे व महाविष्णु (अनंत अंतरिक्ष) के रोम-रोम में (सब ओर बिखरे हुए) व्याप्त थे। प्रत्येक हेमांड की स्वतंत्र सत्ता थी।
----महा विष्णु से उत्पन्न ---> विष्णु चतुर्भुज (स्वयं भाव से), लिंग महेश्वर शिव व ब्रह्मा (विभिन्नांश से) ---इन तीनों देवों ने (त्रि-आयामी जीव सत्ता) प्रत्येक हेमांड में प्रवेश किया।
----इस प्रकार इन हेमांडों में में --त्रिदेव,माया, परा-अपरा ऊर्जा, दृव्य, प्रकृति,व उपस्थित विश्वौदन अज उपस्थित थे, सृष्टि रूप में उद्भूत होने हेतु। (अब आधुनिक विज्ञान भी यह मानने लगा है कि अनंत अंतरिक्ष (चिदाकाश) में अनंत-अनंत आकाश गंगाएं हैं अपने-अपने अनंत सौरी मंडलों व सूर्यों के साथ, जिनकी प्रत्येक की अपनी स्वतंत्र सत्ताएं हैं।)

२. निर्माण में रुकावट --निर्माण ज्ञान भूला हुआ ब्रह्मा --लगभग एक वर्ष तक(ब्रह्मा का एक वर्ष == मानव के करोड़ों वर्ष) ब्रह्मा, जिसे सृष्टि निर्माण
करना था,उस हेमांड में घूमता रहा,वह निर्माण प्रक्रिया समझ नहीं पा रहा था, भूला हुआ था। (आधुनिक विज्ञान के अनुसार हाइड्रोजन, हीलियम पूरी निर्माण में कंज्यूम होजाने के कारण निर्माण क्रम युगों तक रुका रहा, फिर अत्यधिक शीत होने पर पुन: ऊर्जा बनने पर सृष्टि क्रम प्रारम्भ हुआ)

----जब ब्रह्मा नेआदि -विष्णु की प्रार्थना की, क्षीर सागर (अंतरिक्ष,महाकाश, ईथर) में उपस्थित, शेष-शय्या (बची हुई मूल संरक्षित ऊर्जा) पर लेटे हुए नारायण (नार=जल,अंतरिक्ष ;;अयन=निवास, स्थित विष्णु) की नाभि (नाभिक ऊर्जा) से स्वर्ण कमल (सत्, तप,श्रृद्धा रूपी आसन) पर वह ब्रह्मा,-चतुर्मुख रूप (कार्य रूप) में अवतरित हुआ। आदि माया सरस्वती (ऊर्जा का सरस -भाव रूप) का रूप धर कर वीणा बजाती हुई (ज्ञान के आख्यानों सहित) प्रकट हुई एवं ब्रह्मा के ह्रदय में प्रविष्ट हुईं। इस प्रकार उसे सृष्टि निर्माण प्रक्रिया कापुन; ज्ञान हुआ, और वे सृष्टि रचना में रत हुए।

३. समय (काल)---अंतरिक्ष में बहुत से भारी कणों ने, मूल स्थितिक ऊर्जा,नाभीय व विकिरित ऊर्जा, प्रकाश कणों आदि को अत्यधिक मात्रा में मिला कर कठोर रासायनिक बंधनों वाले कण-प्रति कण बनालिए थे (जिन्हें राक्षस कहागया है) वे ऊर्जा का उपयोग रोक कर सृष्टि की आगे प्रगति रोके हुए थे,पर्याप्त समय बाद (ब्रह्मा को ज्ञान के उपरांत) उदित, इंद्र (रासायनिक प्रक्रिया-यग्य) द्वारा बज्र (विभिन्न उत्प्रेरकों) के प्रयोग से उन को तोड़ा। वे बिखरे हुए कण --काल-कांज या समय के अणु कहलाये। इन सभी कणों से--

अ. - विभिन्न ऊर्जाएं, हलके कण व प्रकाश कण मिलकर--विरल पिंड (अंतरिक्ष के शुन) कहलाये, जिनमें नाभिकीय ऊर्जा के कारण संयोजन व विखंडन (फिसन व फ्यूज़न) के गुण थे, उनसे सारे नक्षत्र,( सूर्य, तारे आदि),आकाश गंगाएं (गेलेक्सी) व नीहारिकाएं (नेब्यूला) आदि बने।

ब. - मूल स्थितिक ऊर्जा,भारी व कठोर कण मिलाकर जिनमें उच्च ताप भी था, अंतरिक्ष के कठोर पिंड ---गृह,उप गृह, पृथ्वी आदि बने।

----क्योंकि ये सर्व प्रथम दृश्य ज्ञान के रचना पिंड थे, एक दूसरे के सापेक्ष घूम रहे थे, इसके बाद ही एनी दृश्य रचनाएँ हुईं, तथा ब्रह्मा को ज्ञान का भी यहीं से प्रारम्भ हुआ ; अत; ब्रह्मा कादीन व समय की नियमन गणना यहीं से प्रारम्भ मानी गयी।

-- डा श्याम गुप्ता


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लखनऊ, उत्तर प्रदेश, India
--एक चिकित्सक, शल्य-विशेषज्ञ जिसे धर्म, दर्शन, आस्था व सान्सारिक व्यवहारिक जीवन मूल्यों व मानवता को आधुनिक विज्ञान से तादाम्य करने में रुचि व आस्था है।