आधुनिक-विज्ञान व पुरा वैदिक-विज्ञान, धर्म, दर्शन, ईश्वर, ज्ञान के बारे में फ़ैली भ्रान्तियां, उद्भ्रान्त धारणायें व विचार एवम अनर्थमूलक प्रचार को उचित व सम्यग आलेखों, विचारों व उदाहरणों, कथा, काव्य से जन-जन के सम्मुख लाना---ध्येय है, इस चिठ्ठे का ...
शनिवार, 22 अगस्त 2009
मीमांसा के सिद्दान्त,तर्क-संगत व सटीक --समाचार...हि.न्दुस्तान.........
क्या सटीक बात कही है आद.जज साहब काट्जू जी ने -कि लोग मेक्स्वेल आदि के सिद्दान्त आदि की बात तो करते हैं परंतु शब्दों की व्याख्या का ढाई हज़ार साल पुराने ’मीमान्सा ’ में दिये गये सिद्दान्तों की कोई बात नहीं करता, अदालतें भी इससे अनभिग्य हैं,उन्होने उदाहरण दिया "न कलंजं भक्ष्येत" अर्थात बासी खाना नही खाना चाहिये।
वस्तुतः मीमान्सा है क्या? वास्तव में आज कुछ गिने-चुने लोग ही जानते होन्गे।" मीमान्सा" भारतीय षड-दर्शन का एक अंग है जो महर्षि जैमिनी द्वारा रचित है। जो वेदों की वैयाकरणीय व्याख्या प्रस्तुत करती है जिसमें शब्दों, अर्थों,भावों के तात्विक अर्थों पर विचार किया गया है।ग्यान मीमान्सा व तत्व मीमान्सा द्वारा विभिन्न शब्दों के तत्वार्थ दिये गये हैं, छोटे-छोटे सूत्र रूप में। उदाहरणार्थ--सर्व आत्म वशं सुखं, -सुख मनुष्य के अपने मन के वश में है।
"अवैद्य्त्वाद भावः कर्मणि स्वात"-(६/१/३७)-विद्या का सार्थक भाव न होने से व्यक्ति शूद्र होता है। तथा: गुणार्थमिति चेत"(६/१/४८)--जाति का आधार योग्यता है। "अज़ " का अर्थ पुराने चावल न कि मांस भक्षी लोगों द्वारा कहा हुआ ,बकरा ।" तपश्चफ़ल सिद्धिष्वाल्लोकवत"(३/८/८)--यग्य कर्म केवल धन व्यय करना नहीं तप की मनोव्रित्ति होनी चाहिये-- आदि ।
सिद्धान्त-- मीमान्सा जीवन के कर्मवादी सिद्दान्त की व्याख्या करती है।उसके अनुसार भौतिक जगत जैसा दिखाई देता है वैसा ही है। धर्म-एक भौतिक नियम है,प्रत्येक व्यक्ति की पसन्द की बस्तु नहीं, नैतिक कर्तव्य ही धर्म है। जगत परमाणु की प्रत्यक्ष सत्ता है,गुण,कर्म,द्रव्य,समभाव, अभाव आदि पंच तत्वों से से सन्सार बना है।वह शब्द-प्रमाण व प्रमाणवाद की स्थापना करता है। फ़ल कर्म से मिलता है, वेद में जो ईश्वर का रूप है वही सत्य है।
मीमान्सा ईश्वर का वर्णन नहीं करता।
उद्देश्य--कर्म द्वारा ही ईश्वर व मोक्ष प्राप्ति। मानव जीवन का उद्देश्य-अभ्युदय,अर्थात सांसारिक उन्नति ,एवम निश्रेयस,अर्थात मोक्ष । कर्म द्वारा दुखः का नाश ही मोक्ष है।
मीमान्सा प्रत्येक शब्द व बस्तु, भाव,विचार ,तथ्य को विवेचनात्मक,विश्लेषणात्मक द्रष्टि से तौल कर कर्म करने का आदेश देती है। आधुनिक पाश्चात्य फ़िलासफ़ी में--मैटाफ़िज़िक्स(तत्व-मीमान्सा),एपिस्टोमोलोजी(प्रमाण मीमान्सा), एथिक्स(आचार मीमान्सा),ऐस्थेटिक्स(सौन्दर्य-मीमान्स)---मीमान्सा दर्शन के ही अन्ग हैं।
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- लखनऊ, उत्तर प्रदेश, India
- --एक चिकित्सक, शल्य-विशेषज्ञ जिसे धर्म, दर्शन, आस्था व सान्सारिक व्यवहारिक जीवन मूल्यों व मानवता को आधुनिक विज्ञान से तादाम्य करने में रुचि व आस्था है।
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