रविवार, 2 अगस्त 2009

परमा र्थ----

मिट्टी का एक कण,पानी की एक बूंद, हवा की एक लहर, अग्नि की एक चिनगारी, आकाश का एक कतरा--पांचोपहाड की चोटी पर खडे होकर सूर्य की भगवान की प्रार्थना करने लगे--: हे! सविता देव! हम भी आपके समान बननाचाहते हैं। हमें भी अपने जैसा प्रकाश वान, ऐश्वर्य वान बना दो।" सूर्य की एक किरण अपने आराध्य का संदेशलेकर आई--
" भाइयो ! बहनो! भास्कर के समान तेजस्वी बनना चाहते हो तो उठो;
किसी से कुछ मत मांगो,अपना जो कुछ है वह प्राणी मात्र की सेवा मेंआज से ही उत्सर्ग करना प्रारंभ करदो यादरखो,
गलने में ही उपलब्धि का मूल मंत्र है,जितना तुम औरों के लिये दोगे, उतना ही तुम्हें मिलेगा। मांगने से नहींमिलेगा।
-------अखंड ज्योति से साभार।

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लखनऊ, उत्तर प्रदेश, India
--एक चिकित्सक, शल्य-विशेषज्ञ जिसे धर्म, दर्शन, आस्था व सान्सारिक व्यवहारिक जीवन मूल्यों व मानवता को आधुनिक विज्ञान से तादाम्य करने में रुचि व आस्था है।