( श्रुतियों व पुराणों एवं अन्य भारतीय शास्त्रों में जो कथाएं भक्ति भाव से परिपूर्ण व अतिरंजित लगती हैं उनके मूल में वस्तुतः वैज्ञानिक एवं व्यवहारिक पक्ष निहित है परन्तु वे भारतीय जीवन-दर्शन के मूल वैदिक सूत्र ...’ईशावास्यम इदं सर्वं.....’ के आधार पर सब कुछ ईश्वर को याद करते हुए, उसी को समर्पित करते हुए, उसी के आप न्यासी हैं यह समझते हुए ही करना चाहिए .....की भाव-भूमि पर सांकेतिक व उदाहरण रूप में काव्यात्मकता के साथ वर्णित हैं, ताकि विज्ञजन,सर्वजन व सामान्य जन सभी उन्हें जीवन–व्यवस्था का अंग मानकर उन्हें व्यवहार में लायें |...... स्पष्ट करने हेतु..... कुछ उदाहरण एवं उनका वैज्ञानिक पक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है ------ )
वैदिक , पौराणिक एवं उसके परवर्ती साहित्य में आधुनिक विज्ञान के बहुत से तथ्य सूत्र रूप में मौजूद हैं, उनमें से कुछ को यहाँ रखा जारहा है....
अंक-१०....... श्रुतियों व पुराण-कथाओं
में भक्ति-पक्ष के साथ व्यवहारिक-वैज्ञानिक तथ्य
प्रायः लोग व तथाकथित विदेशी व भारतीय विद्वान वेदों के शब्दों का मूल अर्थ न जानते हुए
अनर्थ मूलक अर्थ लगाते हुए उनमें वर्णित भावों को समझे बिना बुराई करने का प्रयत्न करते हैं, अभी हाल में यह प्रवृत्ति काफी देखी जारही है | वेद उच्चकोटि का साहित्य है अतः जिस प्रकार दर्शन व वैदिक-विज्ञान, गायत्री-ज्ञान के अनुसार मानव के पांच
शरीर होते हैं ( अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय व आनन्दमय ) वैसे ही वैदिक शब्दों के प्रायः पांच अर्थ होते
हैं -- यथा---
---- गौ शब्द का अर्थ... सिर्फ गौ नहीं अपितु....गाय, पृथ्वी, किरणें, बुद्धि व
इन्द्रियां होता है जो वैदिक मन्त्रों में प्रयुक्त होता है |
--- योनि शब्द का अर्थ... सदैव स्त्री योनि लगाकर काम-मूलक अर्थ बताये जाते हैं ...योनि का अर्थ--- स्त्री जननांग, सृष्टि का गर्भस्थल अंतरिक्ष, पृथ्वी का गर्भ स्थल समुद्र ,एवं प्रत्येक वस्तु-भाव का जन्मस्थल या उत्पत्ति स्थल के रूप में वेदों में प्रयुक्त होता है | कुछ अन्य कुछ बताये जाने वाले भ्रमात्मक शब्द-भावों के वेद आदि में
वर्णित अर्थ इस प्रकार है---
---- शूद्र --- "शुचं अद्र्वति इति शूद्र |"...गीता --- जो शोक के पीछे भागे वह शूद्र है |
"गुणार्थमितिचेत "....मीमांसा (६/१/४८ ) ---अर्थात योग्यता ही जाति का आधार है , अतः "अवैद्यत्वात भाव कर्मणि स्वात "(
मीमांसा ६/१/३७ )--अर्थात विद्या का सामर्थ्य न होने से ही शूद्र होता है | तथा .."यदि वां वेद निर्देशशाद्य शूद्राणाम प्रतीयेत " ..( मी -६/१/३३) ---शूद्र भी योग्यता प्रमाण देकर वैदिक
मन्त्रों का अधिकारी हो सकता है |
--- लिंग -- वैशेषिक ४/१/१ के अनुसार...." तस्य
कार्य लिंगम " अर्थात उस (ईश्वर या अन्य किसी ) का कार्य ( जगद रूप या कोइ भी कृत-कार्य )ही
उसके होने का लक्षण (प्रमाण ) है | अतः --लिंग का अर्थ सिर्फ पुरुष लिंग नहीं अपितु चिन्ह,प्रमाण, लक्षण व अनुमान भी है|
२.पीलिया रोग ...हल्दी,
कढ़ी, फोटोथीरेपी,..विज्ञान
और अंधविश्वास ... इन में आपस में क्या सम्बन्ध हो सकता है ! सम्बन्ध है.....
नीले प्रकाश से पीलिया का इलाज़...फोटोथीरेपी
यूनिट...
यह एक अंधविश्वास माना जाता है कि पीलिया ( जांडिस ) के रोगी को पुरातन-पंथी या दादी के नुस्खे के हिसाब से पीली बस्तुएं ( हल्दी की, बेसन की व अन्य पीले रंग की खाद्य व कपडे आदि का प्रयोग ) खाने / पहनने को
मना किया जाता है । इसीके साथ विज्ञानं के आधुनिक आविष्कार पीलिया रोग के इलाज़ में सूर्य का प्रकाश व फोटोथीरेपी का खूब प्रयोग भी होता है | दोनों बातों
को सम्मिलित किया जाय तो ...पीलिया में बिलीरूबिन के पीले रंग के कणों को
रक्त में से निकालने में नीले रंग का प्रकाश ही सबसे अधिक प्रभावकारी क्यों है। ( यह
आधुनिक चिकित्सकीय सिद्ध खोज है और फोटोथीरेपी का मूल सिद्धांत )। .....तो
स्वतः ही पुरातन बात -पीलिया में पीली वस्तु खाने के परहेज़ का कारण समझ में आने लगता है
।
अवश्य ही यह रंग -विज्ञान के गहन व गूढ़ वैज्ञानिक तथ्य हैं जो अभी आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान नहीं जान सका है। पीले रंग का खाद्य-पदार्थ अवश्य ही मोलेक्यूलर चिकित्सा विज्ञान का उन्नत ज्ञान है जो आयुर्वेद के अनुभव ज्ञान द्वारा भारतीय मानस में पैठ कर गया, जिसका कोई कारण आदि उन्हें ज्ञात नहीं । नीला रंग अवश्य ही पीले रंग का विरोधी होने के कारण रक्त से पीले कण हटाता है और पीले खाद्य पदार्थ उसे बढाते होंगे। प्राकृतिक चिकित्सा का एक भाग--रंग चिकित्सा -जिसमें विभिन्न रंग के कांच की बोतलों में सूर्य के जल से चिकित्सा की जाती है उसका भी शायद यही आधार है ।
अवश्य ही यह रंग -विज्ञान के गहन व गूढ़ वैज्ञानिक तथ्य हैं जो अभी आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान नहीं जान सका है। पीले रंग का खाद्य-पदार्थ अवश्य ही मोलेक्यूलर चिकित्सा विज्ञान का उन्नत ज्ञान है जो आयुर्वेद के अनुभव ज्ञान द्वारा भारतीय मानस में पैठ कर गया, जिसका कोई कारण आदि उन्हें ज्ञात नहीं । नीला रंग अवश्य ही पीले रंग का विरोधी होने के कारण रक्त से पीले कण हटाता है और पीले खाद्य पदार्थ उसे बढाते होंगे। प्राकृतिक चिकित्सा का एक भाग--रंग चिकित्सा -जिसमें विभिन्न रंग के कांच की बोतलों में सूर्य के जल से चिकित्सा की जाती है उसका भी शायद यही आधार है ।
अमेरिकी जीन
वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोगशाला में जीवन की उत्पत्ति की सफलता, मानव की सफलताओं की कथा में एक और मील का
पत्थर है | इस पर किसी धार्मिक आचार्य का कथन सटीक ही है कि सभी कुछ उस ईश्वर का ही कृतित्व है -मानव भी- अतः मानव द्वारा यह खोज भी ईश्वर की खोज का ही, ईश्वर द्वारा प्रदत्त, एक भाग है जो मानव जीवन के ध्येयों में एक लक्ष्य है, अपने रचयिता की, विश्व के मूल प्रश्नों की खोज एवं धर्म से इसका कोई विरोधाभाष नहीं है।
इसके साथ ही विश्व भर में इस खोज की नैतिकता पर भी प्रश्न उठ खड़े हुए हैं, स्वयं वैज्ञानिक समुदाय द्वारा ही। इसके दुरुपयोग के भयंकर परिणामों, भयंकर अनुशासनहीन दुर्मानवों, अतिकाय-मानव व जीवों की उत्पत्ति, मानवता के संकट के रूप में । यद्यपि टीवी समाचारों, समाचारपत्रों आदि में दिखाए गए अतिकाय मानवों के दृश्य, कथन आदि सिर्फ पाश्चात्य कथाएँ , सीरिअल्स, पिक्चर आदि से प्रभावित है जो स्वाभाविक है क्योंकि आज भारतीय प्राच्य ज्ञान की कोई पूछ ही नहीं है। जबकि भारतीय पुरा ज्ञान, वैदिक साहित्य में यह सब सामाजिक-घटना पहले से ही वर्णित है |
सृष्टा -ब्रह्मा का ही एक सहयोगी था ...'त्वष्टा' जिसने यज्ञ द्वारा यह विद्या प्राप्त कर ली थी परन्तु वह उसका दुरुपयोग करने लगा था । वह यज्ञ द्वारा- हाथी का सिर-मानव का धड ; मानव का सर-जानवरों-पक्षियों का धड, विशालकाय मानव व पशु पक्षी उत्पन्न करने लगा था | त्रिशिरा नामक अति बलशाली दैत्य (तीन सिर वाला मानव = देव = दैत्य) उसी का पुत्र था जिसका अत्याचार में लिप्त होने पर इन्द्र ने वध किया था। तत्पश्चात ब्रह्मा द्वारा त्वष्टा ऋषि का ब्रह्मत्व ( ज्ञान ) छीन कर उसे निष्प्रभ कर दिया गया ।
इसके साथ ही विश्व भर में इस खोज की नैतिकता पर भी प्रश्न उठ खड़े हुए हैं, स्वयं वैज्ञानिक समुदाय द्वारा ही। इसके दुरुपयोग के भयंकर परिणामों, भयंकर अनुशासनहीन दुर्मानवों, अतिकाय-मानव व जीवों की उत्पत्ति, मानवता के संकट के रूप में । यद्यपि टीवी समाचारों, समाचारपत्रों आदि में दिखाए गए अतिकाय मानवों के दृश्य, कथन आदि सिर्फ पाश्चात्य कथाएँ , सीरिअल्स, पिक्चर आदि से प्रभावित है जो स्वाभाविक है क्योंकि आज भारतीय प्राच्य ज्ञान की कोई पूछ ही नहीं है। जबकि भारतीय पुरा ज्ञान, वैदिक साहित्य में यह सब सामाजिक-घटना पहले से ही वर्णित है |
सृष्टा -ब्रह्मा का ही एक सहयोगी था ...'त्वष्टा' जिसने यज्ञ द्वारा यह विद्या प्राप्त कर ली थी परन्तु वह उसका दुरुपयोग करने लगा था । वह यज्ञ द्वारा- हाथी का सिर-मानव का धड ; मानव का सर-जानवरों-पक्षियों का धड, विशालकाय मानव व पशु पक्षी उत्पन्न करने लगा था | त्रिशिरा नामक अति बलशाली दैत्य (तीन सिर वाला मानव = देव = दैत्य) उसी का पुत्र था जिसका अत्याचार में लिप्त होने पर इन्द्र ने वध किया था। तत्पश्चात ब्रह्मा द्वारा त्वष्टा ऋषि का ब्रह्मत्व ( ज्ञान ) छीन कर उसे निष्प्रभ कर दिया गया ।
४. विज्ञान, अर्थशास्त्र, सामाजिकता, मानवता, सत्व-आचरण व व्यवहार का समन्वय है, विविध भारतीय त्यौहार ..उदाहरणार्थ ....दीपावली का पर्व ...
विश्व में एकमात्र विशिष्टतम त्यौहार --दीपावली पर्व
....स्वास्थ्य-शुचिता, वैभव, समृद्धि, सामाजिकता-सदाचरण, परमार्थ-भाव के साथ उल्लास के रंग बिखेरता, पाँच दिवसों का यह भारतीय दीपदान पर्व, विश्व में एक अनूठा पर्व है |
प्रथम पर्व, धन-तेरस अर्थात
स्वास्थ्य का महापर्व ; समस्त विश्व में धार्मिक आधार लेकर
स्वास्थ्य का ऐसा महापर्व शायद ही कहीं मनाया जाता हो, प्रथम चिकित्सक भगवान धन्वन्तरि के अवतरण, स्वर्ण-कलश लेकर समुद्र-मंथन के समय प्राकट्य के दिवस पर धन-धान्य के साथ साफ़-सफाई व अच्छे आरोग्य की कामना का
एक वैज्ञानिक-पर्व है धन-तेरस या धन्वन्तरि त्रियोदशी | भगवान्
धन्वन्तरि के अनुसार अवश्यम्भावी स्वाभाविक काल-मृत्यु के अतिरिक्त शेष सभी ९९ प्रकार की मृत्यु से चिकित्सा व निदान से बचा जा सकता है | जीव-जंतुओं ,प्राणियों व प्रकृति के स्वभाव से लेकर, शल्य चिकित्सा तक
पर धन्वन्तरि के विषय-वैज्ञानिक व्याख्याएं हैं | वन संपदा व जडी-बूटियों (आयुर्वेदिक औषधि संपदा ) पर भी देवी लक्ष्मी का वास है | स्वस्थ शरीर ही मानव की सबसे बड़ी पूंजी है , इसी कारण धन-तेरस, दिवाली पर्व पर आयु, आरोग्य, यश, वैभव, गृह, धन-धान्य, धातु आदि की पूजा होती है |
द्वितीय दिवस.. यम् देवता की पूजा, नरकचतुर्दशी भी इसी स्वास्थ्य-कामना का पर्व है | तृतीय दिवस.. दीपदान 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' के साथ लक्ष्मी-गणेश पूजन, चतुर्थ-दिवस दान, श्रृद्धा, संकल्प का पर्व असुरराज बलि-वामन अवतार प्रसंग व अन्तिम दिन भाई-बहिन के प्रेम का प्रतीक यम्-द्वितीया पर्व सामाजिकता का पर्व है | इस प्रकार सम्पन्नता के साथ स्वास्थ्य, सदाचरण, सम्पूर्ण निर्विघ्नता-कुशलता के अमर संदेश के
साथ लक्ष्मी का आगमन हमारी स्वस्थ , अनाचरण रहित कर्म की सांसकृतिक परम्पराओं की अमूल्य निधि है
|
घरों की सफाई, घूरा-पूज़न, कूड़ा-करकट जलाना, धन्वन्तरी पूजन, यम-पूजन आदि स्वास्थ्य-शुचिता, रोगों की रोकथाम, सामाजिक व रोकथाम चिकित्सा के वैज्ञानिक तथ्य हैं |
धनतेरस पर स्वर्ण आदि खरीदना-बचत का प्रावधान, एक आर्थिक सुरक्षा दृष्टि है| दीपदान, भैया-दूज, उत्सव मनाना, मेले, व नरक-चतुर्दसी का दानवीर बलि-वामन सन्दर्भ आदि सामाजिकता, मानवता, आचरण-शास्त्र एवं सिर्फ़ स्वयं के बजाय परार्थभाव व कर्म के प्रेरक हैं|
धनतेरस पर स्वर्ण आदि खरीदना-बचत का प्रावधान, एक आर्थिक सुरक्षा दृष्टि है| दीपदान, भैया-दूज, उत्सव मनाना, मेले, व नरक-चतुर्दसी का दानवीर बलि-वामन सन्दर्भ आदि सामाजिकता, मानवता, आचरण-शास्त्र एवं सिर्फ़ स्वयं के बजाय परार्थभाव व कर्म के प्रेरक हैं|
आख़िर वैज्ञानिकता व विज्ञान है क्या ? कुछ लोग समझते हैं कि नयी-नयी खोजें, उनका
वर्णन, खोजी लोगों के जीवन व जन्म दिन का वर्णन ही वैज्ञानिकता व विज्ञान है ...नहीं, यह सिर्फ़
भौतिक उन्नति के पायदान हैं | वैज्ञानिकता का अर्थ है, वह उच्च वैचारिक धरातल जहाँ समता,
समानता, नैतिक आचरण मानव के दैनिक स्वाभाविक व्यवहार हो जायं | विज्ञान का अर्थ है, वे
कृतित्व, विचार, कर्म व आचरण जो मानव को उस उच्च धरातल पर लेजाने को प्रेरित करें |
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