रविवार, 9 अगस्त 2009

वेदिक साहित्य में मानसिक स्वासथ्य व रोग...

मुन्डकोप निषद में शिष्य का प्रश्न है--"कस्मिन्नु विग्याते भगवो, सर्वमिदं विग्यातं भवति ।" और आचार्य उत्तर देते हैं--’प्राण वै’...। वह क्या है जिसे जानने से सब कुछ ग्यात हो जाता है? उत्तर है-प्राण । प्राण अर्थात,स्वयं,सेल्फ़,या आत्म; जोइच्छा-शक्ति(विल-पावर) एवम जीवनी-शक्ति (वाइटेलिटी) प्रदान करता है। यही आत्मा व शरीर का समन्वय कर्ता है। योग,दर्शन,ध्यान,मोक्ष,आत्मा-परमात्मा व प्रक्रति-पुरुष का मिलन, इसी प्रा्ण के ग्यान ,आत्म -ग्यान (सेल्फ़-रीअलाइज़ेसन ) पर आधारित है।समस्त प्रकार के देहिक व मानसिक रोग इसी प्राण के विचलित होने ,आत्म-अग्यानता से-कि हमें क्या करना ,सोचना,व खाना चाहिये और क्या नहीं;पर आधारित हैं ।
रोग उत्पत्ति और विस्तार प्रक्रिया ( पेथो-फ़िज़िओलोजी)--अथर्व वेद का मन्त्र,५/११३/१-कहता है--
"त्रिते देवा अम्रजतै तदेनस्त्रित एतन्मनुष्येषु मम्रजे।ततो यदि त्वा ग्राहिरानशे तां ते देवा ब्राह्मणा नाशयतु ॥"
मनसा, वाचा, कर्मणा,किये गये पापों (अनुचित कार्यों) को देव(इन्द्रियां), त्रित (मन,बुद्धि,अहंकार-तीन अंतःकरण)
में रखतीं है। ये त्रित इन्हें मनुष्यों की काया में (बोडी-शरीर) आरोपित करते है( मन से शारीरिक रोग उत्पत्ति--साइकोसोमेटिक ) । विद्वान लोग ( विशेषग्य) मन्त्रों (उचित परामर्श व रोग नाशक उपायों) से तुम्हारी पीढा दूर करें। गर्भोपनिषद के अनुसार--"व्याकुल मनसो अन्धा,खंज़ा,कुब्जा वामना भवति च ।"---मानसिक रूप से व्याकुल,पीडित मां की संतान अन्धी,कुबडी,अर्ध-विकसित एवम गर्भपात भी हो सकता है।
अथर्व वेद ५/११३/३ के अनुसार---
"द्वादशधा निहितं त्रितस्य पाप भ्रष्टं मनुष्येन सहि । ततो यदि त्वा ग्राहिरानशें तां ते देवा ब्राह्मणा नाशय्न्तु ॥"
त्रि त के पाप (अनुचित कर्म) बारह स्थानों ( १० इन्द्रियों,चिन्तन व स्वभाव-संस्कार-जेनेटिक करेक्टर) में आरोपित होता है, वही मनुष्य की काया में आरोपित होजाते हैं; इसप्रकार शारीरिक-रोग से >मानसिक रोगसे >शारीरिक रोग व अस्वस्थता का एक वर्तुल(साइकोसोमेटिक विसिअस सर्किल) स्थापित होजाता है।
निदान---
१. रोक-थाम(प्रीवेन्शन)--प्राण व मन के संयम (सेल्फ़ कन्ट्रोल) ही इन रोगों की रोक थाम का मुख्य बिन्दु हैं।रिग्वेद में प्राण के उत्थान पर ही जोर दिया गया है। प्राणायाम,हठ योग, योग, ध्यान, धारणा, समाधि, कुन्डलिनी जागरण,पूजा,अर्चना, भक्ति,परमार्थ, षट चक्र-जागरण,आत्मा-परमात्मा,प्रक्रति-पुरुष,ग्यान,दर्शन,मोक्ष की अवधारणा एवम आजकल प्रचलित भज़न,अज़ान,चर्च में स्वीकारोक्ति, गीत-संगीत आदि इसी के रूप हैं। अब आधुनिक विग्यान भी इन उपचारों पर कार्य कर रहा है।रिग्वेद १०/५७/६ में कथन है---
--"वयं सोम व्रते तव मनस्तनूष विभ्रतः। प्रज़ावंत सचेमहि ॥" हे सोम देव! हम आपके व्रतों(प्राक्रतिक अनुशासनों) व कर्मों (प्राक्रतिक नियमों) में संलग्न रहकर,शरीर को इस भ्रमणशील मन से संलग्न रखते हैं। आज भी चन्द्रमा (मून, लेटिन -ल्यूना) के मन व शरीर पर प्रभाव के कारण मानसिक रोगियों को ’ल्यूनेटिक’ कहा जाता है।--रिग्वेद के मंत्र-१०/५७/४ में कहा है--" आतु एतु मनः पुनःक्रत्वे दक्षाय जीवसे। ज्योक च सूर्यद्द्शे ।।"
अर्थात-श्रेष्ठ , सकर्म व दक्षता पूर्ण जीवन जीने के लिये हम श्रेष्ठ मन का आवाहन करते हैं।
२, उपचार--रिग्वेद-१०/५७/११ कहता है-" यत्ते परावतो मनो । तत्त आ वर्तयामसीह क्षयाम जीवसे॥"-आपका जो मन अति दूर चला गया है( शरीर के वश में नहीं है) उसे हम वापस लौटाते है। एवम रिग्वेद-१०/५७/१२ क कथन है-
"यत्ते भूतं च भवयंच मनो पराविता तत्त आ......।" , भूत काल की भूलों,आत्म-ग्लानि,भविष्य की अति चिन्ता आदि से जो आपका मन अनुशासन से भटक गया है, हम वापस बुलाते हैं । हिप्नोसिस,फ़ेथ हीलिन्ग,सजेशन-चिकित्सा,योग,संगीत-चिकित्सा आदि जो आधुनिक चिकित्सा के भाग बनते जारहे हैं, उस काल में भी प्रयोग होती थे।
३. औषधीय-उपचार--मानसिक रोग मुख्यतया दो वर्गों में जाना जाता था---(अ) मष्तिष्क जन्य रोग(ब्रेन --डिसीज़) -यथा,अपस्मार(एपीलेप्सी),व अन्य सभी दौरे(फ़िट्स) आदि--इसका उपचार था,यज़ुर्वेद के श्लोकानुसार--"अपस्मार विनाशः स्यादपामार्गस्य तण्डुलैः ॥"--अपामार्ग (चिडचिडा) के बीजों का हवन से अपस्मार का नाश होता है। ---(ब) उन्माद रोग ( मेनिया)--सभी प्रकार के मानसिक रोग( साइको-सोमेटिक)--
-अवसाद(डिप्प्रेसन),तनाव(टेन्शन),एल्जीमर्श( बुढापा का उन्माद),विभ्रम(साइज़ोफ़्रीनिया) आदि।इसके लिये यज़ुर्वेद का श्लोक है--"क्षौर समिद्धोमादुन्मादोदि विनश्यति ॥"-क्षौर व्रक्ष की समिधा के हवन से उन्माद रोग नष्ट होते है।
क्योंकि मानसिक रोगी औषधियों का सेवन नहीं कर पाते ,अतः हवन रूप में सूक्ष्म-भाव औषधि( होम्यो पेथिक डोज़ की भांति) दी जाती थी। आज कल आधुनिक चिकित्सा में भी दवाओं के प्रयोग न हो पाने की स्थिति में (जो बहुधा होता है) विद्युत-झटके दिये जाते हैं।

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लखनऊ, उत्तर प्रदेश, India
--एक चिकित्सक, शल्य-विशेषज्ञ जिसे धर्म, दर्शन, आस्था व सान्सारिक व्यवहारिक जीवन मूल्यों व मानवता को आधुनिक विज्ञान से तादाम्य करने में रुचि व आस्था है।